“जाति प्रमाण पत्र की बाज़ीगरी में मात खा गए मुबारक मास्टर!”
सूरज श्रीवास्तव
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नगर पालिका चुनाव में किस्मत आजमाने निकले पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष मुबारक मास्टर का “जाति प्रमाण पत्र” उनकी राजनीति का रोड़ा बन गया! चुनावी कुश्ती में बड़े दांव-पेच लगाने वाले मास्टर साहब इस बार अपनी ही चाल में उलझ गए और कोर्ट-कचहरी के धक्के खाते रह गए, लेकिन राहत की गंगा उनकी ओर नहीं बही।
दरअसल, मुबारक मास्टर ने नगर पालिका धनपुरी के वार्ड क्रमांक 16 से अपना नामांकन भरा, लेकिन उनके जाति प्रमाण पत्र का खेल गड़बड़ा गया। रिटर्निंग ऑफिसर ने दो टूक कह दिया—”भैया, समय पर प्रमाण पत्र लाओ, नहीं तो खेल खत्म!” मास्टर जी भी कम नहीं, पूरे आत्मविश्वास से कोर्ट पहुंच गए, मानो फैसला उनकी जेब में हो! पर न्यायालय ने साफ शब्दों में कह दिया—”समय पर कागज नहीं, तो चुनाव नहीं!”
जाति प्रमाण पत्र: राजनीति का अनिवार्य दस्तावेज या जादुई चिट्ठी?
मास्टर साहब ने कोर्ट में अपनी उपलब्धियों की फेहरिस्त भी सुनाई—पूर्व उपाध्यक्ष, पूर्व अध्यक्ष, पूर्व पार्षद, प्रशासनिक समिति का पूर्व अध्यक्ष! लेकिन अदालत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। रिटर्निंग ऑफिसर, एसडीएम और कलेक्टर के वकीलों ने कानूनी पेचीदगियों में ऐसी गांठ बांधी कि मास्टर साहब चाहकर भी उसे नहीं खोल सके।
कोर्ट का जवाब—”देर से आए, दुरुस्त नहीं पाए!”
मुबारक मास्टर ने कोर्ट में कहा कि एसडीएम को पहले से पता था कि वह पिछड़ा वर्ग से हैं, तो प्रमाण पत्र की इतनी औपचारिकता क्यों? लेकिन कोर्ट ने भी तंज कसते हुए कहा—”भैया, कानून कानून होता है, यह कोई मौखिक परीक्षा नहीं कि बोल दिए और मान लिया!”
चुनावी शतरंज में मात
पूरे प्रकरण में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि मास्टर साहब का नामांकन जिस जाति प्रमाण पत्र के कारण खारिज हुआ, उसी के लिए वह न्यायालयों का चक्कर लगाते रहे और अंततः खाली हाथ लौटे। अब इसे चुनावी दुर्भाग्य कहें या कागजी साजिश, लेकिन यह साफ हो गया कि राजनीति में सिर्फ अनुभव ही नहीं, समय पर सही दस्तावेज भी जरूरी हैं!
अब मास्टर साहब अगले चुनाव की तैयारी में जुटेंगे या कोर्ट की सीढ़ियां फिर से नापेंगे, यह तो वक्त ही बताएगा!