सबको साधने के फेर में कहीं बिगड़ न जाये बिसाहू का खेल

कांग्रेसियों के भगवाकरण से बिदक रहे मूल भाजपाई
गांव से लेकर शहर और छोटे से बड़े चेहरों तक सभी असमंजस में
(Amit Dubey+8818814739)
शहडोल। 15 सालों बाद प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस ने वापसी की, संभाग के शहडोल और उमरिया में तो, कांग्रेस का सूपड़ा साफ रहा, लेकिन अनूपपुर की तीनों सीटों पर कांग्रेस ने बाजी मार ली, आपसी गुटबाजी में 15 माहों में ही सरकार गिर गई, कांग्रेस के आधार स्तंभ माने जाने वाले चार बार मंत्री रह चुके बिसाहूलाल सिंह ने भाजपा का दामन थामा और क्षेत्र के वाशिंदों से किये गये विकास के वायदे को पूरा करने के नाम पर चुनाव से पहले ही कैबिनेट मंत्री भी बन गये, लेकिन किन्हीं भी परिस्थियों में चुनाव जीतने की रणनीति के तहत बिसाहूलाल सिंह भाजपा के सभी कार्यकर्ताओं को अपने साथ लेकर तो, चल ही रहे हैं, अपनी इस नई पारी में बिसाहूलाल सिंह ने पुरानी कांग्रेस वाली टीम के साथ ही विरोधियों को भी मनाना शुरू कर दिया है। इसकी शुरूआत रामलाल की स्लीपर सेल में भी घुसकर उसे भेदने के साथ बिसाहूलाल ने कर दी, लेकिन स्थानीय स्तर पर अलग-अलग धु्रवों में बिखरे क्षत्रपों के आपसी टकराव को खत्म कराकर उन्हें एक झण्डे के नीचे लाना, आसमान से तारे तोड़कर लाने जैसा है। वहीं बिसाहूलाल के अचानक बढ़े कद ने बिसाहूलाल के पुराने स्वभाव के अनुसार भाजपाईयों के कद को काफी सिकोड़ दिया है। संगठन के डंडे और सत्ता के लोभ में भले ही भाजपाई चुप हों, लेकिन दबी जुबान में पार्टी के जिलाध्यक्ष तक इस नई व्यवस्था और पहाड़ के सामने अपने कद को देखकर फिक्र मंद है।
नये रूप में बिसाहूलाल
बिसाहूलाल सिंह भाजपा में आने और कैबिनेट मंत्री बनने के बाद जब अनूपपुर आये तो, उनके करीबियों ने उन्हें नये रूप में देखा, बिसाहूलाल की गिनती 80 के दशक के उन नेताओं में होती है, जिसमें स्व. दलबीर सिंह, स्व.के.पी. सिंह, स्व. श्रीनिवास तिवारी और स्व. अर्जुन सिंह सरीके घाघ नेता शामिल थे, हालाकि उनके कद के नेता संभाग तो क्या, प्रदेश में ही कुछ ही बचे हैं, राजनीति में चाणक्य के रूप में पहचान बना चुके बिसाहूलाल इन दिनों सबको साधने वाली राजनीति पर आगे बढ़ते दिख रहे हैं, इनकी इस कवायत से फिलहाल चारो तरफ उनके समर्थकों की भीड़ तो नजर आ रही है, कांग्रेस हैरान-परेशान तो है, लेकिन न तो अभी चुनावों की तिथियां घोषित की गई है और न ही कांग्रेस ने अपने पत्ते खोले हैं। ग्राम और नगर की राजनीति करने वाले जब दोनों ही गुट एक ही झण्डे के नीचे खड़े हो जायेंगे तो, उनकी स्थानीय राजनीति और मुद्दे कहां जायेंगे।
जीत की चिंता, खेल रहे हर दांव
कांग्रेस छोडऩे के बाद से ही बिसाहूलाल सिंह को भाजपा द्वारा अनूपपुर से प्रत्याशी बनाया जाना तो तय हो गया, लेकिन भारतीय जनता पार्टी का वोट बैंक, रामलाल का वोट बैंक, बिसाहूलाल का वोट बैंक को एकजुट करने के फेर में चढ़ाई गई खिचड़ी यदि समय पर न उतारी गई तो, वह कब गंध मारने लगे, यह कहना मुश्किल है, बिसाहूलाल ने कांग्रेस को हराने के लिए जीत की फिक्र में यह दांव तो खेल लिया है, लेकिन अभी कांग्रेस के पत्ते खुलना बाकी है।
क्षत्रपों का एकजुट होना मुश्किल
पुरानी कहावत है कि केकड़ों को कभी एक साथ नहीं तौला जा सकता, उनमें आगे बढऩे के साथ ही दूसरे को पीछे करने के लिए टांग पकड़कर खीचने की प्रवृत्ति रहती है, अनूपपुर विधानसभा के ग्रामीण व कस्बाई क्षेत्रों में दशकों से दो से तीन गुटो में बटे लोगों को एक साथ लाना पुरानी कहावत को चुनौती देने जैसा है, अनूपपुर मुख्यालय में प्रेम कुमार त्रिपाठी, संतोष अग्रवाल, ओम प्रकाश द्विवेदी, गजेन्द्र सिंह के अलावा जैतहरी क्षेत्र में अनिल गुप्ता, भूपेन्द्र सिंह, राम अग्रवाल और नगर पालिका अध्यक्ष सभी यदि एक तरफ हो गये तो, विपक्ष तो खाली नजर आयेगा, यही समस्या कोयलांचल में राजू गुप्ता व रामअवध सिंह के सामने तो, विद्युत नगरी में मीना तनवर, जीतेन्द्र, मानेन्द्र सिंह के गुटों के बीच है, ग्रामीण क्षेत्रों जिसमें बरगवां से लेकर देवहरा, धिरौला, पटना, सकरा, जमुड़ी, खमरिहा, देवरी, पिपरिया, दुलहरा, पिपरिया, कांसा, कोड़ा क्षेत्रों में भी है।
मंच व अग्रिम पंक्ति का झगड़ा
बिसाहूलाल सिंह बीते दिनों कैबिनेट मंत्री बनकर अनूपपुर दौरे पर आये, इस दौरान भाजपा और बिसाहू भाजपा दोनों ने ही अगल-अलग स्थानों पर मंत्री का स्वागत किया, कई स्थानों पर रामलाल की भाजपा भी अगुवाई में नजर आई, अलग-अलग स्थानों पर तो, ठीक था, लेकिन जब एक मंच बनने की स्थिति नजर आने लगी, तो उसमें इन तीनों गुटों में से कौन मंच पर बैठेगा, कौन अग्रिम पंक्ति पर बैठेगा, यह कसमसाहट लगभग के मन में नजर आई। इस पूरे घटना क्रम में भाजपा के जिलाध्यक्ष खुद के घटते कद को लेकर विस्मित नजर आये, अनूपपुर में हुए कार्यक्रम के दौरान भाजपा जिलाध्यक्ष के फ्लैक्स पर पान की पीक डालना और आनन-फानन में फ्लैक्स हटवाना, इसी कसमसाहट का नतीजा था।