अदना सा कर्मचारी संभागीय अधिकारियों पर भारी

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किराये के मकान से हवेली तक का सफर
25 पंचायतों में चलती है अनिल शुक्ला की सल्तनत

(Amit Dubey-8818814739)
शहडोल। 102 ग्राम पंचायतों वाली जनपद पंचायत बुढ़ार में अनिल शुक्ला के पास बुढ़ार से लगी हुई ही 25 पंचायतें हैं, बताया गया है कि पदस्थापना के बाद से ही उनका इन पंचायतों पर कब्जा रहा है और शासकीय योजनाओं में भ्रष्टाचार और बंदरबांट कर करोड़ों रूपये की दौलत कमाई गई, इतना ही नहीं हर पंचायतों में ठेकेदार भी पैदा किये गये, इनके बदौलत ही शासन के खजाने में सेंध लगाई गई। आवंटित ग्राम पंचायतों में कराये गये निर्माण कार्याे की अगर जमीनी हकीकत देखी जाये तो नजारा ही कुछ और है, केवल नाम मात्र को काम कराये गये हैं और बाकी की रकम निकालकर बंदरबांट कर ली गई है, घर बैठकर कथित उपयंत्री के द्वारा मूल्याकंन किया जाता है, 25 ग्राम पंचायतों में कथित उपयंत्री के द्वारा भ्रष्टाचार की सभी सीमाएं पार कर दी गई।
लोकायुक्त में लंबित मामला
जनपद पंचायत बुढ़ार में वर्षाे पहले शौचालय घोटाला हुआ था, जिसकी जांच जिला प्रशासन के द्वारा कराई गई थी, जिसमें आज भी यह मामला लोकायुक्त भोपाल में लंबित है, जिसमें तात्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी राजेन्द्र त्रिपाठी सहित संबंधित ग्राम पंचायत के उपयंत्री और सरपंच और सचिवों को दोषी ठहराया गया था, जिला पंचायत ने जो रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें उसे कार्यवाही के लिए कलेक्टर कार्यालय भेजा गया था, लेकिन कलेक्टर कार्यालय से संभागायुक्त कार्यालय जब रिपोर्ट भेजी गई तो उपयंत्रियों के नाम गायब कर दिये गये, यह उस दौरान का सबसे बड़ा घोटाला था।
सूत्रधार उपयंत्रियों को बचाया
वहीं शौचालय घोटाले के मामले में ग्राम पंचायत के सरपंच और सचिवों से गबन की राशि वसूल की गई और एफआईआर तक की नौबत आई, अभी भी यह मामला लोकायुक्त भोपाल में लंबित है, तात्कालीन सीईओ हाईकोर्ट से स्टे पर हैं और ग्राम पंचायत के सरपंच, सचिव राशि जमा करने के बाद भी आपराधिक प्रकरण दर्ज न हो इसलिए हाईकोर्ट से स्टे लेकर अपने आप को बचाये हुए हैं, लेकिन घोटाले के सूत्रधार उपयंत्रियों को क्यों बचा लिया गया, यह एक बड़ा सवाल है। दी गई शिकायत में आयकर विभाग के अधिकारियों से इनकी संपत्ति और आलीशान मकान के निर्माण खर्च हुए रूपयों की जांच की मांग की गई है।
(बॉक्स बनाकर लगाये)
किराये के मकान से हवेली का सफर
आदिवासी विकास खण्ड बुढ़ार के जनपद पंचायत में पदस्थ संविदा उपयंत्री अनिल कुमार शुक्ला जब यहां पर पदस्थ हुए थे, तो वह आदर्श कालोनी में किराये के मकान पर रहा करते थे। कुछ ही अंतराल में उन्होंने पंचायतों में भ्रष्टाचार की वह इबारत लिखी कि अकूत दौलत के साथ ही जनपद कार्यालय के पीछे करोड़ों रूपये की आलीशान हवेली भी तान दी, शिकायत में उल्लेख किया गया है कि कथित उपयंत्री के द्वारा शासन की राशि में होली खेलकर कमाई गई अकूत दौलत, चल एवं अचल संपत्ति की जांच आयकर विभाग से कराई जाये तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है और कथित उपयंत्री आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार के आरोप में सलाखों के पीछे भी पहुंचेगा, शिकायतकर्ता ने कलेक्टर ललित दाहिमा और संभागायुक्त आर.बी. प्रजापति से उपयंत्री को बुढ़ार से अन्यंत्र स्थानांतरित करते हुए जांच कराने की मांग की है।
कागजों में दफन शिकायतें
ऐसा नहीं है कि अनिल शुक्ला के खिलाफ जिला और संभागीय मुख्यालय में शिकायत नहीं पहुंची, लेकिन पैसे और रसूख के बल पर शिकायतों को कागजों में ही दफन कर दिया गया। सूत्र बताते हैं कि उपयंत्री का सगा बड़ा भाई पूर्व में जिला पंचायत में पदस्थ था, जिसने सारे नियमों को तोड़ते हुए अनिल शुक्ला को बुढ़ार में ही पदस्थ रहने के साथ ही पंचायतें तक परिवर्तित नहीं होने दी।

