कांजी हाउस के रकवे में कैद ब्यौहारी की सरकार !

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नगर पालिका की ऐसी ‘भव्य दुर्दशा’!

भाजपा की सरकार, भाजपा का नगर पालिका, भाजपा के विधायक-सांसद और जनता? बस ‘कांजी हाउस’ की गवाह!
जर्जर छत, गिरता प्लास्टर और लाखों-करोड़ों का बजट

ब्यौहारी नगर पालिका इन दिनों अपने ‘ऐतिहासिक’ स्थान पर चर्चा में है, लेकिन यह ऐतिहासिकता गौरव की नहीं, ‘गौरवशाली उपेक्षा’ की कहानी कहती है। कांजी हाउस के भूखंड पर संचालित नगर पालिका का जर्जर भवन ना सिर्फ कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि पूरी व्यवस्था पर तंज कसता प्रतीत होता है। मज़ेदार बात ये है कि पूरी सत्ता भाजपा के पास होते हुए भी हालत ‘गायब जिम्मेदारियों’ वाली है।

शहडोल/ब्यौहारी। यह कोई व्यंग्य चित्र नहीं, हकीकत है, जिले की ब्यौहारी नगर पालिका का दफ्तर आज भी कांजी हाउस के भूखंड पर संचालित हो रहा है। जी हाँ, वही कांजी हाउस जिसमें कभी गाय-भैंस बंद की जाती थी। अब उसी में पालिका के कर्मचारी बैठकर ‘शासन’ चला रहे हैं, कभी छत झेलते हैं, कभी प्लास्टर। बाकी जनता तो वैसे भी सरकारी व्यवस्था से काफी कुछ ‘झेलने’ की आदी हो चुकी है। किसी नवगठित पंचायत या पिछड़े गांव की नहीं, यह बात एक पूर्ण नगर पालिका की हो रही है, जिसकी छतें बरसात में यूं गिरती हैं जैसे सरकार की जवाबदेही। भवन इतना जर्जर हो चुका है कि अब कई कमरों में बैठना तक मुमकिन नहीं रहा। यदि किसी दिन कोई फाइल सिर पर आ गिरे, तो उसे दुर्घटना नहीं, ‘प्राकृतिक सरकारी प्रबंध’ माना जाएगा।

अब आइए, थोड़ा ‘नपा का पत्र‘ झाँक ले

साल 2022 में तत्कालीन मुख्य नगर पालिका अधिकारी रामसिरोमणि त्रिपाठी द्वारा कलेक्टर शहडोल को तीन खसरा नंबर 2218, 2041, 2215/1 पर नए भवन, सब्जी मंडी और दुकानों के निर्माण हेतु आवेदन भेजा गया था। 2218 में कार्यालय भवन निर्माण हेतु, 2041 में सब्जी मंडी निर्माण हेतु, 2215/1 में दुकान निर्माण हेतु उल्लेख था, आवेदन में बताया गया कि नगर पालिका का वर्तमान भवन न केवल राजस्व रिकॉर्ड में कांजी हाउस के नाम पर दर्ज है, बल्कि गंभीर रूप से जर्जर भी है। आवेदन की तारीख थी 22 अक्टूबर 2022 हाँ, वही साल जब प्रदेश और केंद्र में भाजपा की सरकारें जनता की ‘भलाई‘ के लिए वचनबद्ध थीं। अब सवाल यह है कि जब बजट है, भूमि चिन्हित है, आवेदन हो चुका है, तो भवन क्यों नहीं बन रहा?

’ सब कुछ हमारा, फिर भी पराया ’ 

ब्यौहारी नगर पालिका अध्यक्ष भाजपा से, विधायक भाजपा से, सांसद भाजपा से, जनपद अध्यक्ष भी भाजपा से, और प्रदेश व केंद्र सरकार भी भाजपा की। फिर किससे मांगें जवाब? शायद समस्या यह है कि जब सत्ता हर स्तर पर एक ही दल की हो, तो जनता की शिकायत का ठिकाना ही नहीं बचता – ऊपर से नीचे तक सन्नाटा! भाजपा जनप्रतिनिधि अगर चाहें तो एक दिन में नए भवन का शिलान्यास करा सकते हैं, लेकिन उन्होंने शायद ये मान लिया है कि अगर पुराना भवन गिर भी जाए तो जनता अब आदत डाल चुकी है ‘ध्वस्त तंत्र’ की। अब नगर पालिका का कोई भी काम करना हो, तो लोग पहले ये देख लेते हैं कि छत कहीं टपक न रही हो – फॉर्म भीग गया तो फिर लाइन में लगना पड़ेगा। कर्मचारी भी सरकार की तरह ‘पानी बहने’ से नहीं डरते – वर्षों से सब सहते आए हैं।

सरकारी वाहन और जनता-दोनों के लिए संकट

इतना ही नहीं, भवन के आस-पास पार्किंग की भी कोई व्यवस्था नहीं है। सरकारी वाहन तिरछे-टेढ़े खड़े किए जाते हैं, किसी दिन दुर्घटना हो जाए तो उसे ‘सरकारी भाग्य’ समझिए। नागरिकों को आने-जाने की भी दिक्कत होती है, और बदबूदार वातावरण में नगर पालिका के ‘स्वच्छता मिशन’ की असल तस्वीर साफ झलकती है। सवाल यह भी है कि क्या कोई हादसा होने के बाद ही भवन बदला जाएगा? क्या जनता की सुरक्षा और कर्मचारी की सुविधा तब ही महत्वपूर्ण मानी जाएगी, जब किसी की जान जाए? या फिर यह मान लिया गया है कि ‘भाजपा के राज में जनता सहनशील’ बन ही गई है?

नगर पालिका को कांजी हाउस से उठाइए

ब्यौहारी की जनता को आज जवाब चाहिए, कब तक उनका नगर पालिका कांजी हाउस में कैद रहेगा? कब तक जनता को जर्जर भवन में सेवा लेने जाना होगा? और कब भाजपा नेतृत्व यह सोचेगा कि जनता ने उन्हें सिर्फ प्रचार के लिए नहीं, जिम्मेदारी निभाने के लिए चुना है। ब्यौहारी की यह त्रासदी महज एक भवन की नहीं, पूरी शासन व्यवस्था की पोल खोलती है। जहां जिम्मेदारियों केवल घोषणाओं में रह जाती हैं, और जर्जर भवनों में जनता न्याय ढूंढती है।

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