एक दशक बाद सिंदूर का कर्ज निभाने लौटा पति
माँ की चिता को अग्नि देना चाहती थी बेटी
पुलिस अधिकारियों सहित तहसीलदार पहुंचे मौके पर
(अनिल तिवारी+91 88274 79966)
चचाई/शहडोल। खुद के सुख व मस्ती के लिए अंजनी मिश्रा ने लगभग 35 साल तक जिसके साथ अपना जीवन बिताया और साथ जीने-मरने की कसमें खाई थी, उसे सेवा निवृत्त होने के बाद मिली दौलत और सुख के लिए एक पल में छोड़ दिया, यही नहीं कलयुगी पिता ने अपनी बच्ची को भी मां के साथ विद्युत नगरी कालोनी में भूखे मरने और भीख मांगने के लिए छोड़ दिया, शुक्रवार की शाम लंबी बीमारी के बाद जब अंजनी मिश्रा की वृद्ध पत्नी की जिला चिकित्सालय में मौत हो गई और बेटी उसे चचाई लेकर आई, इधर विद्युत नगरी के संभ्रांत लोगों को इसकी जानकारी लगी तो उन्होंने अंतिम संस्कार और हिन्दु धार्मिक रीति रिवाज के साथ अन्य कर्मकाण्ड पूरे कराने के लिए सामूहिक रूप से व्यवस्था भी कर दी, लेकिन इसी बीच यह खबर अनूपपुर मुख्यालय के सीतापुर में रहने वाले अंजनी मिश्रा को लगी और वह आधी रात को ही मृत रामबाई मिश्रा के शव को बच्ची से छुड़ाने वर्दीधारियों के साथ जा पहुंचा, रात से लेकर सुबह तक विवाद की स्थिति बनी रही। पुलिस, तहसीलदार व अन्य लोगों के हस्ताक्षेप के बाद मामला शांत तो हुआ, लेकिन बेटी के द्वारा मां की चिता को अग्रि देने और मरने से पहले मां के द्वारा कही गई अंतिम इच्छा भी बेटी पूरी नहीं कर पाई।
मरने के बाद भी अधूरी रही इच्छा
मृतक रामबाई मिश्रा की बेटी ने बताया कि बीते एक दशक के दौरान उसके पिता और समाज के अन्य ठेकेदार कभी भी सुध लेने नहीं आये, यही नहीं कई दिनों तक मां बीमार थी और विद्युत मण्डल के चिकित्सालय में भर्ती थी, यहां से रेफर कर जिला चिकित्सालय ले जाया गया, मां की मौत तक कोई भी ठेकेदार जो आज लाश ले जाने की जिद कर रहे हैं, सामने नहीं आये, मां-पिता जी के क्रियाकलाप और दूसरी औरत रखने के कारण उनसे घृणा करती थी, मरने से पहले भी उन्होंने अंतिम इच्छा जताई थी कि अंजनी को लाश मत छूने देना, मां की इच्छा थी कि उसका अग्नि संस्कार मेरे ही हाथों हो, लेकिन रात से ही पुलिस शव को उठाने के लिए दबाव बनाती रही और मैं चीखती रही, किसी ने मेरी नहीं सुनी।
यह किया समाज के ठेकेदारों ने
शुक्रवार की शाम को ही समाज के सभी ठेकेदारों की आत्मा जाग गई, जो बीते एक दशक से मरी पड़ी थी, कई रिश्तेदार भी वर्षाे के बाद घर आकर खड़े हो गये, जो कभी मां-बेटी को देखने तक नहीं गये थे, हिन्दु-धार्मिक रीति, रिवाजों की दुहाई देकर रोती बिलखती बेटी को बहला-फुसलाकर शव चचाई से सीतापुर लाया गया और अंतिम समय में जब अंजनी मृतिका के माथे पर सिंदूर भरने लगा तो बेटी ने खुलकर एतराज जताया, बेटी ने यह भी सवाल खड़े किये कि जिस सिंदूर का ख्याल नहीं था, आज उसका कर्ज चुकाने की याद कहां से आ गई।
…तो क्या इसलिए की नौटंकी
विद्युत नगरी में शनिवार को यह मामला काफी चर्चा में रहा, कालोनी के सैकड़ों महिला और पुरूष एनई कालोनी में मौके पर नजर आये, सभी इस बात को लेकर आशंकित थे कि 10 साल बाद आखिर अंजनी मिश्रा को अपनी बेटी और पत्नी की याद कहां से आ गई, यही वजह थी कि कालोनी वासियों ने अंतिम संस्कार और कर्मकाण्ड के लिए पूरी व्यवस्था कर ली थी, हालाकि इस दौरान यह चर्चा रही कि बेटी यदि मां की चिता को अग्नि देती है तो कल को वह मां की तरह संपत्ति पर हक न जताये, गौरतलब है कि वर्षाे पहले ही शादी के कुछ वर्ष बाद बेटी और दामाद में तलाक की स्थिति निर्मित होने के बाद वह कभी ससुराल नहीं गई और मां की सेवा करती रही। अंजनी को शायद इस बात का डर सता रहा था कि यदि कर्मकाण्ड और चिता को अग्नि बेटी देगी तो कल वह पिता की संपत्ति पर अपना हक भी जता सकती है।