दिगर जिलों से आ रहे सब्जी के वाहन, आपनो पर बरस रही लाठयां

लॉकडाउन : हर दिन बदलते कायदों ने तोड दी किसानों की रीढ
एक दशक पीछे खसक गई काश्तकारो की आर्थिक स्थिति
जिले के दर्जनभर बडे कास्तकारो के खेतों में सड रही लाखों की सब्जियां
लॉकडाउन का तीसरा चरण 17 मई को समाप्त होगा, अभी तक के 50 दिनों में दिहाडी मजदूरो के अलावा सबसे अधिक परेशान जिले में सब्जी का उत्पादन करने वाले काश्तकार हुए है। मंडी तक सब्जी न पहुंचने के कारण जिनके खेतों में लगी सब्जियां सडने लगी है। इन परिस्थितियों ने काश्तकारो को आर्थिक रूप से तोड दिया है, कलेक्टर ने हर दिन कायदों को अपडेट तो किया, लेकिन इन काश्तकारो का दुख-दर्ज आज तक नजर नही आया।
अनूपपुर। जिला मुख्यालय से सटे दर्जनभर ऐसे ग्राम है, जहां पटेल और राठौर समुदाय के लोग बीते कई दशकों से बडे पैमाने पर सब्जियों का उत्पादन करते रहे है। अनूपपुर के अदरक, मुनगा, लहसुन ऐसी सब्जियां है, जिनके लिए अनूपपुर और अनूपपुर के काश्तकार पूरे देश में अपनी अलग पहचान बना चुके है। लॉकडाउन के दौरान इन काश्तकारो के यहां से सब्जियों के खुदरा विके्रता इतने दूर हो गये कि सामान्य दिनों की अपेक्षा सब्जियों के दाम आधे से भी कम करने के बाद भी इन्हे कोई लेने वाला नही मिल रहा है, राज एक्सप्रेस द्वारा की गई पडताल के दौरान यह बात भी सामने आई कि सब्जियों की विक्री के अभाव में प्रतिदिन टनो सब्जियां खेतों में ही नष्ट हो रही है।
हर दिन बदले कायदे, बनी परेशानी
24 मार्च से लेकर 10 मई तक कलेक्टर चंद्रमोहन ठाकुर ने सब्जियों के क्रय और विक्रय के लिए दर्जन भर कायदों को लगाया और रटाया, पहले तो सब्जियों की घर पहुंच सेवा के नियम ने ही इस धरती के भगवानों की कमर तोड दी, सब्जियों के फुटकर ग्राहकों के घरो तक शुरूआती दिनों से ही सब्जिया पहुंचाना न तो इन बडे काश्तकारो के हाथ में था और न ही खुदरा और सायकल में बिक्री करने वाले सब्जी विक्रेताओं के ही हाथ में था। सब्जी मंडी से दुकाने हटाकर उत्कृष्ट मैदान में लगवाना, थोक विक्रेताओं की अनूपपुर मंडी में दुकाने बंद करवाना आदि ऐसे निर्णय रहे, जिनके कारण इन बडे काश्तकारो के खेतों तक सब्जी लेने जाना और उसे निर्धारित समय में घरो तक पहुंच कर बेचना सबके लिए ढेडी खीर साबित हुआ।
अडतियों को हटाना प्रमुख कारण
मुख्यालय से सटे बस्ती, दुलहरा, पिपरिया, परसवार, मौहरी, के अलावा जैतहरी ब्लाक से सटे आधा दर्जन गांवों में रहने वाले ऐसे काश्तकार जो सब्जियों का थोक उत्पादन कर अनूपपुर सहित अन्य जिलों में बैठे अडतियों के माध्यम से सब्जियां खपाते थे, अडतियों की दुकान बंद होने के कारण उनकी यह चेन टूट गई, जिस कारण बडे मात्रा में सब्जियां खेतों में लगी-लगी सडने गली। बची कुची कसर लॉकडाउन-2 के दौरन मिली छूट के बाद अन्यंत्र जिलों से आ रही सब्जियों ने पूरी कर दी। अनूपपुर के काश्तकारो के यहां से सब्जियां दूसरे जिलों तो न जा सकी, लेकिन अन्यत्र से यहां सब्जियां अडतियों के घर होते हुए खुदरा व्यापारियों तक उपलब्ध होती रही, जिस कारण सब्जियों के दाम भी बढे और लॉकडाउन के दौरान जिले के सब्जी उत्पादन करने वाले किसानों के लिए कोई विशेष नीति न बनाये जाने का खामियाजा किसानों को भुगतना पडा।
खेत में ही बर्बाद हो रही सब्जियां
