प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस से दिया था जीवन, उसका आवेदन जिला प्रशासन ने कर दिया निरस्त

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तो क्या…. आंखें मूंदकर जारी हो रहे ई-पास

मामला बुढार थाना अंतर्गत मासूम बच्ची का

..शहडोल से अन्यत्र जाने और आने के ई-पास अब ऑनलाइन स्वीकार किए जा रहे हैं, केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई यह पहल सराहनीय तो है, इससे अनावश्यक भीड़ और लोगों के आवाजाही में परेशानी पर विराम लगना था, लेकिन जिले में यह व्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ाती हुई नजर आ रही है, कलेक्टर ने जिन्हें इसकी जिम्मेदारी दी है वे आंखें मूंदकर प्राप्त आवेदनों को कैंसिल कर रहे हैं।

शहडोल। जिले के बुढार थाना अंतर्गत धनपुरी नगरपालिका के वार्ड नंबर 1 में रहने वाले व्यवसाई दिनेश मंगलानी की पुत्री ऋषिका मंगलानी थैलिसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है, बीते दो माह पहले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बच्ची के स्वास्थ्य के लिए ₹300000 की राशि खुद स्वीकृत कर दी गई थी, जिसके बाद इस राशि से हुए उपचार से बच्ची को नवजीवन मिला। तब से अब तक बच्ची को हर माह रक्त परिवर्तित करवाना पड़ता है, लॉक डाउन के दौरान यह समस्या और गंभीर हो गई, बच्ची को रक्त परिवर्तित कराने के लिए छत्तीसगढ़ के बिलासपुर ले जाना था, जिसके लिए परिवहन पास की आवश्यकता थी, बच्ची के पिता दिनेश मंगलानी ने शासकीय निर्देशों के अनुरूप ऑनलाइन आवेदन भरते हुए माननीय प्रधानमंत्री के द्वारा जारी किए गए हस्ताक्षरित पत्र, स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किया गया बीमारी से संदर्भित कार्ड , आवेदन पत्र के साथ ऑनलाइन अपलोड किया।अगले दिवस जिला प्रशासन द्वारा आवेदन को निरस्त कर दिया गया, जिससे पूरा परिवार ही पसोपेश में आ गया।

दिनेश को अपनी बच्ची को लेकर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जाना था, रक्त परिवर्तित करने की तारीख तय थी, लेकिन जिला प्रशासन द्वारा जब उसे इसकी अनुमति नहीं दी गई, तो पूरे परिवार के ऊपर मानो कोरोना से बड़ा संकट आकर खड़ा हो गया। बीते सालों से उन्होंने बच्चे को फूल की तरह सहेज कर रखा था, लगातार बीते माहों में पूरा परिवार बड़ी राशि खर्च कर विभिन्न समस्याओं से जूझते हुए उसका रक्त परिवर्तित करता रहा, लेकिन जिला प्रशासन के द्वारा जब अनुमति नहीं दी गई तो पूरा परिवार परेशानी में पड़ गया।

मोदी की मदद एडीएम की रोक

इसी वर्ष 24 फरवरी 2020 को कुमारी ऋषिका पिता दिनेश मंगलानी को खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने थैलेसीमिया जैसी गंभीर बीमारी से उपचार हेतु आर्थिक मदद दी थी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्ताक्षरित पत्र में खुद प्रधानमंत्री कार्यालय से पीड़ित को प्राप्त हुआ था, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा था कि आपकी आर्थिक स्थिति इस आपदा की पहुंच से बाहर है, मैं समझ सकता हूं , अतः प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से चिकित्सा हेतु आंशिक तीन लाख की सहायता मंजूर की गई है, प्रधानमंत्री की सहृदयता और दी गई सहायता राशि के बाद ऋषिका मंगलानी का उपचार संभव हो सका था, दिनेश मंगलानी ने उसके बाद अपनी बच्ची का इलाज महाराष्ट्र के नागपुर में करवाया और तब से हर माह नागपुर में संक्रमण रक्त को परिवर्तित कराने के लिए जाना पड़ता था,लेकिन नागपुर में जाना सम्भव न होने के कारण दिनेश ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में चिकीसको से सम्पर्क कर वहां के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था, दिनेश ने आवेदन के साथ उक्त पत्र के अलावा महाराष्ट्र सरकार द्वारा राज्य रक्त संक्रमण परिषद के माध्यम से बच्ची का बनाया गया कार्ड भी अपलोड किया था, बावजूद इसके शहडोल जिला कार्यालय में बैठे अनुमति देने वाले अधिकारियों ने उसे नजरअंदाज करते हुए अनुमति निरस्त कर दी।

मिलकर किया निवेदन तो मिली अनुमति

ऑनलाइन किये गए आवेदन की परिवहन अनुमति निरस्त होने के बाद पूरा परिवार सकते में आ गया, जिसके बाद शुक्रवार को इस संदर्भ में जिला प्रशासन से पुनः संपर्क किया गया,यह मामला कलेक्टर डॉ सत्येंद्र सिंह तक भी पहुंचा, जिन्होंने दोबारा आवेदन करने की बातें कहीं, जिसके बाद दिनेश मंगलानी द्वारा ऑनलाइन वही प्रपत्र दोबारा अपलोड कर आवेदन किया गया, शुक्रवार की दोपहर जिला प्रशासन ने परिवहन पास जारी कर दिया।

भटक रहे दर्जनों दिनेश

बुढ़ार के दिनेश मंगलानी नामक व्यवसाई जिले में अकेला नहीं होगा, विभिन्न आवश्यक कार्यों और गंभीर बीमारियों से पीड़ित ऐसे कई परिजन भी ऑनलाइन आवेदन जमा करने के बाद उनके निरस्त होने से परेशान है, सवाल ये उठता है कि यह मामला तो प्रकाश में आ गया और कलेक्टर की पहल से दोबारा आवेदन देने पर उसे परिवहन की अनुमति मिल गई, लेकिन जिला प्रशासन ने जिन लोगों को ऑनलाइन आवेदनों का निरीक्षण और पास जारी करने के अधिकार दिए हैं, वह अधिकारियों और उनके कर्मचारी क्या आंखें मूंदकर वहां बैठे हैं , जो ऐसी गंभीर बीमारियों में भी परिवहन पास जारी न कर उन्हें निरस्त कर रहे हैं

उपज सकता है कोविड-19 से बड़ा संकट

जिला प्रशासन और केंद्र तथा राज्य सरकार के साझा प्रयासों से भले ही जिले में कोविड-19 का कोई पॉजिटिव मरीज मिले या न मिले, लेकिन जिस तरह की लापरवाही कलेक्टर कार्यालय में बैठे अधिकारी परिवहन पास या अन्य मामलों में कर रहे हैं, उससे सैकड़ों ऐसे मरीजों की जान इलाज के आभाव में अवश्य जा सकती है, शनिवार को जिला चिकित्सालय में भी उमड़ी भीड़ इस बात की ओर संकेत दे रही है कि, जिला प्रशासन ने लाक डाउन में जिस तरह अपने आप को झोंक कर बाकी सब मामलों से अपना ध्यान हटा लिया है, वह परेशानी का बड़ा सबब बन सकता है,समय रहते यदि व्यवस्थाओं को दुरुस्त नहीं किया गया तो ऐसे कई दिनेश जैसे परिजन अपने परिवार वालों के लिए परिवार वालों का जीवन नहीं बचा पाएंगे।

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