अनूपपुर। … तो क्या सिर्फ चरणवंदना वाले ही अधिकारी करेंगे जिले का विकास

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विभिन्न विभागों के अन्य कर्मचारियों के न बोलने की सजा दे रहे मुखिया जी

इन दिनो अपने पद का उपयोग और दुरूपयोग करने में कोई कोर-कसर किसी के भी द्वारा नही छोडी जा रही है, नेता व अफसर चंद फायदो के लिए ईमानदार को बेईमान और बेईमान को ईमानदार बनाने में अपना पूरा अनुभव प्रकट कर देते है। मातहतो व स्वार्थपन के फेर में लोगों को हकीकत के सपने दिखाकर आंतरिक रूप से सिस्टम में परिवर्तन करना कहां तक जायज है। कुछ सालो के लिए उच्च पदो में नियुक्त हुए साहब ने भी अपनी जिम्मेदारी व लोकभावना के साथ जनमानस के हितो को भूल कर प्रक्रिया में परिवर्तन के लिए कार्यालय में ताला तक जडवा दिये, वैसे भी इतिहास में यह पहली घटना ही माना जायेगा, उसके बाद भी कार्यप्रणाली में परिवर्तन नही आया और अब शायद न जाने कितने कार्यालय में ऐसे विचार विमर्श सुनने को मिल जायेगें कि कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है।

