63 हजार क्विंटल गेहूं रहा लक्ष्य से कम, उपार्जन तिथि बढ़ी

30 करोड़ रुपए का भुगतान अभी भी बकाया, किसान परेशान
(Amit Dubey+8818814739)
शहडोल। गेहूं उपार्जन का लक्ष्य पूरा नहीं होने से उपार्जन की अंतिम तिथि 15 मई से बढ़ा कर 31 मई कर दी गई है। अब तक कुल लक्ष्य 2 लाख 77 हजार क्विंटल के विरुद्ध लगभग 2 लाख 14 हजार क्विंटल खरीदी की जा सकी है। जो कि लक्ष्य से 63 हजार क्विंटल कम है। पंजीकृत 11960 किसानों में से कुल 6362 किसानों ने गेंहू उपार्जन प्रक्रिया में भाग लिया है। देखा जाए तो लगभग 50 फीसदी किसान अभी भी उपार्जन प्रक्रिय्रा से दूरी बनाए हुए हैं। इसी तरह ऋण वसूली के पश्चात किसानों के कुल भुगतान 37 करोड़ 21 लाख में से अब तक मात्र 7 करोड़ 60 लाख का भुगतान किया गया है। लगभग 29 करोड़ 61 लाख का भुगतान आज भी बकाया है। जिसके लिए किसान परेशान हैं। नागरिक आपूर्ति विभाग द्वारा की जा रही खरीदी की इस प्रक्रिया में गेहूं की आवक मंद गति से चल रही है। अगर तिथि आगे नहीं बढ़ाई जाती तो शायद लक्ष्य पूरा नही हो पाता। सवाल यह है कि किसानो की संख्या में आज भी आशाजनक बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है। पंजीकृत किसानों की संख्या के 50 फीसदी किसान आखिर अपना गेहूं कहां दे रहे हैं। इस पर प्रशासन की कोई मॉनीटरिंग नहीं हो रही है।
व्यापारियों की घुसपैठ बरकरार
ग्रामीण क्षेत्रों में गल्ले के बड़े व्यापारी सक्रिय हैं जो दलालों के माध्यम से किसानों तक पहुंच रहे हैं। इस कार्य में कुछ उपार्जन केन्द्रों के कर्मचारी स्वयं बिचौलियों की भूमिका निभा रहे है। व्यापारी घर बैठे किसानों से समर्थन मूल्य पर गल्ला खरीद रहे हैं। जो कि आने वाले समय में मण्डी में मनमाने दामों बेचा जाएगा। गेहंू का दाम बढ़ेगा। यदि यही गेहूं उपार्जन केन्द्रो में बेचा जाता तो इसका उपयोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली में किया जाता और गेहूं का दाम लगभग स्थिर रहता। शासन ने उपार्जन प्रक्रिया शुरू अवश्य की पर उसमें अधिक नियंत्रण नहीं कर पाने से व्यापारी उसका लाभ उठा रहे हैं। किसानों को चूंकि घर बैठे राशि मिल रही है गल्ला बिक रहा है इसलिए वे भी उपार्जन केन्द्र जाने और वाहन भाड़ा भरने की जहमत उठाना नहीं चाहते।
ऋण वसूली के बाद भुगतान
बताया गया कि किसान इसलिए भी उपार्जन केन्द्रों में गेहूं लाना नहीं चाहते क्योंकि एक तो उनका भुगतान अब तीन दिवस में नहीं हो पाता है। उसके लिए उन्हे काफी दिनों तक केन्द्र के चक्कर काटने पड़ते हैं। इसके अलावा उनका भुगतान ऋण राशि काटकर की जाती है। जिन किसानों ने सरकार से ऋण ले रखा है उन्हे यह मंजूर नहीं कि उनका भुगतान काटा जाए। वहीं जब व अपना गेहूं व्यापारी को देता है तो उसे घर बैठे पूरा भुगतान प्राप्त हो जाता है। इसलिए किसान भी व्यापारियों को गल्ला बेचने में रुचि दिखाते हैं। इसकी एक वजह और भी है व्यापारी गल्ला लेते समय अधिक आनाकानी नहीं करते वे मानक अमानक का अधिक विचार नहींं करते हैं। इसलिए किसानों के लिए व्यापारी ही अधिक मुफीद रहते हैं।
उत्पाद शुल्क से मतलब
धान व गेहूं के उपार्जन से कृषि उपज मण्डी को संपूर्ण उपार्जन राशि का दो प्रतिशत उत्पाद शुल्क प्राप्त होता है। इसके लिए उसे कुछ करना नहीं पड़ता है। इस तरह हर साल उसे लाखों रुपए की आय होती है जबकि उसके द्वारा अपने मूल दायित्व का निर्वाह भी नही किया जाता है। किसानोंं से संपर्क कर उन्हे अधिक आय के लिए नीलामी प्रक्रिया हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यह उनका दायित्व है इसके लिए मण्डी में सरकार ने दो बड़ेे शेडों का वर्षों पहले निर्माण भी कराया है, लेकिन यह शेड भी मण्डी के निकम्मेपन की कहानी कहते सूने पड़े हैं। मण्डी के कर्मचारी किसानों को न तो नीलामी प्रक्रिया की जानकारी देते हैं और न उन्हे प्रोत्साहित किया जाता है।
जड़ें जमाए बैठे कर्मचारी
उपार्जन केन्द्रों में कार्यरत प्रबंधक वर्षों से एक ही स्थान पर जमे हुए हैं। जबकि इन पर आरोप भी लगते रहते हैं। इन प्रबंधकों की जड़ेंं निकल आईं हैं और केन्द्रों मेें इनकी मनमानी चलती है। किसान भी इनकी कार्यशैली और रुखे व्यवहार से संतुष्ट नहीं रहते हैं। इनसे भी किसान हतोत्साहित होते हैं और केन्द्रों में जाना नहीं चाहते हैं। ऐसे कर्मचारियों का तत्काल स्थानांतरण आवश्यक है। अन्यथा उपार्जन प्रक्रिया का जो लाभ सरकार किसानों को दिलाना चाहती है वह कभी संभव नहीं हो पाएगा। उपार्जन केन्द्रों के कर्मचारी ज्यादातर आसपास क्षेत्रों के ही रहते हैं वे उपार्जन प्रक्रिया का जमकर लाभ उठाते हैं। इसके अलावा केन्द्रो की दशा सुधारने और किसानो की सुविधा बढ़ाने की ओर भी इनकी खास रुचि नहीं रहती है।