लॉकडाउन की मार जिन दो वर्गों पर सबसे ज्यादा पड़ी रही है वो मजदूर और किसान, जिले सहित आस-पास के इलाकों में बड़े पैमाने पर फल और सब्जी की खेती की जाती है, लेकिन लॉकडाउन के चलते इन फलस खेतों में ही सड़ रही है, जिले से सटे गांव में न तो खेतों में काम करने के लिए मजदूर मिल रहे हैं और न फल और सब्जियां मंडियों तक पहुंच पा रही है। कोरोना महामारी में सब्जी कारोबार ठप सा हो गया है। लॉकडाउन में एक माह से बाजार, मंडी, आवागमन सब बंद था। खेतों में तैयार सब्जियां सूखकर बर्बाद हो गई। किसान खेतों में मुरझा रही सब्जियों को देख चिंतित है। यदि लॉकडाउन के नियमों के पालन के साथ सब्जी कारोबारी को छूट मिली होती तो यह दिन देखने को नहीं मिलता। सब्जियों की निर्बाध आपूर्ति से मूल्य भी नियंत्रण में रहता। छिप छिपाकर छोटे कारोबारी देहात से साइकिल एवं ठेलों से सब्जी लाकर अधिक मूल्य पर शहरी क्षेत्र में बेच रहे हैं।
पूंजी निकालना मुश्किल
सब्जी की खेती करने वाले किसानों की लागत निकल पाना मुश्किल हो गया है। कुछ किसान तो व्यापारी न आने से खुद ठेले से सब्जी बेच रहे हैं। इन दिनों क्षेत्र में तरोई, अरवी, बैगन, टमाटर, लौकी, करेला की खेती लहलहाई है। अरमान था कि इससे अच्छी खासी पूंजी तैयार होगी। लेकिन समय की मार ने पानी फेर दिया। पिपरिया निवासी दुर्गेश पटेल ने खेत में हजारों की लागत से कई सब्जियों का उत्पादन किया गया है। अब पूंजी निकलना मुश्किल है। श्री पटेल ने बताया कि उनके खेत में सब्जी बर्बाद हो रही है।
औने-पौने दामों में सब्जी
क्षेत्र में टमाटर, लौकी, भिडी, खीरा, बैगन, ककड़ी, हरी मिर्च आदि की खेती तैयार है। लेकिन लॉकडाउन के चलते किसान अपनी सब्जियों का वाजिब दाम नहीं पा रहे हैं। खेत खाली करने के लिए किसान अपनी सब्जियों को औने-पौने दामों में बेच रहे हैं। आवागमन न होने से हरी सब्जियां आम ग्राहकों तक नहीं पहुंच पा रही है। होटल, रेस्तरां, शादी-विवाह सब बंद होने से सब्जियों की खपत भी कम हो गई है। परसरवार निवासी कैलाश पटेल व नारायण पटेल बताते हैं कि इन दिनों टमाटर 20-25 रुपये प्रति किलो बिकना मुश्किल हो गया है। लौकी 5 रुपये और भिंडी, बैगन का प्रति किलो 20 रुपये मिल रहा है।
खडी फसल में जुताई
ग्राम पोडी के किसान अनिल पटेल कहते हैं कि सब्जियों की फसल किसानों के लिए भी आमदनी का बहुत बढिय़ा जरिया है, लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के चलते किसानों की कमर टूट गई है, शहरों में सब्जियां कई गुना महंगी बिक रही हैं, लेकिन गांवों में किसानों की लागत भी डूब गई, कई सब्जी उत्पादक किसानों ने खेत जुतवा दिए हैं, बाग कटवा दिए हैं, श्री पटेल कहते हैं कि आलू को छोड़कर कोई भी दूसरी ऐसी फसल नहीं है जिसे ज्यादा दिन तक खेतों में रोका जा सके या फिर किसी तरह से स्टोर किया जा सके, क्षेत्र में फल, फूल व सब्जियों के लिए कोल्ड स्टोरेज की संख्या भी नाममात्र है, एक निश्चित समय के बाद किसान अगर सब्जियों को पौधे से नहीं तोड़ता है, तो वो पौधों को भारी नुकसान पहुंचाती है, ऐसी स्थिति में किसान या तो मजदूरी देखकर फसल की तुड़ाई करवाये या फिर खेतों में भगवान भरोसे फसल को छोड़ दे, करोना की वजह से सब्जियों की बेहद कम मांग होने के चलते अधिकांश फसल खेतों में सड़ रही है, इसलिए किसान सब्जियों की खड़ी फसलों की जुताई करवाना ज्यादा ठीक समझ रहे हैं।
मंडी में नही आ रही स्थानीय किसानों की सब्जियां
सब्जियों के थोक व्यापारी का कहना है कि अनूपपुर सब्जी मंडी में रोजाना कई क्विंटल परबल, गाजर, टमाटर, शिमला मिर्च, भिंडी, करेला, हरी मिर्च, ककड़ी, और कद्दू आदि बाहर से पहुंच रहा है, लेकिन स्थानीय किसानों को मंडी में जाकर बेचने की अनुमति न होने के चलते किसानों की सब्जियां खेतों में ही बर्बाद हो रही हैं, जिसका नुकसान भी किसानों को उठाना पड़ रहा है।