खेल मैदानों की सुविधा बिना हतोत्साहित हो रहे खिलाड़ी बच्चे

ग्राम पंचायतों को बजट मिला फिर भी नहीं बने मैदान
शहडोल। ग्रामीण अंचलों की खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने तथा उन्हे खेल अभ्यास की सुविधा देने के लिए लगभग एक दशक पूर्व शासन ने प्रत्येक ग्रामपंचायत को खेल मैदान विकसित करने के निर्देश दिए थे तथा बजट भी आवंटित किया था। लेकिन अधिकांश पंचायतों में आज भी खेेल मैदान नहीं हैं जबकि बजट का अता पता नहीं है। शासन के संवेदनशील होने और भारी धन राशि प्रदान करने के बावजूद खिलाड़ी बच्चों को मैदानों की सुविधा नहीं मिल सकी। बताते हैं कि सरपंच व सचिव ने इस धन राशि को आहरित कर दूसरें मदों में व्यय कर दिया। एक पूर्व सरपंच ने बताया कि वह राशि वापस हो गई थी। ग्रामपचंायतों की भर्रेशाही का बच्चे भी खामियाजा भुगत रहे हैंं।
मैदान के लिए स्थल नहीं मिला
बताया गया कि जब शासन के निर्देश प्राप्त हुए थे तब सचिवों ने मैदान के लिए स्थलों की तलाश शुरू कर दी थी। लेकिन तलाश करने के बाद उन्होने सरपंच के साथ मिलकर चुप्पी साध ली। बच्चों के हित का मामला होने के कारण न तो शासन के निर्देश का कोई प्रचार प्रसार किया गया और न किसी को भनक लगी। कुछ दिन बाद मामला ठण्डे बस्ते में चला गया। आज भी अधिकांश पंचायतों मेंं मैदान नहीं है। पंचायतों का कार्यकाल परिवर्तित होता चला गया ओर मैदानों का मामला भी लोग भूलते चले गए।
जहां मैदान बने, इस तरह से बने
जिन पंचायतों में मैदान बने वहां ऊबड़ खाबड़ सरकारी जमीन का थोड़ा बहुत समतलीकरण करा मैदान घोषित कर दिया गया। मैदान की साफ सफाई के बाद समुचित रूप से समतलीकरण कराना उनमें बाउण्ड्रीवाल बनाना यह कार्य नही किया गया। बाद मेें भी मैदानों का रखरखाव नहीं कराया गया। बच्चे कुछ दिन तक तो इन्ही मैदानों में खेलते रहे जब जमीन फिर से ऊबड़ खाबड़ हो गई तेा उसमें खेलना बंद कर दिया। अब पंचायतों का कहना है कि मैदान के रखरखाव के लिए जब बजट आएगा तब रखरखाव किया जाएगा। मनरेगा मद से अन्य कार्य कराए जा रहे हैं।
स्कूलों में भी नहीं मैदान
अधिकांश स्कूलों में भी मैदान नहीं हैं कि जहां बच्चे खेलकूद कर अपना स्वस्थ मनोरंजन कर सकें। उन्हे न तो स्कूल में खेलने की पर्याप्त सुविधा मिलपाती है और न गांव में ही कहीं मैदान हैं। वे अपने खेलों का अभ्यास कर पाने में असमर्थ हैं। हालत यह है कि ग्रामीण अंचलेां के बच्चे पड़ती जमीनों में खेलों का थोड़ा बहुत अभ्यास कर लेते हैं अन्यथा उनका अधिकांश समय घर में ही बीत जाता है। वे खेलों के लिए खुले परिवेश के लिए सिसकते रहते हैं।
आउटडोर खेलों के लिए चाहिए मैदान
क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल जैसे आउटडोर खेलों के लिए लम्बे चौड़े मैदान की बहुत आवश्यकता रहती है। मैदान बिना यह खेल संभव नहीं रहते हैं। ज्ञातव्य है कि हर साल खेल स्पर्धाओं के लिए शासन द्वारा खेल कलेण्डर जारी होते हैं जिनमें करीब 36 प्रकार के खेेल शामिल होते हैं। इन तीन दर्जन खेलों में से एक भी ख्ेाल ऐसा नहीं है जिसका नियमित अभ्यास कराया जाता हो। स्कूलों मेें न मैदान है न खेल प्रशिक्षक , खेलेां की किट भी नहीं दी जाती है। कहां से अभ्यास होगा और कौन खेलेेगा? अहम सवाल यही हैं।