महिला सुरक्षा के दावों पर करारा प्रहार-थाना प्रभारी का पति बना आरोपी, लेकिन कार्रवाई अब भी अधर में सुरक्षा की उम्मीद कहां से की जाए?” पुलिस की सजगता पर उठाए सवाल युवतियों से अभद्रता और धमकी का आरोप, शिकायत के बाद भी कार्रवाई ठप। पीड़ित बोलीं-“सुरक्षा के दावे खोखले, आरोपी खुलेआम घूम रहा है”

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महिला सुरक्षा के दावों पर करारा प्रहार-थाना प्रभारी का पति बना आरोपी, लेकिन कार्रवाई अब भी अधर में सुरक्षा की उम्मीद कहां से की जाए?” पुलिस की सजगता पर उठाए सवाल,युवतियों से अभद्रता और धमकी का आरोप, शिकायत के बाद भी कार्रवाई ठप।
पीड़ित बोलीं-“सुरक्षा के दावे खोखले, आरोपी खुलेआम घूम रहा है”
आखिर कहां गई महिलाओं की सुरक्षा के बड़े-बड़े वादे और पुलिस की सजगता?”महिला सुरक्षा पर किए गए तमाम वादों और दावों की पोल कटनी का यह मामला खोलता है, जहां थाना प्रभारी का पति ही युवतियों से अभद्रता और धमकी देने का आरोपी बना, और शिकायत के बाद भी कार्रवाई ठप रह गई। सवाल उठता है कि जब पुलिस के साए में महिलाएं सुरक्षित नहीं, तो आम महिलाओं की हिफाजत कौन करेगा?”
कटनी।। मध्यप्रदेश में महिला सुरक्षा को लेकर सरकार और पुलिस के बड़े-बड़े दावे एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गए हैं। कटनी जिले के झिंझरी स्थित टोयोटा कार एजेंसी में कार्यरत दो युवतियों ने गंभीर आरोप लगाते हुए बताया कि खितौला थाना प्रभारी अर्चना सिंह जाट के पति नरेंद्र सिंह जाट ने उनके साथ न केवल बार-बार अभद्रता की बल्कि गंदी गालियां देकर गोली मारने की धमकी तक दी।
पीड़ित युवतियां जब शिकायत लेकर झिंझरी चौकी पहुंचीं तो चौकी प्रभारी प्रियंका राजपूत ने मामला दर्ज करने के बजाय उन्हें ही लौटा दिया। इसके बाद युवतियां माधवनगर थाने पहुंचीं, जहां थाना प्रभारी ने संज्ञान लेते हुए रिपोर्ट दर्ज करने का निर्देश दिया। नतीजतन आरोपी नरेंद्र सिंह जाट के खिलाफ धारा 79, 296, 351(2) BNS के तहत मामला दर्ज तो हुआ, लेकिन गिरफ्तारी आज तक नहीं हो सकी। हैरानी की बात यह है कि पीड़ितों की शिकायत और रिपोर्ट दर्ज होने के बावजूद आरोपी खुलेआम घूम रहा है और शिकायत के दिन वह पुलिस अधीक्षक कार्यालय में भी मौजूद रहा। युवतियों ने पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपते हुए न्याय और सुरक्षा की गुहार लगाई। मामला न सिर्फ यह भी दिखाता है कि जब किसी महिला थाना प्रभारी का पति ही आरोपी हो और पुलिस कार्रवाई से बचता नजर आए, तो फिर आम महिलाओं की सुरक्षा की गारंटी कौन देगा? महिला सुरक्षा के नाम पर चलाए जा रहे अभियान और कार्यक्रम क्या सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गए हैं? क्या जिला पुलिस और अधिकारी तभी सक्रिय होंगे जब कोई बड़ी वारदात घट जाएगी? ऐसे सवाल अब सीधे-सीधे उन वादों और दावों पर चोट कर रहे हैं, जिनमें कहा जाता है कि “महिलाओं की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है”।
आखिरकार सवाल यही है – कहां गई महिलाओं की सुरक्षा के बड़े-बड़े वादे? कहां है वह पुलिस की पहल, जो महिलाओं को सुरक्षित और निडर माहौल देने का दावा करती है?

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