8 साल में नहीं बन पाई 73 किलोमीटर सडक़

सडक़ निर्माण एजेंसी को कायदों की नहीं परवाह
मामला एनएच-43 के उमरिया-शहडोल सडक़ निर्माण का
इन्ट्रो-333 करोड़ का बजट और 73 किलोमीटर की सड़क, वर्ष 2015 से सडक़ का निर्माण शुरू हुआ और वर्ष 2023 खत्म होने को है, लेकिन अभी ऐसा लगता है कि पूरा कार्य होने में लगभग 2 वर्ष लगेंगे, इधर निर्माण, उधर सड़क की फजीहत, इतना ही नहीं निर्माण के नाम पर दर्जनों स्थानों से अवैध उत्खनन, अमिलिहा में मौत की खाई और कुछ ऑन रिकार्ड-कुछ ऑफ रिकार्ड मौते और अब उन स्थलों से सड़क के निर्माण के नाम पर पत्थर व मुरूम का अवैध उत्खनन और विक्रय।
उमरिया। वर्ष 2015 में उमरिया से शहडोल सडक़ निर्माण के लिए जीव्हीआर कंपनी को ठेका दिया गया था। उक्त कंपनी द्वारा सडक़ कार्य में लगातार लेटलतीफी की जा रही थी, साथ ही काम भी नहीं किया जा रहा था। जिसे देखते हुए वर्ष 2018 में सड़क निर्माण की जिम्मेदारी टीबीसीएल को दी गई। जिसे फरवरी 2020 तक की समयावधि दी गई। इस समयावधि में सड़क निर्माण कार्य पूरा किया जाना था, केन्द्र सरकार की राष्ट्रीय राजमार्गाे के विकास और पूरे देश में इनका जाल बिछाने की यह योजना भले ही दिगर प्रदेशों और जिलों में फलीभूत हुई हो, लेकिन शहडोल संभाग में इस योजना का जो हश्र हुआ, वह किसी से छुपा नहीं है। प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-43 के निर्माण की जिम्मेदारी मध्यप्रदेश सडक़ विकास निगम ने ठेका पद्धति के माध्यम से अलग-अलग एजेंसियों को दी थी, शहडोल संभाग में तीन पैंचों में काम होना था, जिसमें शहडोल से मनेन्द्रगढ़ का काम दिलीप बिल्डकॉन ने निर्धारित अवधि से पहले ही पूरा कर दिया, दूसरा पैच उमरिया से कटनी का था, वह भी पूर्ण हो चुका है, तीसरा पैच उमरिया से शहडोल का था, यह पैच कब पूरा होगा, यह कहना अब मुश्किल होता जा रहा है।
333 में हुआ था ठेका
उमरिया व शहडोल के बीच के लगभग 73 किलोमीटर सडक़ निर्माण के लिए मध्यप्रदेश सडक़ विकास निगम के माध्यम से जीव्हीआर नामक कंपनी को वर्ष 2015 में 333 करोड़ का ठेका दिया गया था, जीव्हीआर ने काम तो शुरू किया, लेकिन कंपनी की महत्वकांक्षा के कारण यह काम अधर में लटक गया और सडक़ को निर्माण के लिए खोद तो दिया गया, लेकिन बाद में दुर्घटनाओं के लिए खुदी सडक़ छोड़ दी गई। बाद में यह काम बुढ़ार के तिरूपति बिल्डकॉन नामक फर्म को दे दिया गया। वर्ष 2015 में शुरू हुआ काम 8 वर्षाे में भी पूरा नहीं हुआ, एमपीआरडीसी के सूत्रों की माने तो, संभवत: ठेका अवधि दो से तीन बार बढ़ाई गई, इसके साथ ही राशि को बढ़ाया गया, जिसके चलते शासन को नुकसान उठाना पड़ रहा है, इसके अलावा ठेका कंपनी ने सडक़ निर्माण में गुणवक्ता की अनदेखी की है, लेकिन आज तक ठेकेदार पर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं हुई।
दुर्घटनाओं का बढ़ता ग्राफ
