खैरवार गैंगवार के चार माह बाद जाग रहे डीएम

भोपाल। उमरिया जिले के कलेक्टर स्वरोचिष सोमवंशी के ऊपर खैरवार गैंगवार के मुख्य आरोपी व गैंगस्टर पवन पाठक के बीच रिश्तों का खुलासा होने के बाद अब वह डैमेज कंट्रोल में जुटे हुए हैं, जिसके लिए गोदी मीडिया के साथ ही वॉटसएप यूनिवर्सिटी और सोशल मीडिया का सहारा लेने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। 13 दिसम्बर को चंदिया के खैरवार में गैंगवार हुई थी, लेकिन गैंगस्टर से उनके संबंधों का खुलासा बीते दिनों हुआ, इससे पहले उन्होंने कभी भी न्यायिक जांच पूरे घटना क्रम की कराने की नहीं सोची, बेनकाब होने के बाद अब वह आरोपों से इंकार कर न्यायिक जांच के आदेश देने की बातें कह रहे हैं।
वारदात के बाद क्यों नहीं दिये आदेश
जब भी कोई बड़ी घटना होती है तो, जिला दण्डाधिकारी उस मामले की न्यायिक जांच के आदेश बिन्दुवार देते हैं कि घटना किन परिस्थितियों में घटी और इसके लिए कौन जिम्मेदार है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जब डीएम और गैंगस्टर पवन पाठक के बीच रिश्तों का खुलासा हुआ तो, डीएम को चार माह बाद न्यायिक जांच कराने की सुध आ रही है, जो कि खुद ही कई सवाल खड़े कर रही है।

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अपने ही जवाबों में घिरे डीएम
हाल ही में एक इंटरव्यू कलेक्टर स्वरोचिष सोमवंशी का समाचार पत्र में सामने आया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह कलेक्टर हैं, रोजाना कितने लोग फोन पर बात करते हैं, यदि कोई गैंगस्टर मुझे फोन लगा दे तो, इसके लिए मैं दोषी कैसे हो सकता हँू, वहीं सवाल यह भी है कि जब भी इस संबंध में गोदी मीडिया को छोड़कर दूसरे लोग कलेक्टर से तथ्यों व साक्ष्यों के साथ बात करना चाहते हैं तो, वह फोन रिसीव नहीं करते या तो फिर कभी-कभी केवल मैसेज करते हैं कि अभी वह व्यस्त हैं।
डीएम भी करते थे गुफ्तगू
ऐसा नहीं है कि केवल पवन पाठक ही अपने मोबाइल क्रमांक …….. से डीएम स्वरोचिष सोमवंशी के सेल नंबर ……………पर फोन लगाया करता था, बल्कि नवम्बर और दिसम्बर माह में कलेक्टर ने मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के विभिन्न लोकेशनों में अपने उक्त नंबर से पवन पाठक को न सिर्फ एसएमएस भेजे, बल्कि बातें भी की। साहब यह जरूर भूल गये कि गोदी मीडिया में दिया गया इंटरव्यू कहीं उलटा न पड़ जाये। क्योंकि जो रिपोर्ट आलाकमान तक पहुंची हैं, उसमें यह भी अंकित है कि गैंगस्टर से एक दिन में कितने-कितने मिनट गुफ्तगू होती थी।
आखिर क्यों देनी पड़ रही सफाई
अगर मामले में सच्चाई नहीं है तो, गोदी मीडिया के सहारे साहब को सफाई क्यों देनी पड़ रही है, यह तो वहीं जाने और दूसरों को वह इस मामले में कुछ क्यों नहीं बोल रहे, कलेक्टर और जिलादण्डाधिकारी होने के नाते अगर यह मामला गलत था तो, जिला जनसंपर्क कार्यालय के माध्यम से पत्रकारवार्ता आयोजित कर सफाई देने के साथ ही सार्वजनिक रूप से खण्डन भी जारी करवाया जा सकता था, लेकिन इस मामले में दाल में काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है। शायद इसीलिए यह हत्थकंडे अपनाये गये। बहरहाल देखा यह होगा कि आगे अब साहब के सलाहकार उन्हें अब किस गड्ढे में धकेलने के लिए नई तरकीब बताते हैं।

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