जीएमसी की कैंटीन ने आपदा को बनाया अवसर मेडिकल कॉलेज में हर जगह पसरी गंदगी दे रही बीमारियों को न्योता

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शहडोल। संभाग के इकालौते शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में कोरोना से हानिकारक रोगियों और उनके परिजनों की आवाजाही चौबीसों घंटे बनी रहती है, बीते साल कोरोना संक्रमण काल ​​के दौरान ही समय से पहले जिला प्रशासन ने इस चिकित्सा महाविद्यालय की शुरुआत दी थी, बीच के तीन से। चार। महीनों में जब संक्रमण काल ​​सबसे कम था, उस समय चिकित्सालय प्रबंधन को यहां की व्यवस्थाओं को संभालने और दुरुस्त करने का मौका भी मिला था, लेकिन उस दौरान इस ओर ध्यान न देने के कारण ही आज कोरोना संक्रमण की भया सेवा की स्थिति के दौरान मेडिकल कॉलेज के हर कोने में गंध का साम्राज्य है, आलम यह है कि यहां बनाए गए शौचालय, सेफ्टी टैंक ओवरफ्लो के साथ सड़कों पर बह रहे हैं, शौचालय के साथ अवशोषित अन्य वार्डो और कैंटीन के अलावा अन्य भागों में पसरी अपशिष्ट बीमारियों को आमंत्रित किया जा रहा है। है, कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए आया रोगी शायद डॉक्टरेट प्रबंधन की मेहनत से बच जाए,

सफाईकर्मियों की लंबी फौज, फिर भी गंदगी

मेडिकल कॉलेज में सफाई कर्मी के नाम पर दर्जनों का स्टाफ है और हर महीने लाखों की पेमेंट भी होती है, लेकिन सफाई की जमीनी हकीकत क्या है, यह मौके पर जाकर देखा और समझा जा सकता है। मेडिकल कॉलेज में अपने परिजनों को इलाज के लिए लेकर आए नागरिक इन दिनों बेहद परेशान है ना तो शौचालय की रिसलर सफाई हो रही है और नहीं यहां पानी आदि की भी इतनी व्यवस्था है जिससे उनका काम हो सके आश्चर्य तो इस बात का है कि इसके लिए कहीं भी हेल्पलाइन नंबर आदि जारी नहीं किया गया है जहां शिकायत या सुझाव व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए दिया जा सकता है।

आपदा को देखते हुए

मेडिकल कॉलेज परिसर के अंदर ही कैंटीन स्थित है, जिसे प्रबंधन द्वारा अपनी शर्तों के अनुरूप यहां व्यवसाय करने की छूट दी गई है, पूर्व में तो यहां कैंटीन के संचयकों की वित्तीय शिकायतें आती रहती हैं, लेकिन आपदा की इस स्थिति में संचालक – आपदा को लेकर अवसर बनाकर यहां आ रहे मरीजों और उनके परिजनों की जेब काटने शुरू कर दी है, बीते दिन यहां भर्ती एक मरीज के परिजन जब कैंटीन में अपने मरीज के लिए दलिया लेने गए तो उनके होश उड़ गए, दो से ढाई सौ ग्राम गीली दलिया की कीमत। ₹ 30। शहर में इसकी दूसरी कोई दुकान न होने और कहीं दलिया की व्यवस्था न होने के साथ-साथ पूरे शहर में लॉकडाउन के कारण मरीज के परिजन अपनी जेब कटवाने को मजबूर हैं, यह अकेला उदाहरण नहीं है, बल्कि अन्य खाद्य की वस्तुएं जो चिकित्सक मरीजों को खाने के लिए हैं। सलाह देते हैं,

सड़क पर बहती ओवरफ्लो गंदगी

मेडिकल कॉलेज परिसर में बनाया गया शौचालय का टैंक ओवरफ्लो हो चुका है और उस से निकलकर मल -मूत्र आधी गंदगी सड़क पर फैल रही है, यहां से मरीजों के परिजनों के साथ ही अन्य लोगों का भी आना-जाना लगातार बना रहता है, खरोंच से। और बीमारियां भी उपजेंगी इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता और अचरज तो इस बात का है कि इस व्यवस्था के लिए लंबी चौड़ा स्टाफ और मोटा वेतन उठाने वाले लोग इस तरफ से आंखें मूंद कर बैठे हैं, ना तो इस गंध से उठ रहे हैं। बदबू उन तक पहुंच रही है और सड़क पर फैली गंदगी पर ही उनकी नजर पड़ रही है।

कमोबेश पूरे परिसर का हाल

मेडिकल कॉलेज के अंदर वार्डों से लेकर यहां स्थित शौचालय और अन्य स्थलों का भी कमोबेश यही हाल है, स्वच्छ- सफाई की व्यवस्था दम तोड़ती नजर आ रही है, इस संदर्भ में जब मेडिकल कॉलेज प्रबंधन से चर्चा करने का प्रयास किया गया तो कोरोना के मरीज की अधिकता और उनकी आधार बताकर जानकारेदारों ने इस मामले से किनारा तो कर लिया लेकिन भविष्य में जब भी परेशानी अधिक बढ़ जाएगी तब तक उन्हें किसी न किसी स्थिति में सामने आकर जिम्मेदारी लेनी ही पड़ेगी, हालांकि यहां आने वाले मरीजों के परिजनों और अन्य जिम्मेदार हैं। । नागरिकों ने लोकप्रिय कलेक्टर डॉ। सत्येंद्र सिंह से इस संदर्भ में जनमत की है कि अन्य व्यवस्थाओं की तरह ही मेडिकल कॉलेज में पसरी गंध से निजात मिलती है।

 

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