बैकफुट पर डीएम: निरस्त चन्सुरा की अनुमति

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फिर भी कटघरे में गोवर्धे में स्वीकृत की गई खनन की मंजूरी

(अमित दुबे+8818814739)
उमरिया। खनिज विभाग कब क्या आदेश निकाल दे और किसे कटघरे में खड़ा कर दे, इस पर कोई शक नहीं हैं। गेहूं के भण्डारण की तीव्रत आवश्यकता की आड़ में चंदिया और मानपुर में कैप की स्वीकृति प्रदान की गई थी, खुद सरकारी आंकड़ों में 21 अप्रैल को चंदिया के कैप को पूर्ण होना और ठीक 2 दिन बाद मानपुर के कैप को पूर्ण होना बताया गया था, लेकिन 23 को इंदवार में हुई कार्यवाही के बाद 25 को राजधानी पत्र भेजकर प्रतिबंधित क्षेत्र चन्सुरा में रेत खनन की अनुमति विशेष शर्तों पर ले ली गई, इस मामले में राजधानी में बैठे अधिकारियों ने संज्ञान में लिया, ठीक उसके बाद डीएम खुद बैकफुट नजर आये और उन्होंने उक्त आदेश को निरस्त करते हुए चन्सुरा के स्थान पर गोवर्धे में रेत खनन की मंजूरी दे दी, जिस पर भी कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
गोवर्धेे से होगा खनन
खनिज विभाग के द्वारा उसी तिथि के आदेश निकाले जा रहे हैं, जो कि कई सवाल खड़े कर रहे हैं। 25 अप्रैल को अनुमति आती है कि चन्सुरा से रेत के खनन की मंजूरी खनिज संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा खनन की मंजूरी जारी कर दी गई है, उसी का हवाला देकर पुलिस की कार्यवाही को गलत बताया गया और अधिकारियों को गुमराह किया गया। अब उसी तिथि का एक आदेश सामने आया, जिसमें चन्सुरा के खसरा क्रमांक 61, रकवा 1.30 हेक्टेयर क्षेत्र के स्थान पर मानपुर तहसील के ग्राम गोवर्धे के खसरा क्रमांक 591/1228 रकवा 20.000 हेक्टेयर क्षेत्र से खनन और परिवहन की अनुमति जारी की गई है।
5 की जगह 3 हजार घन मीटर
पहले प्रस्ताव 5 हजार घन मीटर का राजधानी भेजा गया था, जिसे मंजूरी भी मिली थी कि चन्सुरा से 5 हजार घन मीटर रेत निकाली जा सकती है, लेकिन हाल ही के आदेश को अगर देखा जाये तो, उसमें जो उल्लेख किया गया है कि 3 हजार घन मीटर रेत चन्सुरा से निकाली जानी थी, अब वह रेत गोवर्धे से 15 दिवस के भीतर कैप का निर्माण करने वाले ठेकेदार को निकालकर परिवहन करनी होगी।
अचानक कम हुई खपत
एक ही दिन में 2 हजार घन मीटर रेत की खपत कम हो गई, जो कि समझ से परे है। 25 अप्रैल को ही जिस तेजी के साथ शासकीय कार्य के रूकने और रेत की उपलब्धता न होने की दुहाई देकर राजधानी से आदेश कराये गये, उसमें 5 हजार घन मीटर रेत की आवश्यकता चन्सुरा से दर्शाई गई थी, लेकिन उसी दिन अचानक 5 से 3 हजार घन मीटर रेत की जरूरत गोवर्धे में दिखाई गई, अचानक 2 हजार घन मीटर रेत की आवश्यकता क्यों कम पड़ी, यह बात किसी के गले से नहीं उतर रही है, यहां पर दाल ही नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आ रही है।
बेल्दी भण्डारण भी हुआ बंद
मानपुर तहसील के ग्राम बेल्दी में कटनी के संदीप वाजपेयी के रेत भण्डारण को जो अनुमति दी गई थी और वह दो दिनों तक संचालित भी था, उसे भी खनिज विभाग के द्वारा अचानक बंद कर दिया गया। विभागीय जानकारी के अनुसार भोपाल कार्यालय के आदेश के अनुसार कार्यवाही की गई है, जबकि सूत्रों की माने तो, उक्त भण्डारण को इसलिए बंद किया गया है कि अगर वह भण्डारण संचालित रहता और यह अनुमति जारी होती तो, कार्यप्रणाली सीधे तौर पर कटघरे में आ जाती। इसलिए भण्डारण को बंद करा दिया गया है, जब तक कि कैप की आड़ में गोवर्धे से अवैध उत्खनन और परिवहन न हो जाये, क्योंकि नियमों के तहत उक्त भण्डारण में भण्डारित रेत के उठान के लिए उसे निर्धारित समयावधि मिलेगी।
