भाजपा की मजबूरी : चंद परिवारों के इर्द- गिर्द सिमटी संभाग की राजनीति

कांग्रेस की राह पर भाजपा भी पुराने
मोहरों लगा रही दांव
सांसद सहित विधायक को संगठन ने दी
दोहरी जिम्मेदारी
(शहडोल से शिरीष नंदन श्रीवास्तव)
भारतीय जनता पार्टी बीते कई दशकों से कांग्रेस पर वंशवाद के आरोप लगाती रही है, लेकिन बीते एक दशक से भाजपा भी सत्ता की चाह में कांग्रेस की बनाई गई राह पर चलती नजर आ रही है, इतना ही नहीं अब तो भाजपा ने अपने ही कायदों को दरकिनार कर एक व्यक्ति – एक पद के नारे को भी किनारे कर दिया है, संभाग की राजनीति अब गिने चुने परिवारों पर जा टिकी है,जिस कारण उन कर्णधारों को शायद इस बात का भान भी है और गुमान भी।
शहडोल। छः से सात दशकों तक प्रदेश ही नहीं बल्कि केंद्र की सत्ता और देश के कई राज्यों में सत्ता पर आसीन रही कांग्रेस को तो जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया, लेकिन अब भारतीय जनता पार्टी ने भी कांग्रेस के रास्तों पर चलना शुरू कर दिया है, संभाग की शहडोल संसदीय सीट सहित आठ विधानसभा क्षेत्रों पर नजर डालें तो सिर्फ कोतमा ही ऐसी एक सीट है जो सवर्णों के लिए बची हुई है, शेष 7 विधानसभा सीटें व संसदीय सीट आदिवासी समुदाय के लिए आरक्षित है, लेकिन इन सीटों पर भी कुछ विशेष आदिवासी समुदाय के परिवारों का कब्जा पहले कांग्रेस के शासनकाल में रहा, फिर वहीं परिवार भाजपा में भी नजर आ रहे हैं, यह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सत्ता चाहे कांग्रेस की हो या फिर भाजपा की, केंद्र व प्रदेश मुख्यालय में बैठे कर्णधारों के लिए शायद ऐसे परिवार मजबूरी बन चुके हैं या फिर उन्हें इस बात की फिक्र ही नहीं है कि आदिवासियों का उद्धार किया जाए व नए चेहरों को जगह दी जाए। इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी ने जहां मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर तथा केंद्र में बड़े-बड़े नेताओं को उम्र के फार्मूले में लाकर रिटायर कर दिया, लेकिन शहडोल में न तो भाजपा परिवारवाद से बाहर निकल पा रही है और न हीं वह यह फार्मूला यहां लागू करने में सफल हो पा रही है,।
शहडोल जिले की संसदीय सीट के इतिहास पर नजर डालें तो वर्तमान में यहां से भारतीय जनता पार्टी की महिला सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह सांसद है, इससे पहले उमरिया जिले के बांधवगढ़ विधानसभा के निवासी ज्ञान सिंह सांसद थे, ज्ञान सिंह से पहले पुष्पराजगढ़ के निवासी स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते के अलावा कांग्रेस से स्वर्गीय श्रीमती राजेश नंदिनी सिंह और स्वर्गीय श्री दलबीर सिंह लंबे समय तक शहडोल संसदीय क्षेत्र के सांसद रहे, दोनों ही वर्तमान सांसद श्रीमती हेमाद्री सिंह के माता-पिता रहे हैं। इस तरह देखा जाए तो शहडोल संसदीय क्षेत्र की सीट स्वर्गीय दलवीर सिंह के परिवार तथा स्वर्गीय दलपत सिंह परस्ते के अलावा ज्ञान सिंह के परिवार के इर्द-गिर्द ही घूमती रही, ऐसा नहीं है कि शहडोल संसदीय क्षेत्र के शहडोल – उमरिया – अनूपपुर क्षेत्र की आठ विधानसभा क्षेत्रों और कटनी जिले के बड़वारा विधानसभा क्षेत्र में पढ़े लिखे,अनुभवी तथा समझदार आदिवासी समुदाय के नेताओं की कमी है, लेकिन कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही, न तो कभी इस ओर ध्यान दिया, बल्कि सिर्फ जीत के फार्मूले पर एक दूसरे के नेताओं पर ही दांव लगाते रहे।
