जहां शिक्षक हैं वहां बच्चे नही , जहां बच्चे हैं वहां शिक्षक नहीं
विसंगतिपूर्ण शासकीय व्यवस्था, अतिथि शिक्षक नहीं पहुंच रहे
नगर की कई स्कूलों में बच्चों की संख्या न्यूनतम होने के बावजूद यहां शिक्षकों की भरमार है जबकि दूसरी ओर
ग्रामीण स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। अतिथि शिक्षकों की भर्ती हुई पर उनकी ज्वाइनिंग अभी तक नहंी हुई।
स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं हैं। जिले में शिक्षा की व्यवस्था काफी लचर और चिंताजनक है।
शहडोल। विभागीय अफसरों की उदासीनता के कारण नगर के शैक्षणिक जगत का हाल बेहाल है। प्राथमिक शालाओं
की सर्वाधिक दुर्दशा है। किसी स्कूल में 10, तो किसी में 8, तो कहीं 5 बच्चों के होने की जानकारी मिली है। जबकि यहां
मास्टरों की भरमार है। दूसरी ओर ग्रामीण स्कूलों में शिक्षकों का अकाल पड़ा हुआ है। नियमत: प्रति प्राथमिक स्कूल
में बच्चों की संख्या न्यूनतम 40 होनी चाहिए। लेकिन नगर में संचालित इन स्कूलों की हालत ऐसी है कि यह लगभग
बंद होने की कगार पर पहुंच गईं हैं। इन स्कूलों की हालत मेें सुधार लाने के लिए न तो शाला का स्टाफ प्रयास करता है
और न अधिकारी इनकी मदद करते हैं। जायजा लेने मॉनीटरिंग करने के लिए बीईओ, डीइओ, बीआरसी, बीएसी ढेरों
अधिकारी कर्मचारी हैं लेकिन इन स्कूलों की हालत देखकर ही ज्ञात होता है कि कौन कितनी शिद्दत से अपने कर्तव्य
का निर्वाह कर रहा है।
बच्चों की संख्या शून्य
पाण्डवनगर अंतर्गत बीआरसी आफिस और डाइट के ठीक बगल में संचालित सिंधी भाषा भाषी प्राथमिक विद्यालय
वर्षों से बदहाल है। बताया गया कि यहां छात्रसंख्या मेंं दिनोदिन गिरावट आती रही और आज हालत यह है कि यहां
एक भी बच्चा अध्ययनरत नहीं है। वर्तमान मे यहां बतौर शिक्षक एक मेडम कार्यरत हैं। हैरानी की ही बात है कि एक
स्कूल जो कि बीआरसी कार्यालय के पड़ोस में स्थित है लेकिन उस स्कूल की इतनी दुर्दशा हो गई कि वह लगभग बंद
सी हो गई। जबकि निगरानी और व्यवस्था की जिम्मेदारी बीआरसी, बीएसी की ही है।
इन स्कूलों को भी देखिए
नगर में स्थित कई स्कूलें ऐसी हैं जहंा बच्चों की संख्या 10-12 से अधिक नहंी है। वहां कई टीचर पदस्थ हैं। जबकि
इतने टीचरों की आवश्यकता नहीं है। इतवारी मुहल्ला बालक प्राथमिक शाला, माडल बेसिक, करन तलैया प्राथमिक
शाला, नगरसेना कार्यालय के पीछे स्थित सोहागपुर आजाक बालक प्राथमिक शाला, वार्ड नंबर 6 पाण्डवनगर
प्राथमिक पाठशाला आदि ऐसी कई स्कूलें गिनाई जा सकतीं हैं जहां छात्र संख्या नाममात्र की बची है। कहने को तो
शासन का स्कूल चलो अभियान जून से ही शुरू हो जाता है। बच्चों के लिए घर घर संपर्क करने की ड्यूटी लगा दी जाती
है लेकिन इसके बावजूद बच्चे नही मिल रहे हैं। जाहिर सी बात है कि सारा अभियान कागज पर ही चल रहा है।
भर्ती का सत्यापन हो रहा
जिले की दर्जनों स्कूलें ऐसी हैं जहांं शिक्षकों की भारी कमी है। ऐसी स्कूलों में ग्रामीण स्कूलों की बहुलता है। शिक्षकों
की आपूर्ति के लिए अतिथि शिक्षकों की अक्टूबर माह में भर्ती की गई लेकिन कहीं भी शिक्षकों ने अभी तक ज्वाइन
नहंी किया है। पता चला है कि अभी तक इनकी भर्ती का सत्यापन किया जा रहा है। शिक्षा सत्र का 6 माह बीत गया है
अभी तक स्कूलों में शिक्षक नहीं पहुंचे है। स्पष्ट है कि 6 माह तक यहां बच्चों की पढ़ाई लगभग ठप्प ही रही। ज्वाइन
कर शैक्षणिक कार्य आरंभ करते करते जनवरी बीत जाएगा। मार्च से अतिथि शिक्षकों की सेेवा समाप्त हो जाती है।
समझा ही जा सकता है कि सरकारी स्कूलों की पढ़ाई कैसी चल रही है और किस तरह वहां पढ़ाने वाले पहुंच रहे हैं।