उपभोक्ताओं के पेट में हुई कटौती, नहीं बंटा फ्री चावल

सार्वजनिक वितरण प्रणाली भी दामन समेट रही, क्या खाएंगे निर्धन?
शहडोल। समाज के अंतिम छोर पर खड़े लोगों का पेट भरने वाली सार्वजनिक वितरण प्रणाली दिनोदिन सिमटती जा
रही है। शक्कर, गेहूं, मिट्टीतेल आदि का वितरण तो पहले ही बंद कर दिया गया था अब केवल चावल दिया जा रहा
था लेकिन इस माह उसमें भी कटौती कर दी गई है। उपभोक्ताओं को चालू माह में जो कि अपने अंतिम पड़ाव पर है
केवल प्रदेश शासन का चावल मिला है। केन्द्र सरकार की रहमत से वह इस बार वंचित कर दिया गया है। कोटेदार
बताते हैं कि अभी वह चावल गोदाम में ही नहीं आया है। जो उपलब्ध था उसे बांट दिया गया है। मुफ्त में दिया जाने
वाला चावल शायद सरकार के लिए भी मंहगा पड़ रहा है। इसलिए अब उसमें भी हीला हवाली की जा रही है।
फ्री वाला नहीं मिला चावल
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था के अनुरूप वर्तमान में केन्द्र सरकार की ओर से फ्री चावल दिया जा रहा है
और जबकि प्रदेश सरकार की ओर से एक रुपए किलो भुगतान पर दिया जा रहा है। वितरण का प्रावधान यह है कि
पात्रता पर्ची के प्रति सदस्य को 5 किग्रा के मान से चावल दिया जा रहा है। यह मान केन्द्र व प्रदेश दोनो के वितरण में
लागू होता है। लेकिन इस बार केन्द्र सरकार की ओर सेे दिया जाने वाला फ्री का चावल उपभोक्ताओं को आवंटित नहीं
किया गया है। जिससे उनमें एक तरह की चिंता व्याप्त है।
गोदाम में नहीं पहुंचा
सूत्रों के अनुसार केन्द्र सरकार का चावल इस माह अभी तक गोदामों में नहीं पहुंचा है। उसका कारण क्या है यह
अधिकारी छिपा रहे हैं अथवा वे गोलमेाल जानकारियां दे रहे हैं। अनुमान यह लगाया जा रहा है कि शासन इस तरह
का फ्री चावल देना बंद करने की योजना बना रही है। अन्यथा यह चावल अब तक निर्धारित समय पर गोदामों तक
पहुंच जाता था। शासन के इस रवैये से उपभोक्ता चिंतित हैं। कई कोटेदार उपभोक्ताओं को केवल आश्वासन दे रहे हैं
कि जल्दी आएगा और बांटेगे।
बट्टेखाते में गया चावल
उपभोक्ताओं का मानना है कि यह माह चार-छह दिन शेष है और अब तक जो चावल नहीं दिया गया है वह मानो
बट्टेखाते में चला गया है। उसका वितरण शायद ही हो सकेगा। पहले भी जो गल्ला वितरण से रह जाता था वह बाद में
नहीं बांटा जाता था। कोटेदार गोलमोल जवाब देकर टरकाता रहा है। कुछ दिन बाद नया माह नया साल लग जाएगा
पिछला माह जो बीत गया उसका लेखा कौन लगाएगा?
अफसर मॉनीटरिंग नहीं करते
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारी राशन दूकानों का न तो भ्रमण करते हैं और वितरण व्यवस्था पर नजर रखते
हैं। कोटेदार मनमानी करता रहता है और जनता त्रस्त होती रहती है। लेकिन प्रशासन को उससे कोई सरोकार नहीं
रहता है। जिले में इन दिनों चार सौ से भी अधिक राशन दूकाने संचालित हैं लेकिन अधिकांश दूकानों मेें न तो स्टाक
को सार्वजनिक किया जाता है न कहीं पारदर्शिता बरती जाती है। वितरण की स्थिति क्या है यह पता नहीं चलता है।
जबकि इन्हे सार्वजनिक किए जाने का प्रावधान है।