4 निर्दलियों ने उड़ाई नींद तो, भाजपा के असंतुष्ट भी गुप्त मतदान में कर सकते हैं खेल

(शंभू यादव/अनिल तिवारी+8818814739)
शहडोल। भारतीय जनता पार्टी के 17 पार्षद फिलहाल संगठन के साथ खड़े नजर तो आ रहे हैं और नगर पालिका में सबसे पहले पहुंच भी गये हैं, लेकिन गुप्त मतदान में उनका मत किधर जाता है, यह कुछ घंटो बाद ही साफ हो पायेगा।
दूसरी तरफ 4 निर्दलीय पार्षद ने नगरपालिका के पिछले दरवाजे से प्रभात नामक कांग्रेस पदाधिकारी के साथ नपा कार्यालय में प्रवेश कर लगभग यह संकेत दे दिये हैं कि चारो निर्दलीय कांग्रेस के पक्ष में ही रहेंगे। इधर अभी तक कांग्रेस के 17 पार्षद नगरपालिका नहीं पहुंच हैं। इस गणित के साथ अगर कांग्रेस 17 और 4 निर्दलीय मिलकर 21 पार्षद होते हैं, इसके बाद भी कांग्रेस को भाजपा के 6 पार्षदों की आवश्यकता पड़ेगी, दूसरी तरफ भाजपा कार्यालय में आज सुबह 17 भाजपा के पार्षद और 1 निर्दलीय पार्षद कुल 18 अध्यक्ष के समर्थन में दिखे।
विभीषणों पर टिकी अध्यक्ष की कुर्सी
अभी से कुछ देर बाद इस पूरे घटना क्रम का समापन किसी निष्कर्ष के साथ तो हो ही जायेगा, लेकिन तब तक कांग्रेस और भाजपा दोनों के खेमे में उहा-फोह की स्थिति बनी हुई है। अध्यक्ष की कुर्सी भाजपा के पास रहेगी या नहीं अब यह फैसला भाजपाईयों की ईमानदारी पर ही टिका है। पूर्व में अविश्वास प्रस्ताव लाने के दौरान जिस बड़ी संख्या में भाजपा पार्षदों ने विरोध का बिगुल फूंका था, यदि वह स्थिति बनी रहती है और विभीषण इतिहास को दोहराते हैं तो भाजपा की इस लंका में सेंध लग सकती है और यदि ऐसा नहीं हुआ तो भविष्य में कांग्रेस को अपना उपाध्यक्ष बचाने के लिए भी फिर एक बार नये सिरे से प्रयास करने होंगे।
1 साल तक नही कर सकते
नगर पालिका अध्यक्ष के कार्यकाल को दो साल का समय भी बीत चुका है। पूर्व में स्थानीय निकायों के अध्यक्षों को हटाने के लिए पब्लिक वोटिंग का प्रावधान था, लेकिन 2013-14 में हुए चुनावों में अध्यक्षों के चुनाव की शक्ति पार्षदों को दे दी गई, इसलिए उन्हें हटाने का अधिकार भी पार्षदों को दिया गया है। इसमें अध्यक्ष को हटाने के लिए तीन चौथाई वोट चाहिए। अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए कलेक्टर को प्रस्ताव दिया जाता है, इसमें तीन चौथाई पार्षदों के हस्ताक्षर होते है, इसके बाद कलेक्टर बैठक बुलाते हैं। इसमें भी तीन चौथाई सदस्य रहना जरूरी हैं। अगर कोरम पूरा नहीं होता है तो प्रस्ताव खुद ही खारिज मान लिया जाता है। इसके बाद एक साल तक अविश्वास प्रस्ताव का दावा नहीं किया जा सकता। उसके बाद फिर किया जा सकता है, लेकिन फिर पूर्व की तरह ही प्रक्रिया अपनाई जाती है।

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