FIR दर्ज, कार्रवाई ठप: पीड़िता बोली“__फिर FIR करना और न करना बराबर

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शहडोल। नाबालिग आदिवासी लड़की से जुड़े गंभीर मामले में FIR दर्ज होने के बावजूद कार्रवाई न होने से पीड़िता न्याय के लिए दर-दर भटक रही है। पीड़िता ने कहा कि जब प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (FIR) के बाद भी कुछ नहीं होना है, तो या तो FIR दर्ज करने की प्रक्रिया ही बंद कर दी जाए, या फिर उसे दर्ज करने के बाद समयसीमा तय कर त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।

शहडोल के महिला थाने में 6 सितंबर 2025 को शून्य FIR क्रमांक 029 दर्ज हुई। इसमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (संशोधित 2015) की धारा 3(1)(w)(ii), 3(2)(v), 3(2)(vii), लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 64(1) और 64(2)(m) जैसे कड़े प्रावधान लगाए गए। FIR में आरोपी उमर बस्ती निवासी मोनू बस्ती का नाम दर्ज है।

पीड़िता ने पुलिस को दिए बयान में कहा कि आरोपी ने उसे बहला-फुसलाकर बुलाया, फोटो व मोबाइल छीन लिए और कई बार गलत कृत्य किए। 3 अगस्त 2025 से 2 सितंबर 2025 तक घटनाओं की श्रृंखला चली, जिनमें उसने लगातार शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न झेला। पीड़िता ने बताया कि 17 अगस्त और 2 सितंबर को भी उसे धमकाकर बुलाया गया और जबरन कृत्य किए गए। FIR दर्ज करने के बाद भी कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी, जिससे पीड़िता ने पीड़ा जताते हुए कहा कि FIR करना और न करना, दोनों अब बराबर हो गया है।

इस पूरे मामले में पीड़िता ने संभाग के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से हस्तक्षेप की मांग की है। साथ ही मुख्यमंत्री मोहन यादव और मध्यप्रदेश सरकार से गुहार लगाई है कि ऐसे मामलों में पीड़िताओं को न्याय दिलाने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। पीड़िता ने कहा कि खासकर जब कोई महिला, वह भी आदिवासी या दलित समाज से हो, तो FIR दर्ज कराने की हिम्मत जुटाना ही बहुत बड़ी बात है। लेकिन, शहडोल महिला थाना और अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए बनाए गए विशेष थाने अब केवल दिखावे भर साबित हो रहे हैं।

स्थानीय लोगों का कहना है कि जब से शहडोल में पुलिस अधीक्षक रामजी श्रीवास्तव पदस्थ हुए हैं, तब से अब तक पुलिस विभाग में कोई बड़ा फेरबदल नहीं किया गया है। कई थानों में वर्षों से बैठे प्रभारी अपनी पकड़ मजबूत कर चुके हैं और उनके खिलाफ शिकायतों के बावजूद कार्रवाई नहीं हो रही। इससे आम जनता का भरोसा पुलिस तंत्र से उठ रहा है।

पीड़िता ने जनप्रतिनिधियों पर भी सवाल उठाए हैं। उसका कहना है कि जो नेता जनता का वोट लेकर विधानसभा और लोकसभा पहुंचे हैं, वे ऐसे गंभीर मामलों में चुप क्यों हैं? जनता की समस्याओं पर उनकी खामोशी यह दर्शाती है कि आम जन की पीड़ा उनके लिए मुद्दा नहीं रह गई।

जनता अब पूछ रही है कि जब नामजद आरोपी और गंभीर धाराओं के तहत दर्ज FIR पर भी पुलिस जांच और गिरफ्तारी की दिशा में आगे नहीं बढ़ती, तो आम जनता आखिर न्याय के लिए किसके पास जाए?

यह मामला न सिर्फ पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि न्याय की उम्मीद में FIR दर्ज कराने वाली महिलाएं आज भी असुरक्षित और उपेक्षित महसूस कर रही हैं। अब देखने वाली बात होगी कि सरकार और पुलिस प्रशासन इस गुहार पर कब और कितना संज्ञान लेता है।

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