अस्पतालों में न डाक्टर रहते, न पशुओं का इलाज होता

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असहाय हैं जिले के 6.50 लाख मवेशी, कृषक योजनाओं से वंचित
जिले में मौजूद लगभग 6.50 लाख पशुओं का संरक्षण संवद्र्धन करने शासन ने पशु चिकित्सा सेवा विभाग
अंतर्गत विविध योजनाओं सहित कृषकों का जीवन स्तर सुधारने रोजगार मूलक योजनाएं संचालित की हैं। लेकिन
इन योजनाओं का लाभ नाममात्र के लोगों को ही मिल पा रहा है।

शहडोल। शासन की मंशा का लाभ इसलिए नहीं मिल पा रहा है क्योंकि एक तो वेटनरी अस्पतालों में चिकित्सा अमले
का अभाव है और जहां स्टाफ है भी वहां ड्यूटी नहीं करता और अनियमितताओं में लिप्त रहता है। इसका उदाहरण
गोहपारू अस्पताल है, जहां पदस्थ डॉक्टर यदाकदा ही अस्पताल में आता है। ग्रामीण यहां आकर निराश लौट जाते हैं।
हांलाकि डाक्टर को कई बार विभाग द्वारा चेतावनी दी जा चुकी है, लेकिन उसके रवैये में सुधार नहीं हो रहा है। बड़े
अधिकारी भी कभी अस्पतालों की मॉनीटरिंग नहीं करते हैं। यही नहीं कृषकों के साथ चौपाल लगाने के निर्देश भी हैं
लेकिन कभी कोई अधिकारी चौपाल नहीं लगाता है।
35 अस्पताल 23 डाक्टर
जिले में कुल 35 की संख्या में पशु चिकित्सालय हैं, जबकि डाक्टरों की उपलब्धता मात्र 23 ही है। यहां 12 डाक्टरों की
एक अर्से से कमीं है। इसी तरह कंपाउण्डरों के कुल 160 पद हैं जिनमें से मात्र 80 ही भरे हैं। शेष 80 पद रिक्त हैं। जिन
अस्पतालों में डाक्टरों व कम्पाउण्डों की कमी है वहां व्हीएफओ की विजिट निर्धारित की गई है। उन्हे अस्पतालों और
गांवों में भ्रमण कर पशुओं के रोग की जानकारी तथा बीमार पशुओं की जानकारी लेकर उनका इलाज करना चाहिए।
लेकिन व्हीएफओ भी कभी क्षेत्र का भ्रमण नहीं करते हैं।
ड्यूटी नहीं करते डाक्टर

जिन अस्पतालों में डाक्टर मौजूद हैं वहां भी डाक्टर कभी उपस्थित नहीं रहते हैं। ग्रामीण अपने बीमार मवेशियों को
लेकर वहां पहुंचते हैं लेकिन उनकी बीमारियों की जांच करने वाला कोई डाक्टर वहां नहीं रहता ग्रामीणों को निराशा ही
हाथ लगती है। इसके अलावा जानकारी मिली कि जब ग्रामीण डाक्टरों से किसी प्रकार संपर्क करते हैं तो उनसे जांच
करने का पैसा मांगा जाता है। पशु इलाज के नाम पर डाक्टर वसूली करने में व्यस्त रहते हैं। गोहपारू अस्पताल
इसका उदाहरण है। यहां पदस्थ डाक्टर एक तो कभी अस्पताल में नहंी रहते और फिर ग्रामीणों से पैसे की मांग करते
हैं। इनकी कई बार शिकायत भी हो चुकी है।
योजनाओं की जानकारी नहीं
शासन की मंशा है कि विभाग की जनहितकारी योजनाओं का ग्रामीणों में प्रचार प्रसार कर उन्हे योजनाओं से जोड़ा
जाए। इसके लिए गांवों में शिविर लगाया जाए और चौपालों का भी आयोजन किया जाए। लेकिन विभाग द्वारा न तो
पर्याप्त शिविर लगाए जाते हैं और न चौपालों का आयोजन किया जाता है। इसीलिए कृषकों तक शासन की योजनाओं
का प्रचार प्रसार नहीं हो पाता है। यही कारण है कि जब कहीं से किसी ग्रामीण को योजना की जानकारी मिलती है तो
उसे भ्रमित कर भ्रष्टाचार किया जाता है। इसके लिए भी विभाग अमले की कमी का रोना रोता रहता है।
टीकाकरण भी बंद है
मवेशियों का टीकाकरण अभियान भी वैक्सीन की कमी के कारण बंद था। बताया गया कि जिले के अधिकारियों ने
समय से शासन को जानकारी नहंी भेजी थी। यद्यपि अब कुछ रोगो की वैक्सीन लगाई जा रही है लेकिन इसे कुछ
पहले ही लगा दिया जाना चाहिए था। ज्ञातव्य है कि केवल टीकाकरण ही मवेशियों के उपचार का एकमात्र उपाय रह
गया है विभागीय अधिकारी उसमें भी लापरवाही बरतते हैं। पशुओं के संरक्षण और संवद्र्धन का शासकीय संकल्प पूरा
होता प्रतीत नहीं हो रहा है।
इनका कहना है
पशु चिकित्सालयों की सतत मॉनीटरिंग की जाएगी और उनमें सुधार लाया जाएगा। अनुशासनहीनता व
अनियमितता की जानकारी मिलने पर कार्रवाई की जाती है।
डॉ. ओपी सिंह
अति. डिप्टी डायरेक्टर
पशु चिकित्सा सेवा विभाग
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