यहां आदमी की औकात देख कर परोस रहे भोजन
मजदूर समाजसेवियों के हवाले, कोटा के छात्रों का स्पेशल कोटा
बिना जांच किये हर दिन जिले में प्रवेश कर रहे सैकडों प्रवासी मजदूर
क्वारंटीन सेंटरो पर नही है माकूल व्यवस्थाएं
(Amit Dubey-8818814739)
अनूपपुर। कोरोना संक्रमण का यह काल कब खत्म होगा, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन अगर इस विपरीत परिस्थितियों में हम सबने मानवता का और हमने अपनी पत्रकारिता के धर्म का पालन नही किया तो आने वाला समय और पीढी हमसे इस काल के संदर्भ में जब जवाब पूछेगी तो, हमारे सर शर्म न झुके इसका हमे आज ख्याल रखना होगा। जिले में बीते दिनों कोटा से 83 छात्रों को लाया गया, ये बच्चे हम सब के परिवारों के ही है, लेकिन जो मजदूर पडोसी जिलो व प्रांतो की सीमाएं लाघकर यहां से गुजर रहे है तथा जो अनूपपुर के मजदूर अन्य प्रांतो व जिलों से यहां वापस लौट रहे है, उन मजदूरो और कोटा से आये बच्चों की लिये जो व्यवस्था जिला प्रशासन ने की, उसने इंसानों को दो जमातों में बांट दिया।
आर्थिक विषमता की दीवार
जिला प्रशासन भले ही इस व्यवस्था को बिना गहराई से देखते हुए, कोरोना संक्रमण के इस काल की व्यस्तताओंं के कारण इन में फर्क न कर पाया हो, लेकिन अनूपपुर सहित पडोसी जिलों में भी इंसानो के बीच अनूपपुर जिला प्रशासन द्वारा किये जा रहे अलग-अलग व्यवहार व उनके बीच दी गई व्यवस्थाओं की दीवार ने पूरे प्रशासनिक अमले से सहित जिले के बुद्वजीवियों को कटघरे में खडा कर दिया है।
यह है प्रशासन का स्पेशल कोटा
प्रशासनिक सूत्रों की माने तो जिले के 83 बच्चे जो राजस्थान के कोटा में अध्ययनरत थे, उन्हे यहां बीते दिनों लाया गया, इन बच्चों को नवीन कन्या शिक्षा परिसर में क्वारंटीन किया गया था, प्रतिदिन चिक्त्सिकों द्वारा इनका स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता था, इन बच्चों को प्रशासन द्वारा 145 रूपए थाली वाला स्पेशल कोटे का भोजन उपलब्ध कराया जाता रहा, साथ ही सुबह-शाम बच्चों को नास्ता भी अलग से दिया जाता रहा।
यह है मजदूरो का असली कोटा
जिला प्रशासन द्वारा जिन मजदूरो को अन्यंत्र से अनूपपुर लाकर निकाय व ग्राम पंचायत अंतर्गत क्वारंटीन किया गया है उन्हे जो भोजन उपलबध कराया जा रहा है, वह स्पेशल न होकर असली कोटे का है। यह खाद्यान उन राशन दुकानों अर्थात कोटो से पंचायत व निकायों को उपलब्ध कराया जा रहा है, दोनो ही स्थानों पर परोसे जा रहे भोजन की गुणवत्ता, भोजन को देखकर आंकी जा सकती है।
दर्जनों की संख्या में मजदूर
