तीन पीढ़ियों की एक परंपरा: आरएसएस के शताब्दी वर्ष में अग्रवाल परिवार का अनुकरणीय योगदान
गिरीश राठौर
तीन पीढ़ियों की एक परंपरा: आरएसएस के शताब्दी वर्ष में अग्रवाल परिवार का अनुकरणीय योगदान

अनूपपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर देशभर में उत्सव और आयोजन किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में अनूपपुर नगर में दशहरा के दिन संघ द्वारा भव्य पथ संचलन आयोजित किया गया, जिसमें सैकड़ों स्वयंसेवकों ने अनुशासन और संगठन की भावना के साथ भाग लिया। यह दिवस केवल संघ के लिए नहीं, बल्कि उन परिवारों के लिए भी गर्व का क्षण था जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी राष्ट्र सेवा की परंपरा को जीवंत रखा है।

ऐसा ही एक परिवार है नगर का अग्रवाल परिवार, जिसकी तीन पीढ़ियाँ — मूलचंद अग्रवाल (78 वर्ष), उनके पुत्र राकेश अग्रवाल (50 वर्ष) और पौत्र अक्षत अग्रवाल (18 वर्ष) — आज भी पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में सक्रिय हैं। इस परिवार की सेवा यात्रा संघ की मूल भावना “निष्काम राष्ट्रसेवा” का सजीव उदाहरण प्रस्तुत करती है।
मूलचंद अग्रवाल जी की संघ यात्रा आज से लगभग 65 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुई थी। उस समय वे मात्र 12 वर्ष के थे। श्री कान्हौव जी, जो उस समय बैंक ऑफ बघेल खंड के प्रबंधक रहे और मर्जन के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पहले शाखा प्रबंधक बने, जो अनेक प्रेरणास्रोत थे। उन्हीं की प्रेरणा से बालक मूलचंद अग्रवाल ने संघ की शाखा में जाना शुरू किया और तभी से संघ का अनुशासन, संस्कार और राष्ट्रभावना उनके जीवन का अभिन्न अंग बन गए।
आज, जब आरएसएस की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं, भारत सरकार द्वारा इस ऐतिहासिक अवसर पर स्मारक सिक्का एवं डाक टिकट जारी किया गया है। यह न केवल संघ की अमर परंपरा का प्रतीक है, बल्कि उन अनगिनत स्वयंसेवकों की निष्ठा को भी नमन है जिन्होंने राष्ट्र को प्रथम स्थान पर रखा।
अनूपपुर में आयोजित पथ संचलन में तीनों पीढ़ियाँ—मूलचंद, राकेश और अक्षत अग्रवाल—एक साथ कदम से कदम मिलाकर चले। नगरवासियों के लिए यह दृश्य प्रेरणादायक रहा कि कैसे एक ही परिवार में राष्ट्रसेवा की ज्योति निरंतर प्रज्वलित है।
संघ के शताब्दी वर्ष में अग्रवाल परिवार का यह समर्पण संदेश देता है कि विचार और संस्कार जब पीढ़ियों तक प्रवाहित होते हैं, तब समाज और राष्ट्र दोनों सशक्त बनते हैं।