अनूपपुर। जिला मुख्यालय होने के कारण कार्यालयों में लोगों का ज्यादा ध्यान आकृष्ट होता है, कर्मचारी तो हर जगह व किसी भी प्रकार की प्रक्रिया से जल्द ही अवगत हो जाते है, लेकिन उनका क्या जो इस प्रक्रिया के बाहा छोर के अन्य माध्यमों से लाभांवित होते है। समय सीमा में कोई भी कार्य नही हो पा रहा है, इस पर 6 माह बीत जाते है, इससे न तो मुखिया को और न ही अन्य जिम्मेदारो को कोई फर्क पडता है, लेकिन खुद का सिस्टम अगर जरा भी परिवर्तित हुआ तो पूरी रात्रि जागकर उस पर विचार करते है और कहा किसे फिट करना है उसकी तैयारी में जुट जाते है। ऐसा ही कुछ मामला इन दिनों मुख्यालय में चल रहा है। जिसके तहत 13 जनवरी को कलेक्टर कार्यालय के आदेश पत्र क्रमांक-222 के माध्यम से जिले के सबसे होनहार प्राचार्य दयाशंकर राव को जिला शिक्षा अधिकारी अनूपपुर का कार्यभार कलेक्टर द्वारा दिया गया है। यह पहला मौका नही जब कलेक्टर और विभाग की कृपा डी.एस. राव पर बरसी हो, वरिष्ठता की सूची में दर्जनों अन्य प्राचार्य भले ही कतार में खडे हो, लेकिन शार्टकट के रास्ते से लक्ष्य तक पहुंचने का हुनर रखने वाले दयाशंकर राव इससे पहले भी जिला शिक्षा केन्द्र के मुखिया (डीपीसी) के पद पर रह चुके है, यही नही इसी शार्टकट के रास्ते से डीएस राव ने बीते माहों में सहायक आयुक्त के पद को भी नवाजा था, श्री राव के सहायक आयुक्त रहने के दौरान ही जिले में कलेक्टर ने प्रदेश का पहला प्रयोग करते हुए करीब 5 करोड रूपए छात्रों को मुफ्त कोचिंग देने के लिए बनाई गई योजना को लागू किया था।
न बोलने की सजा दे रहे मुखिया
जिले के इतिहास में शायद यह पहला मौका होगा जब कलेक्टर ने अपने अधिकारो का उपयोग खुल कर किया हो, कहने को तो उन्होने शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने और आदिवासी जिले के ग्रामीण अंचलों से होनहार छात्रों को निखारने के लिए यह पूरा कार्य किया, लेकिन कलेक्टर पर मनमर्जी करने के आरोप लगते रहे है, यह अलग बात है कि अपने सर्विस रिकार्ड के फिक्र के कारण जिला शिक्षा केन्द्र, आदिवासी विकास विभाग और जिला शिक्षा कार्यालय में पदस्थ वरिष्ठ प्राचार्य खुलकर कभी भी सामने नही आये, लेकिन जिस तरह 18 अक्टूबर 2019 को कलेक्टर ने चार प्राचार्यो को शिक्षा विभाग से आदिवासी विकास विभाग का प्रभार सौपा और उसके बाद खफा प्राचार्यो ने संभागायुक्त से इस मामले में स्थगन लिया, लेकिन अक्टूबर से जनवरी आते-आते उन्हे इस हिमाकत के कारण निलंबन की मार तक झेलनी पडी, भले ही कागजों में आरोप जो भी लगाये गये हो, लेकिन वर्तमान में कोचिंग के फेर में जिले में जो चल रहा है वह वर्तमान से पहले शायद ही कभी चला हो।
तो क्या कोचिंग के फेर में हो रहा सब
शिक्षा विभाग में बीते सत्र तक सब कुछ शांत चल रहा था, जिला शिक्षा केन्द्र सहित सहायक आयुक्त कार्यालय एवं जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय सभी अपने कार्यो में लगे हुए थे, लेकिन कोचिंग की व्यवस्था वाले प्रयोग के नतीजे से भविष्य में जो आये, लेकिन यह माना जा रहा है कि इसी फेर में ओंकार सिंह धुर्वे को मॉडल अनूपपुर से खांडा एवं मुलायम सिंह परिवहार को खांडा से मॉडल अनूपपुर और पी.के. लारिया को अनूपपुर कन्या से मेडियारास व श्रीमती दिव्या श्रीवास्तव को मेेडियारास से कन्या अनूपपुर भेजा गया था। 18 अक्टूबर को जारी कलेक्टर के आदेश के बाद श्री धुर्वे ने संभागायुक्त का दरवाजा खटखटाया था, कलेक्टर के आदेेश के ठीक एक माह बाद 18 नवंबर को कमिश्नर आर.बी. प्रजापति ने संयुक्त संचालक लोक शिक्षण संचालक से लिखित सुझाव लेने के बाद मूलत: शिक्षा विभाग के कर्मचारी रहे श्री धुर्वे का आदिवासी विकास में किया गया स्थानांतरण रद्द कर दिया गया। कमिश्नर के इस आदेश पर लोक शिक्षण विभाग की आयुक्त जयश्री कियावत ने भी मुहर लगाते हुए 21 नवंबर को खांडा में किया गया स्थानांतरण निरस्त कर दिया, तभी से कलेक्टर और प्राचार्य के बीच शीत युद्व शिक्षा विभाग के गलियारो में नजर आने लगा।
नोटिस और राहत दोनो ही मिलते रहे
शिक्षा विभाग में वापस आने और मॉडल विद्यालय का प्रभार लेने के बाद छिडा शीत युद्व शांत नही हुआ, ऐसा माना जा रहा है कि इसी फेर में ही 17 दिसंबर को कलेक्टर कार्यालय द्वारा पुन: मॉडल विद्यालय के प्राचार्य ओंकार सिंह धुर्वे को लेशन प्लान, समय सारणी, बोर्ड परीक्षा की परिणाम सुधारना तथा संचालित नि:शुल्क कोचिंग में योगदान न देने के कारण नोटिस दिया गया, इस बार भी श्री धर्वुे ने कलेक्टर के पत्र और आरोपो को चुनौति दी और संभागायुक्त की शरण ली। पूरे मामले को संज्ञान में लेने के बाद 10 जनवरी को कमिश्नर ने कलेक्टर द्वारा जारी कारण बताओं सूचना पत्र को बिना किसी दण्ड व कार्यवाही के समाप्त करने के आदेश दिये।
और यहां से नही तो भोपाल से फिट कर दी सिस्टम
शिक्षा के जीर्णोद्वार के नतीजे चाहे जो आये, लेकिन इस फेर में कलेक्टर ने विभाग में पदस्थ प्राचार्यो के बीच दो फाड अवश्य कर दिये। एक तरफ डीएस राव जैसे प्राचार्य है, जिन पर कलेक्टर की कृपा इस तरह बरसी की कभी डीपीसी रहे श्री राव सहायक आयुक्त और अब जिला शिक्षाधिकारी के पद को सुशोभित कर रहे है वही ओंकार सिंह धुर्वे जैसे भी प्राचार्य है जिनके ऊपर मनमानी के आरोपों के बाद संभागायुक्त ने प्राप्त जवाबो को संतोषप्रद बताते हुए कार्यवाही बिना किसी दण्ड के समाप्त कर राहत दे दी, वहीं जब यह आरोप लोक शिक्षण कार्यालय भोपाल पहुंचे तो आयुक्त ने श्री धुर्वे पर निलंबन की गाज गिरा दी।

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