अनूपपुर जिले में बसों का बेलगाम आतंक, प्रशासन मूकदर्शक

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गिरीश राठौड़

अनूपपुर जिले में बसों का बेलगाम आतंक, प्रशासन मूकदर्शक

 

किराया सूची गायब, टिकट घोटाला और नियमों की धज्जियां उड़ाकर यात्रियों से हो रही खुली लूट — आरटीओ और यातायात विभाग की चुप्पी पर सवाल

 

अनूपपुर जिले में यात्री बस संचालन पर जिम्मेदार विभागों की पकड़ पूरी तरह ढीली पड़ चुकी है। परिवहन व्यवस्था के नाम पर खुलेआम लूट मची है और आरटीओ व यातायात विभाग आंखें मूंदे बैठे हैं। न तो नियमों का पालन हो रहा है, न ही यात्रियों के अधिकारों की रक्षा। परिणामस्वरूप बस संचालक  यात्रियों से मनमाना किराया वसूलने  रहे हैं।

जिले में चलने वाली अधिकांश यात्री बसों में किराया सूची प्रदर्शित नहीं की गई है, जबकि परिवहन नियमों के तहत यह अनिवार्य है। स्थिति यह है। कि अनूपपुर से राजेंद्रग्राम की दूरी 31 किलोमीटर की दूरी और किराया 50 रुपए  वसूला जा रहा है, जो निर्धारित किराए से कहीं अधिक है। इतना ही नहीं, किराया लेने के बाद भी यात्रियों को टिकट नहीं दी जाती। टिकट मांगने पर डुप्लीकेट टिकट में  राशि लिखकर थमा दी जाती है, जिस पर न तो बस ट्रांसपोर्ट कंपनी का नाम होता है और न ही किसी प्रकार की आधिकारिक मुहर। यह न केवल यात्रियों के साथ धोखाधड़ी है, बल्कि सरकारी राजस्व की भी सीधी चोरी है।

बसों के चालक और परिचालक बिना यूनिफॉर्म के ड्यूटी पर रहते हैं, जो नियमों का खुला उल्लंघन है।  यात्रियों का कहना है कि विरोध करने पर बस कर्मी अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं और बस से उतर जाने की धमकी देते हैं

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि आरटीओ और यातायात पुलिस अधिकारी दफ्तर में आराम से बैठकर कागजी खानापूर्ति में लगे हैं, जबकि फील्ड पर जाकर जांच करना और नियम लागू करवाना उनकी जिम्मेदारी है। प्रशासन की इस लापरवाही ने बस संचालकों के हौसले इतने बुलंद कर दिए हैं कि वे कानून और नियमों की धज्जियां उड़ाने में तनिक भी हिचकिचाहट महसूस नहीं करते।

परिवहन विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रवृत्ति न केवल उपभोक्ता अधिकारों का हनन है, बल्कि भ्रष्टाचार और लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण भी है। यदि समय रहते कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो यात्री लगातार ठगे जाते रहेंगे और सरकारी खजाने को भारी नुकसान होता रहेगा।

यात्रियों ने मांग की है कि तत्काल सभी बसों में किराया सूची अनिवार्य रूप से प्रदर्शित की जाए, टिकट प्रणाली को पारदर्शी बनाया जाए, दोषी बस संचालकों और कर्मचारियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए, और आरटीओ व यातायात विभाग के अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए। अन्यथा यह खुली लूट आने वाले समय में और विकराल रूप ले सकती है।

 

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