20 हेक्टेयर से उठेगी रेत
गोवर्धे पूर्व में माईंनिग कार्पाेरेशन के द्वारा संचालित रेत खदान थी, जिसे शिवा कार्पाेरेशन के द्वारा संचालित किया जाता था, संभाग की सबसे बड़ी रेत खदान में शुमार गोवर्धे सालाना 18 करोड़ से अधिक का राजस्व भी खनिज विभाग को दिया करती थी और उसका क्षेत्रफल भी बड़ा था, नई नीति आने के बाद उक्त खदान ठेेकेदार को आवंटित हुई है, जो कि 27 खदानों में शामिल है, मात्र 3 हजार घन मीटर रेत निकालने के लिए 20 हेक्टेयर क्षेत्र का दायरा स्वीकृत करना खनिज विभाग की कार्य प्रणाली को कटघरे में खड़ा करता है, क्योंकि रेत की मात्रा की नपाई और मूल्याकंन जल्द कर पाना आसान नहीं होता, इससे वैध की आड़ में अवैध उत्खनन को बढ़ावा मिलेगा। सूत्र बताते हैं कि यह पूरा खेल इसलिए खेला जा रहा है कि खनिज विभाग ने मोटी रकम रेत निकालने की आड़ में ली है, जिसके चलते वह चन्सुरा से अब गोवर्धे में अनुमति दे रहे हैं। इसके अलावा भी कई विकल्प थे, पर उन्हें नहीं चुना गया। कई भण्डारण ऐसे हैं, जिसे शुरू किया जा सकता था और रेत की पूर्ति हो सकती थी।
पोकलेन के साथ हाइवा
गोवर्धे में कैप ठेकेदार के द्वारा रेत खनन की पूरी तैयारी कर ली गई है और उसने वहां पर विशालकाय पोकलेन मशीन के अलावा कई हाइवा भी उत्खनन और परिवहन के लिए ला खड़े किये है, प्रमुख सचिव ने जिन शर्तों के तहत अनुमति दी है, उसमें इनका पालन हो रहा है कि नहीं इसकी जांच करने के लिए खनिज विभाग, राजस्व विभाग के अधिकारी पहुंचे हैं कि इस बात की जानकारी सामने नहीं आई, क्योंकि कोरोना महामारी को देखते हुए यह स्पष्ट निर्देश हैं कि वाहन चालक के अतिरिक्त एक सहायक ही रहेगा, सैनेटाइजर, सोशल डिस्टेसिंग के नियमों का पालन होना अनिवार्य है, खदान संचालक को मॉस्क, ग्लबस, सेनेटाइजर कर्मचारियों को उपलब्ध कराने होंगे और उक्त क्षेत्र को सैनिटाइज भी रोजाना कराना होगा। यह तो तय है कि ठेकेदार भी बाहरी है और उसके कर्मचारी भी बाहरी हैं, अगर थोड़ी भी लापरवाही हुई तो, ग्रामीण दिक्कत में आ सकते हैं।
प्रदूषित नदी में शामिल है सोन
एनजीटी ने प्रदेश की 22 नदियों को प्रदूषित माना है, जिनमें सोन नदी भी शामिल है, खनन प्रदूषण का एक मुख्य कारण है, रेत के खनन से जलवायु प्रदूषण होता है, वहीं टाइगर रिजर्व का क्षेत्र लगे होने से ध्वनि प्रदूषण भी बढ़ेगा। खनन से एनजीटी के आदेशों का उल्लंघन होगा।
मशीन और बड़े वाहनों पर रोक
राष्ट्रीय हरित अधिकरण की भोपाल स्थित बैंच ने प्रकरण क्रमांक ओए 20/2015 आदेश क्रमांक 27 दिनांक 26 जुलाई 2016 को आदेश पारित किया था कि किसी भी नदी में मशीन से रेत का खनन नहीं होगा और न ही बड़े वाहन परिवहन के लिए नदी में उतरेंगे, केवल व्यवसायिक उपयोग वाली पंजीकृत ट्रैक्टर ट्राली से ही मजूदरों के माध्यम से रेत का खनन और परिवहन होगा। बीमा भी इसी श्रेणी का होना चाहिए, आदेश आने के बाद सिया ने 358 वीं बैठक में 30 जुलाई 