विधानसभा क्षेत्रों का भी यही हाल
वर्तमान में शहडोल संसदीय क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के शहडोल मुख्यालय की जयसिंहनगर सीट से जय सिंह मरावी विधायक हैं, श्री मरावी इससे पहले जैतपुर विधानसभा सीट का दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, इससे भी पहले जय सिंह मरावी अनूपपुर जिले की कोतमा विधानसभा सीट से भी दो बार चुने जा चुके हैं, सरल स्वभाव के जयसिंह मरावी पूर्व में शिवराज सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं और उनकी उम्र 75 के ऊपर है,पर भाजपा ने उन्हें 75 के फार्मूले से दूर ही रखा, वर्तमान में उन्हीं के परिवार की बहू श्रीमती हिमाद्री सिंह शहडोल संसदीय क्षेत्र के सांसद हैं, इतना ही नहीं जय सिंह मरावी के भतीजे नरेंद्र मरावी को बीते विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने पुष्पराजगढ़ सीट से मौका दिया था और वे चुनाव हार गए थे, इससे भी पहले भाजपा ने नरेंद्र मरावी को उनकी सास स्वर्गीय राजेश नंदनी के खिलाफ मैदान में संसदीय सीट से उतारा था, लेकिन नरेंद्र को इसमें भी हार मिली थी, कुल मिलाकर देखा जाए तो शहडोल संभाग की राजनीति जयसिंह मरावी के परिवार का दखल सबसे अधिक है, सवाल उठता है कि भारतीय जनता पार्टी के सामने आखिर कौन सी मजबूरी है जो उसके द्वारा जयसिंह मरावी के ऊपर लगातार दाँव खेला जात रहा, क्या भारतीय जनता पार्टी के पास कोई योग्य प्रत्याशी नहीं था, क्या पार्टी को इस बात की आशंका थी कि किसी और व्यक्ति को मैदान में उतारने पर सीट हाथ से जा सकती है, ऐसा भी नहीं है कि जयसिंह मरावी ने कोतमा और जैतपुर में अपने कार्यकाल के दौरान अभूतपूर्व विकास के कार्य किए हो, यदि ऐसा होता तो उन विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी को हार का डर नहीं सताता और नए चेहरे पर पार्टी दाँव नहीं लगाती।
उमरिया में सिर्फ दो ही चेहरे
संभाग के उमरिया जिले में दो विधानसभा सीटें हैं जिसमें से बांधवगढ़ विधानसभा सीट पर पूर्व सांसद ज्ञान सिंह के पुत्र शिव प्रसाद सिंह विधायक हैं वहीं दूसरी सीट पर कैबिनेट मंत्री मीना सिंह काबिज हैं, मीना सिंह की यह सीट उनकी परंपरागत सीट मानी जाती है, हालांकि मीना सिंह ने लगभग चुनावों में यहां से जीत दर्ज की है लेकिन सवाल फिर वही उठता है कि नए चेहरों को मौका आखिर क्यों नहीं मिल पा रहा है, भारतीय जनता पार्टी ने एक उम्र के बाद सेवानिवृत्ति का फार्मूला तो बनाया लेकिन जब ज्ञान सिंह की जगह संसदीय क्षेत्र की जिम्मेदारी पूर्व सांसद की पुत्री को दी गई तो यह परिवारवाद और मैनेजमेंट का खेल खुलकर नजर आया,भाजपा ने सांसद ज्ञान सिंह को मैनेज करने के लिए उन्हीं के सगे बेटे को विधानसभा में उतार दिया।
