काला सच : भूखे पेट, नंगे पांव @ छग के जोगीपुरा के प्रवासी पहुंचे शहडोल

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(शंभू यादव)
शहडोल। प्रदेश और केंद्र सरकार प्रवासी मजदूरों को घर तक पहुंचाने और उनके भोजन पानी की व्यवस्था के दावे तो कर रही है, बीते माहों में बसों और रेल के माध्यम से प्रशासन ने यह काम किया भी, लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में ऐसे मजदूर हैं जिनके पास ना तो पेट भरने के लिए पैसे हैं और नहीं पैरों में पहनने के लिए चप्पले हैं,बावजूद इसके कोरोना के डर से सैकड़ों किलोमीटर से पैदल ही अपने घर की चल निकले हैं।

मंगलवार की सुबह उत्तर प्रदेश के जौनपुर से कई साधनों से कई हिस्सों में सफर तय कर प्रवासी मजदूरों का एक जत्था शहडोल बाईपास पहुंचा।

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले अंतर्गत कोटा विकासखंड के जोगीपुरा के रहने वाले 27 की संख्या में प्रवासी मजदूर जिसमें पुरुष महिलाएं और दूध मुहें बच्चे भी शामिल है यहां पहुँचे। आपको बता दें कि जोगीपुरा वह स्थान है जिसे छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के ग्रह ग्राम के रूप में पूरे मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में जाना जाता है यहां से यह मजदूर करीब 6 से 8 माह पहले उत्तर प्रदेश के जौनपुर में काम करने के लिए गए थे ।

श्रमिक ने बताया कि 24 मार्च को लॉक डाउन के बाद भी उन्हें काम मिला था, लेकिन बीते डेढ़ महीने से उनका काम बंद हो जाने के कारण वहां से वापस घर आना के अलावा उनके पास कोई दूसरी व्यवस्था नहीं थी जौनपुर से अपने परिवार को लेकर प्रवासी मजदूर निकल पड़े लेकिन उन्हें छत्तीसगढ़ जाने का रास्ता मालूम था और नहीं जेब में इतने पैसे थे कि वे किराया तो दूर अपना दूधमुहें बच्चों का पेट भर सके।

उत्तर प्रदेश से पैदल चलते चलते यह मध्य प्रदेश की सीमा तक पहुंचे यहां से पुलिस वालों ने उनकी मदद की, एक वाहन में बैठाकर उन्हें भेज दिया गया। कटनी से दूसरा वाहन मिला जिसने आज सुबह ही उन्हें शहडोल के बाईपास चौराहे पर लाकर छोड़ा।

प्रवासी मजदूरों ने बताया कि उन्होंने कल मंगलवार सोमवार की सुबह 9:00 बजे के आसपास खाना खाया था ,उसके बाद उन्होंने और ना ही उनके छोटे बच्चों के मुंह में कोई निवाला गया है,बच्चों के पैरों में चप्पल नहीं है, कपड़े फटे हुए हैं,बस उन्हें किसी भी स्थिति में अपने घर जाने की चिंता है।

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श्रमिक ने यह भी बताया कि उसे घर जाने का रास्ता तक मालूम नहीं जेब में पैसे नहीं है,यही नहीं कल से हो रही लगातार बारिश और आज सुबह से हो रही रिमझिम बारिश के मैं उनके पास सर छुपाने तक कोई जगह नहीं है, प्रदेश और केंद्र सरकार ने जिला सरकारों को ऐसे प्रवासी मजदूरों की व्यवस्था करने के आदेश दिए हैं लेकिन उनके आदेशों का कितना पालन हो रहा है जिले के कलेक्टर और विभिन्न विकास खंडों में बैठे अनुविभागीय अधिकारी इस मामले में कितने गंभीर हैं अब यह बताने की आवश्यकता नहीं है।

बहरहाल देर से ही सही यदि शहडोल का जिला प्रशासन और स्थानीय समाजसेवियों ने इनकी सुध ले ली तो नशे के भूखे पेट भर जाएंगे बल्कि छत्तीसगढ़ जाने की व्यवस्था हो सकती है।

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