अवैध कालोनियां बनाने हड़प रहे तालाब

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      सरकारी जमीनें भी बेच रहे, शिकायत के बाद भी कार्यवाही नहीं

शहडोल। संभाग मुख्यालय व उसके आसपास स्थित ग्रामीण अंचलों में राजस्व अमले तथा ग्रामपंचायत सचिव की साठगांठ से सरकारी जमीनो व तालाबों का अस्तित्व नष्ट हो रहा है। लेकिन जिला प्रशासन रोकथाम की दिशा में कोई
कड़े कदम नहीं उठा रहा है। नगर के अंदर तालाबों के रकबे व मेढ़ आदि काट कर कालोनियां बन रही हैं ग्रामीण क्षेत्रों में भी यही स्थिति है। सचिव, सरपंच व उपसरपंच जिसे जहां जो मिल रहा है सब निजी स्वार्थ साधने में उपयोग कर रहे हैं। समीपी ग्रामपंचायत चापा, कुदरी, गोरतरा, कोटमा, कल्याणपुर आदि मे यही स्थितियां हैं। शासन ने पूर्व में करीब 19 सौ मामले अवैध प्लाटिंग व कालोनाइजिंग के पकड़े थे लेकिन उसमें कहीं कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। माफिया व पटवारियों के हौसले बुलंद हैं। तालाब का पता नहीं ग्राम पंचायत चापा अंतर्गत स्थित ग्राम कुदरी में एक तालाब उपसरपंच के घर के समीप स्थित था जिसे अब ढूंढ़ पाना कठिन है। पहले मेढ़ काटकर मिट्टी बेची गई फिर भराव एरिया को समाप्त करा दिया गया। अब वहां समतल जमीन दिखाई पड़ रही है। इस संबंध में कई बार शिकायत भी की गई लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। शासन राजस्व रिकार्ड के अनुसार इस तालाब की खोजबीन नहीं कर रहा है। यह स्थिति केवल एक पंचायत में नहीं है कई और पंचायतों में देखने को मिलती है जहां जलाशयों से छेड़छाड़ की गई है। काफी जमीन बेच दी गई है। कोटमा ग्राम पटवारी भी कुछ कम नहीं है। ग्रामीणों के अनुसार वह पहले तालाब की मेढ़ों पर कब्जा करने को उकसाता है फिर उसी का सौदा कर लेता है। यहां तालाबों में दर्जनों घर बन चुके हैं। कोटमा के कई तालाबों की मेढ़ बिक चुकी है। यही नहीं गांव की चरागन भूमियों को व अन्य सरकारी भूमियों को बेच रहा है। एक
शासकीय बता कर झूटी शिकायत की गई थी। जिससे ग्रामीण काफी दिनों तक परेशान रहा। यही नहीं यही प्रक्रिया बरुका, छतवई आदि के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी देखने को मिल रही है। ग्रामीण अंचलों कुदरी, गोरतरा, कोटमा आदि में गगन चुम्मी कालोनियां खड़ी कर ली गईं हैं। जबकि नियमत: पंचायतों में ऐसे बड़े कार्यों की अनुमति लेनी पड़ती है, विधिवत एक निर्धारित शुल्क जमा करने के बाद एनओसी प्राप्त कर निर्माण प्रारंभ कराया जाना चाहिए। लेकिन बताया गया कि कालोनाइजर से सचिव साठगांठ कर अपना कमीशन लेकर अनुमति दे देते हैं और ग्राम पंचायत के राजस्व का नुकसान होता है। सरकारी जमीनों पर कालेानियां खड़ी कराने में पटवारी व सचिव दोनो मिलकर खेल खेलते हैं। इसके बाद जब सुविधांए देने की बात आती है तो सचिव अपनी परेशानी बताने लगते हैं। तालाबों पर कालोनियां तानना भी अब धीरे धीरे आम होता जा रहा है। मुख्यालय के नरसरहा तालाब की हालत देखी जा सकती है। तालाब के रकबे में कालोनी का निर्माण कराया गया है। बताया गया कि कई वर्षों पूर्व तक वहां मेढ़ थी बाद में मेढ़ धीरे-धीरे खतम हो गई। अब उसी जगह नगर के गैरलायसेंसी कालोनाइजरों ने वहां कालोनी खड़ी कर दी है। हैरानी की बात यह है कि ऐसी आपत्तिजनक संरचनाएं जिले के शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूद हैं लेकिन जिला प्रशासन को कड़े कदम उठानेे में पसीना छूट रहा है। इसलिए लोगों के हौसले और भी बुलंद हैं।

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