जिला अस्पताल के गेट से लेकर मरीजों के बैड तक दलाल और बिचौलिऐ हावी, निजी अस्पताल भेज कर मरीजों की जान से कर रहें खिलवाड ,आर्थिक नुकसान के साथ सरकारी स्वास्थ्य सेवा की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह

जिला अस्पताल के गेट से लेकर मरीजों के बैड तक दलाल और बिचौलिऐ हावी, निजी अस्पताल भेज कर मरीजों की जान से कर रहें खिलवाड ,आर्थिक नुकसान के साथ सरकारी स्वास्थ्य सेवा की विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह
कटनी।। जब इलाज ही व्यापार बन जाए, तो सबसे ज्यादा मार गरीब पर पड़ती है। सरकारी अस्पतालों में दलालों का बढ़ता प्रभाव न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था को खोखला कर रहा है, बल्कि मानवता को भी शर्मसार कर रहा है।
जिला अस्पताल जो कि आम जनता को सस्ता और सुलभ इलाज उपलब्ध कराने के लिए स्थापित किया गया है,लेकिन अब”जिला अस्पताल के गेट से लेकर मरीजों के बैड तक दलाल हावी”— इसका मतलब है कि सरकारी अस्पतालों में भर्ती होने से लेकर इलाज तक, हर स्तर पर बिचौलिए (दलाल) सक्रिय हैं। ये दलाल आमतौर पर मरीजों और उनके परिजनों को यह कहकर भ्रमित करते हैं कि सरकारी अस्पताल में इलाज संभव नहीं है, या समय लगेगा। दलाल मरीजों को जानबूझकर निजी अस्पतालों की ओर मोड़ देते हैं, जहां इलाज महंगा होता है। कई बार ऐसे अस्पतालों में इलाज का स्तर भी संदेहास्पद होता है, जिससे मरीजों की जान को खतरा होनें के साथ उनकी जान भी चली जाती है।
स्वास्थ्य सेवाओं की हालत पर एक बार फिर से सवाल?
इन समस्याओं के बीच जिला अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत पर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं। ताज़ा मामला दलाली प्रथा से जुड़ा है, जहाँ आरोप है कि सामान्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों को भी जानबूझकर भारी शुल्क वाले निजी अस्पतालों में रेफर किया जा रहा है। इस पूरे प्रकरण में दलालों और कुछ चिकित्सा कर्मचारियों की मिलीभगत सामने आ रही है।
सूत्रों के अनुसार, जिला अस्पताल में आने वाले कई मरीजों को, जिनका इलाज वहीं संभव रहता, बिचौलियों की मिली भगत से उन्हें बिना उचित कारण बताए बाहर के निजी अस्पतालों में भेजा जाता। अक्सर यह मरीज गरीब या ग्रामीण क्षेत्रों से होते हैं, जो बिचौलियों की बात पर भरोसा कर रेफर किए गए अस्पताल में चले जाते हैं। वहाँ उन्हें न केवल अधिक शुल्क चुकाना पड़ता है, बल्कि कई बार गैरज़रूरी जांच और महंगा इलाज भी झेलना पड़ता है।
दलालों की भूमिका संदिग्ध
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बताया जा रहा है कि अस्पताल परिसर में सक्रिय कुछ दलाल मरीजों और उनके परिजनों को यह कहकर डराते हैं कि सरकारी अस्पताल में “उचित सुविधा नहीं मिलेगी” या “यहाँ इलाज संभव नहीं है”। इसके बाद वे निजी अस्पतालों के लिए सिफारिश करते हैं और बदले में कमीशन लेते हैं। कुछ मामलों में अस्पताल के ही कुछ कर्मचारी इन दलालों से जुड़े पाए जाने की बात भी सामने आई है। जिला अस्पताल परिसर में सीसीटीवी लगे होने के बावजूद इन गतिविधियों पर कोई नियंत्रण नहीं। कुछ सुरक्षाकर्मियों और अन्य पर निजी अस्पतालों से मिलीभगत के आरोप लग रहें है,
कैसे काम करते हैं ये दलाल:
एम्बुलेंस में सवार करना: अस्पताल में भर्ती होने के बाद दलाल मरीज को प्राइवेट अस्पताल की ओर रुख करने के लिए प्रेरित करते हैं। वे यह कहते हैं कि सरकारी अस्पताल में बहुत लंबी प्रक्रिया है और तत्काल इलाज की ज़रूरत है, इसलिए मरीज को जल्दी से प्राइवेट अस्पताल भेज दिया जाता है। यह दलाल मरीजों को यह आश्वासन देते हैं कि प्राइवेट अस्पताल में बेहतर सुविधाएं और चिकित्सक उपलब्ध हैं, जबकि असल में वह इन अस्पतालों से कमीशन प्राप्त करते हैं।
हाल ही में एक निजी अस्पताल मे एक युवक की मौत के मामले मे गलत इलाज किया गया और जब उसकी स्थिति बिगड़ने लगी तों बाहर रेफर कर दिया गया, जिससे रास्ते में उसकी मौत हो गई थी।
जनता की मांग: हो निष्पक्ष जांच
मरीजों के परिजन और सामाजिक संगठनों ने जिला कलेक्टर और स्वास्थ्य विभाग से मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की है। उनका कहना है कि यदि जल्द ही कार्रवाई नहीं की गई, तो यह प्रथा और अधिक गंभीर रूप ले सकती है, जिससे गरीब मरीजों का भरोसा पूरी तरह से टूट जाएगा। जिला अस्पताल जैसी महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्था में बिचौलियों और दलाली प्रथा का इस तरह से पनपना न केवल चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल उठाता है, बल्कि गरीब और असहाय मरीजों के साथ अन्याय भी है। ज़रूरत है कड़े प्रशासनिक कदमों की ताकि यह अमानवीय प्रथा बंद हो और स्वास्थ्य सेवाएँ वास्तव में जरूरतमंदों तक पहुँच सकें।
निगरानी तंत्र: अस्पतालों में इस तरह के दलालों पर नजर रखने के लिए एक मजबूत निगरानी तंत्र स्थापित किया जा सकता है। खासकर अस्पताल के गेट और एम्बुलेंस सेवा में इन पर कड़ी नज़र रखी जा सकती है।