2015 में जब सड़क का निर्माण शुरू करने के लिए जीव्हीआर कंपनी यहां पहुंची, तब से लेकर अब तक शहडोल से लेकर उमरिया मुख्यालय तक के मुख्य मार्ग में पडऩे वाले थानों में दर्ज सडक़ दुर्घटनाओं के आंकड़े निकाले जाये तो, पूर्व की तुलना में कई गुना अधिक मौते हुई हैं। यही नहीं मौतों का कारण तथाकथित कंपनी के द्वारा खोदे गये गड्ढे और सूचना पटल न लगाना प्रमुख है। वर्तमान में दुर्घटनाओं का सिलसिला अभी भी जारी है, मजे की बात तो यह है कि निर्माण के लिए सडक़ में खोदे गये गड्ढे दुर्घटना कारण तो, हैं ही, जहां सडक़ बनी है, उस सडक़ में पड़ी दरारे और मानकों से परे हटकर हो रहा निर्माण दुर्घटनाओं का बड़ा कारण है।
खदान को बना दी खाई
शहडोल संभागीय मुख्यालय से सटे ग्राम अमिलिहा में सड़क निर्माण के लिए पत्थरों का उत्खनन किया जा रहा है, उत्खनन स्थल को टीबीसीएल के द्वारा न तो तारो या फिर किसी अन्य माध्यम से घेरा बनाकर सुरक्षित किया गया है और न ही वहां चौकीदार आदि की भी व्यवस्था की गई है, जिससे कम से कम मूक पशुओं को तो, खाई में जाने से रोका जा सके। उक्त खदान के आस-पास पर्यावरण नियमों के अनुरूप पौधों का रोपण भी नहीं किया गया है, हैवी ब्लास्ंिटग के माध्यम से अवैध रूप से हुआ उत्खनन मौत की खाईयों में तब्दील हो चुका है, प्रशासन ने यदि समय रहते उत्खनन पर रोक नहीं लगाई और खाईयों को पाटने का काम शुरू नहीं कराया तो, यह मौत की खाईयां पता नहीं कितने ग्रामीणों का काल बन सकता है।
मानक नहीं किया पूरा
333 करोड़ के भारी-भरकम बजट आवंटन के बाद भी सरकार की मंशा 8 वर्षाे में तो पूरी नहीं हुई और न ही आने वाले 1-2 वर्षाे में पूरी होती नजर आ रही है, इस दौरान तथाकथित दोनों कंपनियों ने यह जरूर किया कि पहले निर्मित सडक़ को खोद दिया गया, शहडोल से उमरिया तक सैकड़ों स्थानों पर गड्ढे और डायवर्सन तथा धूल के गुब्बारे राहगीरों का नसीब बन गये, यह बात हमेशा समझ से परे रही कि सडक़ का निर्माण एक-दो या पांच स्थानों से शुरू न करके, दर्जन भर स्थानों से शुरू किया, कहीं दायें तो कहीं बायें मार्ग की सड़क खोदकर गड्ढा बना दिया, जो सडक़ बनी भी है, वह शायद ही निर्माण के बाद मानकों पर खरी उतरे।
टीबीसीएल पर नहीं हुई कार्यवाही
निर्माण एजेंसी टीबीसीएल के द्वारा यहां सडक़ के नाम पर खाईयों का निर्माण तो कर दिया गया, लेकिन इसके साथ ही उक्त कंपनी और आस-पास के अन्य खनिज माफियाओं के लिए यह स्थल चारागाह बन चुका है, यहां बड़े पैमाने पर पत्थरों का अवैध उत्खनन और विक्रय पूरे शबाब पर है, चूंकि यह क्षेत्र उमरिया जिले के अंतिम छोर पर स्थित है और निर्माण का जिम्मा खनिज विभाग के सबसे बड़े सेवादार टीबीसीएल के पास है, संभवत: इसीलिए न तो यहां कभी खनिज अधिकारी या निरीक्षक आते हैं, जिस कारण अवैध कारोबारियों के हौसले बुलंद हैं।
इनका कहना है…
ठेका की समयावधि दिसम्बर 2023 थी, यह सही है, वर्तमान में सडक़ अधूरी है, रेलवे सहित कई विभागों से अनुमति नहीं मिल पाई है, हम प्रयास कर रहे हैं कि जल्द अनुमति मिल जाये, जहां सडक़ टूटी है, वहां काम होगा, बाकी पत्थर खदान सहित अन्य खामियों की बातें करें तो, सभी के अपने-अपने विभाग हैं, उन्हें देखना चाहिए। आगे ठेका बढ़ेगा या नहीं, यह काम मिनिस्ट्री का है।
अशीष पटेल
डीएम
एमपीआरडीसी