। 102 ग्राम पंचायतों वाली जनपद पंचायत बुढ़ार में अनिल शुक्ला के पास बुढ़ार से लगी हुई ही 25 पंचायतें हैं, बताया गया है कि पदस्थापना के बाद से ही उनका इन पंचायतों पर कब्जा रहा है और शासकीय योजनाओं में भ्रष्टाचार और बंदरबांट कर करोड़ों रूपये की दौलत कमाई गई, इतना ही नहीं हर पंचायतों में ठेकेदार भी पैदा किये गये, इनके बदौलत ही शासन के खजाने में सेंध लगाई गई। आवंटित ग्राम पंचायतों में कराये गये निर्माण कार्याे की अगर जमीनी हकीकत देखी जाये तो नजारा ही कुछ और है, केवल नाम मात्र को काम कराये गये हैं और बाकी की रकम निकालकर बंदरबांट कर ली गई है, घर बैठकर कथित उपयंत्री के द्वारा मूल्याकंन किया जाता है, 25 ग्राम पंचायतों में कथित उपयंत्री के द्वारा भ्रष्टाचार की सभी सीमाएं पार कर दी गई।
लोकायुक्त में लंबित मामला
जनपद पंचायत बुढ़ार में वर्षाे पहले शौचालय घोटाला हुआ था, जिसकी जांच जिला प्रशासन के द्वारा कराई गई थी, जिसमें आज भी यह मामला लोकायुक्त भोपाल में लंबित है, जिसमें तात्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी राजेन्द्र त्रिपाठी सहित संबंधित ग्राम पंचायत के उपयंत्री और सरपंच और सचिवों को दोषी ठहराया गया था, जिला पंचायत ने जो रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें उसे कार्यवाही के लिए कलेक्टर कार्यालय भेजा गया था, लेकिन कलेक्टर कार्यालय से संभागायुक्त कार्यालय जब रिपोर्ट भेजी गई तो उपयंत्रियों के नाम गायब कर दिये गये, यह उस दौरान का सबसे बड़ा घोटाला था।
सूत्रधार उपयंत्रियों को बचाया
वहीं शौचालय घोटाले के मामले में ग्राम पंचायत के सरपंच और सचिवों से गबन की राशि वसूल की गई और एफआईआर तक की नौबत आई, अभी भी यह मामला लोकायुक्त भोपाल में लंबित है, तात्कालीन सीईओ हाईकोर्ट से स्टे पर हैं और ग्राम पंचायत के सरपंच, सचिव राशि जमा करने के बाद भी आपराधिक प्रकरण दर्ज न हो इसलिए हाईकोर्ट से स्टे लेकर अपने आप को बचाये हुए हैं, लेकिन घोटाले के सूत्रधार उपयंत्रियों को क्यों बचा लिया गया, यह एक बड़ा सवाल है। दी गई शिकायत में आयकर विभाग के अधिकारियों से इनकी संपत्ति और आलीशान मकान के निर्माण खर्च हुए रूपयों की जांच की मांग की गई है।
(बॉक्स बनाकर लगाये)
किराये के मकान से हवेली का सफर
आदिवासी विकास खण्ड बुढ़ार के जनपद पंचायत में पदस्थ संविदा उपयंत्री अनिल कुमार शुक्ला जब यहां पर पदस्थ हुए थे, तो वह आदर्श कालोनी में किराये के मकान पर रहा करते थे। कुछ ही अंतराल में उन्होंने पंचायतों में भ्रष्टाचार की वह इबारत लिखी कि अकूत दौलत के साथ ही जनपद कार्यालय के पीछे करोड़ों रूपये की आलीशान हवेली भी तान दी, शिकायत में उल्लेख किया गया है कि कथित उपयंत्री के द्वारा शासन की राशि में होली खेलकर कमाई गई अकूत दौलत, चल एवं अचल संपत्ति की जांच आयकर विभाग से कराई जाये तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है और कथित उपयंत्री आर्थिक अपराध और भ्रष्टाचार के आरोप में सलाखों के पीछे भी पहुंचेगा, शिकायतकर्ता ने कलेक्टर ललित दाहिमा और संभागायुक्त आर.बी. प्रजापति से उपयंत्री को बुढ़ार से अन्यंत्र स्थानांतरित करते हुए जांच कराने की मांग की है।
कागजों में दफन शिकायतें
ऐसा नहीं है कि अनिल शुक्ला के खिलाफ जिला और संभागीय मुख्यालय में शिकायत नहीं पहुंची, लेकिन पैसे और रसूख के बल पर शिकायतों को कागजों में ही दफन कर दिया गया। सूत्र बताते हैं कि उपयंत्री का सगा बड़ा भाई पूर्व में जिला पंचायत में पदस्थ था, जिसने सारे नियमों को तोड़ते हुए अनिल शुक्ला को बुढ़ार में ही पदस्थ रहने के साथ ही पंचायतें तक परिवर्तित नहीं होने दी।

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