बच्चों की मौत के आंकड़ों ने खोली कागजी दावों की पोल
कांग्रेस सरकार के दौरान तीन दिनों मे हुई थी सीएस व सीएमएचओ की छुट्टी
शुक्रवार को 13 पहुंचा बच्चों की मौत का आंकड़ा
आंदोलन करने वाले भाजपाई व विधायक-सांसद नहीं पहुंचे सांत्वना देने
शहडोल। बीते कुछ दिनों से शहडोल जिला चिकित्सालय प्रदेश भर की सुर्खिंया बटोर रहा है, नवजात बच्चों की लगातार हो रही मौतों को स्वास्थ्य विभाग अंकुश लगाने में पूरी तरह नाकाम हैं। बावजूद इसके शिशु रोग चिकित्सक कोरोना का बहाना बनाकर निजी क्लीनिकों में नजर आ रहे हैं, प्रशासनिक अधिकारी अपने मैदानी अमले को कागजी कोरम पूरा कर बजट निपटाने के अब तक के खेल पर पर्दा डालने के लिए लगातार जांच कमेटियां बैठा रहे हैं। हालात यह हैं कि औसतन 1 बच्चे की मौत यहां हर दिन हो रही है। पिछले आठ महीने (अप्रैल से नवंबर) के भीतर ही 362 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है। सबसे ज्यादा 262 बच्चों की मौत नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में हुई तो 100 से ज्यादा बच्चों ने बाल गहन चिकित्सा इकाई (पीआईसीयू) में इलाज के दौरान जान गंवाई।
मैदानी भ्रष्टाचार मूल कारण
बीते 4 से 5 महीनों के दौरान जब स्वास्थ्य विभाग के ग्रामीण अंचलों में फैले मैदानी अमले की जिम्मेदारी कोरोना के कारण पहले से कई गुना अधिक बढ़ गई थी, इस दौरान यह अमला पूरी तरह से बाहर रहा। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के जिले और विकास खण्डों में फैले अधिकारी, कर्मचारी व सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रो में तैनात स्वास्थ्य विभाग के मुखिया जिन्हें इन पर निगरानी और कार्य कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, यह पूरी तरह से अपनी जिम्मेदारी से विमुख थे। इसी कारण इनके पास गांवों के अंतिम छोर तक की जानकारी तो थी, लेकिन वह पूरी तरह से फर्जी व कोरम पूरा करने की थी, जिससे बजट को निपटाया जाये और कागजी आंकड़ों में बाजी मारी जाये। ब्यौहारी विकास बुढ़वा स्थित स्वास्थ्य केन्द्र में पदस्थ नर्स का मामला बीते दिनों सुर्खियों में था, जिसे वहां के बीएमओ का खुला संरक्षण मिला हुआ था, उक्त नर्स सिर्फ हाजरी लगाने कार्यालय आती थी, यह मामला सुर्खियो में आने के बाद भी जिम्मेदारों ने कार्यवाही नहीं की। यह मामला तो सामने आ गया, लेकिन इस तरह के सैकड़ों महिला व पुरूष स्वास्थ्य कर्मियों की मनमानी का ही नतीजा है कि आज शहडोल पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है।
समीक्षाओं व जांचो में उलझा तंत्र
संभागायुक्त नरेश पाल ने समीक्षा दौरान जो कारण पाए उनमें सबसे बड़ा कारण स्वास्थ्य विभाग एवं महिला एवं बाल विकास विभाग के मैदानी अमले द्वारा अपने दायित्व निवर्हन में बरती गई कोताही के रूप में सामने आया है। संभागायुक्त ने महिला एवं बाल विकास विभाग एवं स्वास्थ्य विभाग के मैदानी अमले को निर्देशित किया है कि वे ग्रामीण इलाकों में बीमार बच्चों को चिन्हित करें और इलाज के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्रों में भर्ती कराएं। जिन बच्चों की असमय मौत हुई है, उनकी मेडिकल हिस्ट्री यह बताती है कि चार से छ: बच्चों को शुरूआत में बंगाली डॉक्टरों की सेवाएं मिली थी। कई माता-पिता साधन न होने के कारण बीमार बच्चों को लंबी दूरी से कड़ाके की ठण्ड में जुगाड़ के दो पहिया वाहन में लेकर आये थे, जिससे उनकी स्थिति और खराब हो गई। सवाल यह भी है कि किसी एक बच्चे की भी मौत की जिम्मेदारी किसी चिकित्सक व जिला चिकित्सालय प्रबंधन ने नहीं ली। जिम्मेदारी डाली गई हालातों व परिजनों पर, जागरूकता के अभाव व विलंब से गंभीर अवस्था में लाने के कारण के रूप में।
कांग्रेस ने बनाई खुद की जांच टीम
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बच्चों की मौत पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कांग्रेस की तरफ से दो विधायकों समेत 4 सदस्यीय जांच दल बनाया गया है, जो वहां जाकर पीडि़त पक्षों से चर्चा कर अपनी रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस कमेटी और कमलनाथ को सौंपेगी। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि 5 दिन पहले मुख्यमंत्री की आपात बैठक और निर्देशों के बावजूद बच्चों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। सरकार का रवैया इस मामले में उदासीन है। कांग्रेस के इस चार सदस्यीय सदस्य जांच दल विधायक सुनील सराफ, विधायक विजय राघवेंद्र सिंह, अनूपपुर के कांग्रेस अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल, शहडोल कांग्रेस अध्यक्ष आजाद बहादुर सिंह शामिल हैं। यह दल मौके पर जाकर पीडि़त पक्ष से चर्चा कर रिपोर्ट प्रदेश कांग्रेस कमेटी और पूर्व मुख्यमंत्री को सौंपेगा। वहीं सोचनीय पहलू यह है कि भाजपा के नेताओं ने जिला चिकित्सालय की सुध तक नहीं ली है।
यह है स्वास्थ्य अमले की दैनिक रिपोर्ट
सिविल सर्जन डॉ. व्ही.एस.बारिया ने जानकारी दी है कि जिला चिकित्सालय के गहन चिकित्सा इकाई (एसएनसीयू) में शुक्रवार को 04 बीमार बच्चे भर्ती हुए और अभी तक 22 बच्चे भर्ती है। इसी प्रकार पीआईसीयू में आज दिनॉक को 7 भर्ती हुए, कुल 9 गंभीर बीमार बच्चे भर्ती थे, जिनमें 2 बच्चो की मृत्यु हुई है। सिविल सर्जन डॉ. बारिया ने बताया है कि गहन चिकित्सा इकाई एवं पीआईसीयू में बच्चो की चिकित्सकीय देखभाल एवं सतत निगरानी जारी है।