राजश्री-राजानी और कालाबाजारी

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अनूपपुर। लॉकडाउन-1 से लेकर 3 तक के 50 दिनों में केन्द्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार राजश्री जैसे अन्य गुटखो और पान मसालों पर लगा प्रतिबंध शायद जिले में लागू नही है। जिले का कोयलांचल क्षेत्र इसका हब बना हुआ है, जहां राजानी का राज चलता है। स्थानीय पुलिस से लेकर वाणिज्य कर विभाग के अधिकारी कर्मचारी व खाद्य एवं औषधि विभाग के जिम्मेदार सब अपना-अपना हिस्सा लेकर इस जहर को खुलेआम बिकने की छूट दिये हुए है।
हालत यह है कि बीते इन 50 दिनो में राजानी ने लाखों रूपए की काली कमाई सिर्फ निर्धारित मूल्य से अधिक में पान मसाला बेंच कर कमा लिये, जबकि कच्चे और पक्के के खेल में पिछली बार राजानी के यहां पडे छापे में लाखों की चपत लगने के बाद भी उन्हे कोई फर्क नही पडता, फर्क सिर्फ इस व्यवस्था में पडा कि जिन दो-चार जिम्मेदारों के नाम मासिक सूची में नही थे, अब वो नाम भी उसमें जुड गये।
सवाल यह भी उठता है कि प्रतिदिन सैकडों की संख्या में थोक में पाउच बेचने वाले कथित कारोबारी ने केन्द्र व राज्य सरकार के उस गाइडलाइन का भी पालन नही किया कि सार्वजनिक स्थान पर थूकने पर प्रतिबंध है। इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता कि हर गुटखा खाने वाला एक पाउच के दौरान आस-पास दर्जनों स्थानों पर पीक फेकता रहता है।
मुनाफे के चक्कर में राजानी जैसे कथित कारोबारी समाज के दुश्मन बने हुए है, उन्हे अपनी काली कमाई के आगे कोरोना संक्रमण और समाज की चिंता भी नही है। लॉकडाउन के बाद भी इनकी दुकानों और गोदामों से लगातार प्रतिबंधित पान मसाले की खरीदी और बिक्री बदस्तदूर जारी है। एक-एक झाल में राजानी जैसे कारोबारी 8 से 18 हजार तक अंदर कर रहे है, इसके साथ ही कर चोरी की राशि को जोडा जाये तो प्रतिदिन लाखों की काली कमाई हो रही है।लॉकडाउन-1 से लेकर 3 की शुरुआत तक के 50 दिनों में केन्द्र सरकार की गाइडलाइन के अनुसार राजश्री जैसे अन्य गुटखो और पान मसालों पर लगा प्रतिबंध शायद जिले में लागू नही रहा। अर्से से जिले का कोयलांचल क्षेत्र इसका हब बना हुआ है, जहां राजानी का राज चलता है। स्थानीय पुलिस से लेकर वाणिज्य कर विभाग के अधिकारी कर्मचारी व खाद्य एवं औषधि विभाग के जिम्मेदार सब अपना-अपना हिस्सा लेकर इस जहर को खुलेआम बिकने की छूट दिये हुए है।
हालत यह है कि बीते इन 50 दिनो में राजानी ने लाखों रूपए की काली कमाई सिर्फ निर्धारित मूल्य से अधिक में पान मसाला बेंच कर कमा ली, जबकि कच्चे और पक्के के इस खेल में पिछली बार राजानी के यहां पडे छापे में लाखों की चपत लगने के बाद भी उनकी सेहत पर कोई फर्क नही पडा, फर्क सिर्फ उस व्यवस्था में पडा कि जिन दो-चार जिम्मेदारों के नाम मासिक सूची में नही थे, अब वो नाम भी उसमें जुड गये।
सवाल यह भी उठता है कि प्रतिदिन सैकडों की संख्या में थोक में पाउच बेचने वाले कथित कारोबारी ने केन्द्र व राज्य सरकार के उस गाइडलाइन का भी पालन नही किया कि सार्वजनिक स्थान पर थूकने पर प्रतिबंध है। इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता कि हर गुटखा खाने वाला एक पाउच के दौरान आस-पास दर्जनों स्थानों पर पीक फेकता रहता है।
मुनाफे के चक्कर में राजानी जैसे कथित कारोबारी समाज के दुश्मन बने हुए है, उन्हे अपनी काली कमाई के आगे कोरोना संक्रमण और समाज की चिंता भी नही है। लॉकडाउन के बाद भी इनकी दुकानों और गोदामों से लगातार प्रतिबंधित पान मसाले की खरीदी और बिक्री बदस्तदूर जारी है। एक-एक झाल में राजानी जैसे कारोबारी 8 से 18 हजार तक अंदर कर रहे है, इसके साथ ही कर चोरी की राशि को जोडा जाये तो प्रतिदिन लाखों की काली कमाई हो रही है।

इनका मत…..

इस संदर्भ में दीपक राजानी के भाई और इस कारोबार में बराबर के साझेदार मुकेश राजानी कहते हैं कि अब तो कलेक्टर ने इसे बेचने की अनुमति दे दी है, परिवहन की अनुमति के संदर्भ में जानकारी नही है, वही तीन गुना अधिक मूल्य में राजश्री बेचने के संदर्भ में भी मुकेश राजानी ने कुछ नही कहा।

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