…तो 24 साल से फाइलों में ‘सक्रिय’ इंडिया हेल्थ एक्शन ट्रस्ट!

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अब गोहपारू में सरकारी काम पर अपना ठप्पा लगाने की तैयारी!

शहडोल। जिले में इंडिया हेल्थ एक्शन ट्रस्ट (आईएचएटी) पिछले दो दशकों से अधिक समय से कम-से-कम कागजों पर कार्यरत है। साक्ष्य आधारित स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाने और मातृ-शिशु स्वास्थ्य सुधारने के नाम पर करोड़ों के फंड हजम करने वाली यह संस्था आज तक धरातल पर न तो किसी ठोस उपलब्धि के साथ नजर आई, न ही किसी गांव में उसका कोई असर दिखा। अब इस संस्था ने एक बार फिर अपने पुराने मिशन पर वापसी की है, इस बार लक्ष्य है गोहपारू विकासखंड, जहां सरकारी तंत्र पहले से ही शानदार प्रदर्शन कर रहा है।
आईएचएटी को पिछले वर्षों तक एचसीएल फाउंडेशन से भारी फंड मिलता रहा, लेकिन वर्ष 2025 में एचसीएल ने इस संस्था को फंड देना बंद कर दिया। चर्चा है कि फंड रोकने के बाद संस्था ने नया सहयोगी फाउंडेशन खोज लिया है और उसी के सहारे जिले में दोबारा सक्रिय होने की कोशिश में जुटी है। ताज्जुब की बात तो यह है कि संस्था ने बिना स्वास्थ्य विभाग को सूचना दिए ही 12 अक्टूबर को कर्मचारियों की भर्ती का विज्ञापन जारी किया और 15 अक्टूबर तक भर्ती प्रक्रिया पूरी भी कर ली। स्वास्थ्य विभाग को भनक तक नहीं लगी या यूं कहिए भनक लगने न दी गई।
सूत्र बताते हैं कि संस्था ने हर सीएचसी में मिनी स्किल लैब खोल रखे हैं, लेकिन जब भोपाल से निरीक्षण टीम जयसिंहनगर पहुंची तो असलियत खुल गई। जिस कर्मचारी को ट्रेनिंग देने के लिए नियुक्त किया गया था, उसे ही टीम ने फटकार लगाई और कहा पहले खुद ट्रेनिंग लेकर आइए। सवाल यह उठता है कि अगर प्रशिक्षण देने वाले ही प्रशिक्षित नहीं हैं, तो कौन-सी विशेषज्ञता सिखाई जा रही है?
इतने गंभीर और संदिग्ध हालातों के बावजूद स्वास्थ्य विभाग का रवैया चौंकाने वाला है। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डी. राजेश मिश्रा ने बाकायदा आदेश जारी कर जिले के तमाम चिकित्सा अधिकारियों को 6 नवंबर को होटल त्रिदेव, शहडोल में आयोजित आईएचएटी की कार्यशाला में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया है। यानी जिस संस्था की भूमिका ही अस्पष्ट है, उसके कार्यक्रम में सरकारी अमले की जबरन उपस्थिति सुनिश्चित की जा रही है, वह भी विभागीय आदेश के साथ।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब गोहपारू विकासखंड में सरकारी टीम ने बेहतरीन कार्य किया और नीति आयोग के 6 में से 5 संकेतकों में शत-प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त किया, जिसके लिए कलेक्टर डॉ. केदार सिंह और टीम को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव द्वारा सिल्वर मेडल और प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया, तो आखिर इस निजी संस्था को वहां कार्य करने की क्या जरूरत है? क्या अब सरकारी उपलब्धियों पर निजी संस्थाएं अपना ठप्पा लगाने और फंड जुटाने का नया रास्ता खोज रही हैं?
जनता और विभागीय सूत्रों का कहना है कि आईएचएटी की मंशा स्पष्ट है, सरकार द्वारा किए गए सफल कार्यों को अपना प्रोजेक्ट बताकर वाहवाही लूटना और भविष्य के फंड के लिए झूठी रिपोर्टिंग करना। स्वास्थ्य विभाग के कुछ अधिकारी भी इस खेल से वाकिफ हैं, लेकिन ऊपर से आए निर्देशों के आगे कोई बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा।
24 साल से जिले में मौजूदगी का दावा करने वाली यह संस्था अब तक किसी भी गांव में अपने काम का ठोस सबूत नहीं दे पाई है। न कोई पायलट प्रोजेक्ट, न स्वास्थ्य सुधार का प्रमाण। फिर भी, सरकारी मंच से लेकर होटल के सभागार तक, इनकी मौजूदगी और सम्मानजनक व्यवहार एक बड़ा सवाल खड़ा करता है, क्या शहडोल का स्वास्थ्य ढांचा निजी संस्थाओं के फंड आधारित खेल का नया मैदान बन गया है?
अगर प्रशासन ने जल्द ही इस तथाकथित ट्रस्ट के कार्यों और फंडिंग की पारदर्शिता की जांच नहीं की, तो यह जनसेवा के नाम पर चलने वाला कारोबार जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था को खोखला कर देगा। जनता अब यह जानना चाहती है, कब तक फाइलों में चलती रहेंगी फर्जी संस्थाओं की दिखावटी योजनाएं, और कब जवाबदेही तय होगी उन अधिकारियों की, जो इनके सहयोगी बने बैठे हैं?

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