स्वास्थ्य विभाग में फर्जीवाड़ा उजागर : बुढ़ार के ब्लॉक प्रोग्राम मैनेजर विवेक बर्मन पर लगे गंभीर आरोप

शहडोल। जिले के स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार की परतें लगातार उजागर हो रही हैं। नवीनतम मामला बुढ़ार विकासखंड का है, जहां ब्लॉक प्रोग्राम मैनेजर विवेक बर्मन पर सरकारी राशि का फर्जी बिल लगाकर घपला करने का गंभीर आरोप लगा है। बर्मन पिछले पांच सालों से बुढ़ार में पदस्थ है और उनके कार्यकाल के दौरान स्वास्थ्य विभाग से जुड़ी योजनाओं और राशि के दुरुपयोग के कई मामले सामने आते रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा जारी पत्र ने इस मामले पर मुहर लगाई है। पत्र में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि गैर-संचारी रोग (NCD) स्क्रीनिंग के तहत 30 वर्ष से ऊपर आयु वर्ग के 65,254 व्यक्तियों की स्क्रीनिंग की गई। इसके लिए स्वीकृत राशि करीब ₹1,99,250 थी। लेकिन विभागीय दस्तावेजों और पोर्टल पर डाली गई जानकारी के अनुसार विभिन्न मदों में ₹7,28,750 तक का भुगतान दिखाया गया है। यानी सीधे-सीधे लाखों रुपए का अंतर फर्जी बिलिंग और हेरफेर की ओर इशारा करता है।
कैसे हुआ घपला
पत्र के अनुसार, स्क्रीनिंग कार्य की वास्तविक लागत और पोर्टल पर दर्शाई गई लागत में भारी अंतर पाया गया। कई मदों में अधिक भुगतान दिखाकर शासकीय राशि का दुरुपयोग किया गया। यह रकम सीधे विवेक बर्मन की जिम्मेदारी वाले कार्यों से जुड़ी हुई है। विभाग ने इस मामले में सवाल उठाते हुए स्पष्टीकरण मांगा है।
सरकार की योजनाओं पर पानी
स्वास्थ्य सेवाओं को गांव-गांव तक पहुंचाने और गंभीर बीमारियों की शुरुआती पहचान सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार लगातार योजनाएं चला रही हैं। लेकिन जमीनी स्तर पर पदस्थ अफसरों और कर्मचारियों की लापरवाही व भ्रष्टाचार सरकार की मंशा पर पानी फेर रहे हैं। बुढ़ार में पदस्थ ब्लॉक प्रोग्राम मैनेजर विवेक बर्मन का मामला इसका ताजा उदाहरण है। यदि पुराने रिकॉर्ड की भी जांच की जाए तो करोड़ों रुपए के गड़बड़ी और फर्जी बिलिंग का जाल सामने आने की आशंका जताई जा रही है।
पांच साल से एक ही जगह पदस्थ
नियमों के अनुसार स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों का समय-समय पर स्थानांतरण किया जाना चाहिए। लेकिन बुढ़ार में विवेक बर्मन पिछले 5 वर्षों से लगातार पदस्थ हैं। लंबे समय तक एक ही जगह जमे रहने के कारण ही इस तरह का नेटवर्क तैयार हो गया, जिसमें सरकारी राशि को फर्जी बिलों के जरिए हड़पने की शिकायतें बढ़ रही हैं।
जांच की मांग
पत्र में साफ लिखा गया है कि स्क्रीनिंग कार्य में गड़बड़ी से ₹7,28,750 की हानि हुई है। अब सवाल यह है कि इतनी बड़ी हानि की जिम्मेदारी कौन लेगा और क्या केवल स्पष्टीकरण मांग लेने से भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी? विभागीय सूत्रों का मानना है कि यदि पिछले पांच सालों के पूरे कार्यकाल की वित्तीय जांच हो तो करोड़ों रुपये का घोटाला सामने आ सकता है।