जिले की सीमाओं में चारों तरफ से प्रतिदिन दर्जनों की संख्या में पैदल और साइकिलों में मजदूर महिला, पुरूषों व बच्चों का समूह प्रवेश कर रहे है, कोई छत्तीसगढ़ व उड़ीसा स्थित फैक्ट्रियों से निकाले जाने के बाद अनूपपुर में प्रवेश कर प्रदेश के अन्य जिलों और उत्तरप्रदेश सहित अन्य प्रांतों की ओर जा रहे हैं, वहीं लॉकडाउन-2 के दौरान छत्तीसगढ़ से बाहर काम करने गये मजदूरों की वापसी भी शुरू हो गई है, छत्तीसगढ़ से आ रहे मजदूरों की तुलना में वहां जा रहे मजदूर अकेले न होकर परिवार सहित हैं, जिसमें उनके साथ महिलाएं और दूधमुहें बच्चे तक शामिल हैं।
पेट भरने की भी समस्या
खाद्य प्रतिष्ठान बंद होने और पैसों की समस्या के कारण अब इन मजदूरों के सामने घर तक पहुंचने के अलावा पेट भरने की समस्या भी खड़ी हुई है। रविवार को हुई बारिश और इससे पहले लगातार चिलचिलाती धूप ने इनके पैरों में पड़े छालों को और विस्मित कर दिया है, इधर जिला प्रशासन ने लॉकडाउन में अन्य व्यवस्थाएं तो की हुई हैं, पुलिस और स्वास्थ्य अमला मुस्तैदी से जुटा है, लेकिन हजारों की संख्या में लगातार निकल रहे ऐसे मजदूरों के भूखे पेट और छत की समस्या को लेकर प्रशासन ने चुप्पी साधी हुई है। अभी तक कई स्थानों में स्थानीय समाजसेवियों द्वारा इन्हें भोजन तो उपलब्ध कराया जा रहा है, लेकिन इनकी जांच तथा जांच के प्रमाण पत्र न होने के कारण कोविड-19 के भय से इन्हें कहीं भी छत नसीब नहीं हो पा रही है।
ये कैसी सीमाएं
संभाग के सहित अनूपपुर जिले में प्रशासन द्वारा सीमाओं को सील किया गया है, जिले के अंदर प्रवेश करने वाले हर व्यक्ति के नाम दर्ज हो रहे हैं, लेकिन इन हजारों भूखे पेट लेकर पैदल चलने वाले मजदूरों की शायद न तो कहीं सूची बन रही है और न ही उनकी जांच हो रही है। सड़क तथा रेल मार्ग से ऐसे हजारों महिला व पुरूष मजदूर प्रतिदिन जिले की सीमाओं से होकर गुजर रहे हैं, लेकिन सीमाएं तो सील हैं।
कहीं संक्रमण न फैला दें मजदूर
सड़क तथा रेल मार्ग से अकेले व समूहों में गुजरने वाले मजदूरों की उनके मूल ठिकानों पर कोरोना संक्रमण संबंधी जांच का प्रतिशत भी न के बराबर है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि जिले की सीमा में प्रवेश करने और यहां से निकलने के बीच ये मजदूर कम से कम 50 से 60 किलो मीटर का सफर सघन बस्तियों, ग्रामों और नगरों से होकर तय करते हैं, इस दौरान वे भोजन के साथ ठहरने और स्थानीय लोगों से मिलते भी हैं, जिसके कुछ घंटों बाद वे दूसरे जिलों में चले जाते हैं।
राह में मिले भूखे पेट
जिला मुख्यालय में ही सोमवार को कल्याण सिंह, नंद गोपाल सिंह गौरी, शंकर सिंह दमोह से अपने घर वापस बैकुंठपुर जा रहे थे, 26 अप्रैल की सुबह 10 बजे निकले थे, वहां से पुलिस ने पेट्रोल टैंकर में बैठा दिया था, जो साम 5 बजे के लगभग कटनी पहुचे, वहां से नोवरोजबाद रात 9 बजे तक मेटाडोर से आये, रात वही रेलवे स्टेशन में गुजारी फिर पैदल बुढार तक आए। वहां से लिफ्ट लेकर अनूपपुर पहुंचे, जहां न तो समाजसेवी मिले और नही प्रशासन का ध्यान गया, बिना खाये पिए ये तीन नागरिक बैकुंठपुर तक का सफर बिना किसी संसाधन के पैदल ही अपने घर की ओर रवाना हो गये।