अनूपपुर में भी प्रतिभाओं की कमी नहीं
अनूपपुर जिले की तीन विधानसभा सीटों पर नजर डालें तो मुख्यालय की अनूपपुर विधानसभा सीट पर भाजपा बीते दो दशकों से रामलाल रौतेल पर भरोसा करती रही, रामलाल बीते दशकों में दो विधानसभा चुनाव हार चुके हैं जबकि दो चुनाव उन्होंने जीते भी हैं, अब तो भाजपा ने कांग्रेस का खेल खत्म करते हुए कांग्रेस के चेहरे को ही अपना चेहरा बना दिया और इस तरह देखा जाए तो अनूपपुर विधानसभा में कांग्रेस हो या भाजपा उनके पास रामलाल रौतेल और बिसाहूलाल सिंह के अलावा कोई तीसरा चेहरा बीते दो से ढाई दशकों के दौरान नहीं सामने आ पाया, हालांकि बीते चुनावों में बिसाहूलाल के भाजपा में जाने के बाद कांग्रेस ने विश्वनाथ सिंह पर दाँव जरूर खेला था लेकिन भारतीय जनता पार्टी इस बार बिसाहूलाल को मैदान में उतारने के बाद आगामी चुनावों में संभवत फिर बिसाहू या रामलाल के अलावा किसी और पर शायद ही भरोसा करें, अनूपपुर जिले की पुष्पराजगढ़ विधानसभा क्षेत्र में क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है लेकिन बीते विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने यहां से स्थानीय युवाओं पर तथा पुराने चेहरों पर भरोसा न करते हुए आयातित नेता व पाठ के दमाद पर दांव खेला था, हालांकि भाजपा का यह गांव पूरी तरह से फेल हो गया व परिवारवाद व वंशवाद की चर्चाएं हर जगह सुनने को मिली।
चुनावों की तरह संगठन भी इन्हीं
के इर्द-गिर्द सिमटा
शहडोल संसदीय क्षेत्र के विधानसभा और लोकसभा चुनाव के अलावा यदि संगठन के पदों पर भी नजर डाली जाए तो प्रदेश और केंद्र का नेतृत्व संसदीय क्षेत्र के 8 विधानसभा क्षेत्र और हजारों ग्रामों में नए चेहरे तलाशने में नाकाम रहा, ना तो उन्हें सवर्णो के किसी चेहरे चेहरों पर भरोसा दिखाया और नहीं आदिवासी समुदाय के अन्य चेहरों पर ही भरोसा दिखाया गया, यही कारण रहा कि शहडोल संसदीय क्षेत्र से भाजपा सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह को उक्त पद के अलावा संगठन में भी महिला प्रदेश उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई, यही स्थिति जैतपुर विधानसभा क्षेत्र की विधायक श्रीमती मनीषा सिंह की रही, जिन्हें विधायक पद के साथ ही प्रदेश संगठन में भी जिम्मेदारी सौंपी गई, श्रीमती हेमाद्री सिंह और ज्ञान सिंह के परिवार की तरह ही जैतपुर विधायक श्रीमती सिंह भी परिवारवाद से घिरी हुई है, मूलतः कांग्रेस परिवार से ताल्लुक रखने वाली श्रीमति सिंह के पिता ध्यान सिंह तो बीते विधानसभा चुनावों में शहडोल सम्भाग की बांधवगढ़ विधानसभा से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे है, सम्भाग में भाजपा प्रदेश व केंद्र नेतृत्व दूसरी लाइन तैयार करने के लिए किसी अन्य चेहरे को तलाश सकता था या फिर अन्य पर भी भरोसा दिखा सकता था, जिससे कहीं न कहीं संगठन को और अधिक बल मिलता और सत्ता व संगठन की एक धुरी न बनती लेकिन कांग्रेस की राह पर चलने के लिए भाजपा के कर्णधारों ने शायद इस और कोई ध्यान ही नहीं दिया।
………..क्रमशः