2016 को आदेश पारित करते हुए सभी संबंधित जिले के कलेक्टर और खनिज अधिकारियों को इस पर अमल में लाने के लिए निर्देशित किया था, लेकिन गोवर्धे में एनजीटी के इस आदेश भी धज्जियां उड़ेंगी, अगर मशीन और बड़े वाहनों से उत्खनन और परिवहन होगा। रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. शशांक जैन और एनजीटी में वकालत कर पर्यावरण के मामले उठाने वाले का कहना है कि नियमों और शर्तों का उल्लंघन मिलता है तो, संबंधित अधिकारी और कर्मचारियों के खिलाफ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत प्रकरण दायर किया जायेगा, वहीं आदलत के आदेश की अवहेलना का भी मामला जल्द ही न्यायालय पहुंचेगा।
नजदीक पहुंचा कोरोना
गोवर्धे में खनिज विभाग के प्रमुख सचिव के 22 अप्रैल के जिन निर्देशों का हवाला देकर संचालन की अनुमति जारी की गई है, उनकी ही धज्जियां उड़ाते हुए खनन की अनुमति जारी कर दी गई। शहडोल जिले के गोहपारू तहसील में सोमवार को 2 कोरोना पॉजीटिव केश मिले थे, जिसके बाद गोहपारू के दो क्षेत्रों को पूरी तरीके से प्रशासन ने सील कर दिया, मंगलवार को जो जानकारी सामने आई, उसमें गोहपारू और जयसिंहनगर जो कि सोन नदी और जिले की सीमा से लगा हुआ क्षेत्र है, दोनों कोरोना पॉजीटिव मरीजों के संपर्क गोहपारू और जयसिंहनगर के कई ग्रामों के लोग रहे हैं। जिसका आंकड़ा भी शहडोल जिला प्रशासन के द्वारा जारी किया गया है, गोवर्धे की सीमा शहडोल से लगी हुई है और कई ऐसे गुप्त रास्ते हैं, जहां से लोगों की आवाजाही बनी रहती है, वहीं नदी के रास्ते से भी लोग आया जाया करते हैं। बावजूद इसके गोवर्धे में खनन की अनुमति देना संक्रमण को बढ़ावा देने से कम नहीं है, क्योंकि कोविड 19 को जिस किसी ने भी आसानी से लिया है, उसने गंभीर परिणाम भुगते हैं। प्रमुख सचिव के आदेश में यह भी उल्लेखित है कि कोरोना वॉयरस संक्रमण की स्थानीय परिस्थिति के अनुसार संबंधित कलेक्टर खदान संचालन अथवा बंद करने के निर्देश जारी कर सकते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अवधेष पाण्डेय ने राज्य शासन से मांग की है कि गोवर्धे में दी गई खनन की अनुमति को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाये, ताकि संक्रमण का असर उमरिया न पहुंच सके।
शाम से नहीं हो सकता परिवहन
वाइल्डलाइफ बोर्ड के द्वारा प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व के नेशनल हाईवे एवं स्टेट हावे पर वन अधिनियम 1972 की धारा के तहत वन्य प्राणी विचरण क्षेत्र के सभी स्टेट हाईवे व नेशनल हाईवे पर जो कोर एरिया के अंदर से गुजरती है, वन्य प्राणी के सुरक्षा के दृष्ट से रात 6 बजे से सुबह 6 बजे तक सभी वाहनों का प्रवेश निषेध कर दिया गया है, वन अधिनियम के तहत रात्रि में बहुत सारे प्रजाति जैसे इसने टाइगर तेंदुआ भालू स्याही पेंगोलिं शॉप इत्यादि रात्रि में चलने वाले जानवर जो विचरण इन सड़क पर करते हैं। उपरोक्त जानवरों की सुरक्षा दृष्ट को देखते हुए वन अधिनियम की धारा के तहत भारी वाहनों का प्रवेश निषेध किया गया। गोवर्धे से चंदिया तक रेत का परिवहन होगा जिससे वन विभाग के नियमों का भी उल्लंघन होना तय है, लेकिन यहां पर किसी को कोई चिंता ही नहीं है।

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