मेरी-मर्जी की तर्ज पर रेलवे के कानून

मुख्य द्वार पर नहीं रहते रेलवे के जिम्मेदार
नो-पार्किंग में खड़े वाहन मालिकों से वसूली
शहडोल। बिलासपुर जोन अंतर्गत शहडोल रेलवे स्टेशन को बी ग्रेड का दर्जा प्राप्त है, बिलासपुर से उमरिया के बीच बिलासपुर के बाद शहडोल बड़ा रेलवे स्टेशन माना जाता है, किंतु यहां यात्रियों की मूलभूत सुविधाओं की कमी सहित रेल नियमों को ताक पर रखकर मेरी मर्जी की तर्ज पर कार्य किया जाता है। प्लेटफार्म पर ट्रेनों की आवाजाही के वक्त मुख्य द्वार पर यात्रियों की टिकट जांच सहित यात्रियों के अन्य गतिविधियों पर कड़ी नजर रखने हेतु जिन टिकट निरीक्षक व रेल के जवानों को तैनात होना चाहिए, इन दिनों उनकी जगह रिक्शा चालकों व ऑटो वालो ने ले रखी है , जो सवारियों के इंतजार में उक्त स्थान पर डटे रहते हैं, कभी-कभी तो ऑटो चालक मस्त मौला होकर प्लेटफार्म के अंदर तक आ जाते हैं।
मुख्य द्वार आटो चालको का डेरा
संभागीय मुख्यालय के रेलवे कर्ममचारी सब कुछ जानते व देखते हुए भी अपने स्थान से विमुक्त रहकर अन्य स्थानों मे खड़े रहकर मौन नजर आते हैं, जिसकी वजह से प्लेटफॉर्म के अंदर कई मनचलों का भी प्रवेश होता है साथ ही बिना टिकटधारी लोग भी मुख्य द्वार से आवाजाही करते रहते हैं। विगत 2 दिन पूर्व रेलवे बोर्ड नई दिल्ली सहित बिलासपुर डिवीजन से कुछ अधिकारियों का जत्था रेलवे स्टेशन सहित रेल विभागों की जांच में आया हुआ था, उस वक्त स्टेशन के मुख्य द्वार पर तैनात दर्जनों टिकट निरीक्षक सहित रेल के सैकड़ों पुलिस के जवानों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो 12 महीने रेलवे क्षेत्र पर ऐसे ही चाक-चौबंद व्यवस्थाएं रहती है।

स्टेशन के मुख्य द्वार के सामने रेलवे सड़क के बगल से लगी रैलिंग के सामने वाहन पार्किंग किए जाने पर रेल पुलिस के जवानों द्वारा हाथ में डंडा लहराते हुए वाहन मालिकों को ऐसी चेतावनी दी जा रही थी, मानो अगर तुरंत नो पार्किंग से वाहन नहीं हटाया गया तो, वाहन सहित वाहन मालिक को भी लॉकअप में डाल दिया जाएगा, जवानों द्वारा कड़क होना जरूरी भी था, क्योंकि वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था रेलवे क्षेत्र में रेलवे द्वारा कराई भी गई है, किंतु एक बड़ा सवाल यह भी है कि नो-पार्किंग पर क्या रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों के दौरे के वक्त ही वाहनों को नो पार्किंग में खड़ा करना अपराध है या फिर इन नियमों का पालन हमेशा ही होना चाहिए।
रेलवे की साख पर बट्टा
वर्षों से नो पार्किंग में रोजाना सैकड़ों वाहनों को जब पार्किंग किया जाता है, जिसमें मुख्य रूप से रेलकर्मी भी शामिल होते हैं, यहां तक की दिव्यांग पार्किंग में भी रेल कर्मचारियों द्वारा वाहनों को खड़ा किया जाता है, उस वक्त रेलवे पुलिस के जवान इस पर रोक क्यों नहीं लगाते हैं, आश्चर्य की बात तो यह है कि नो-पार्किंग में खड़े वाहन मालिकों से 10 से 20 अवैध वसूली तक की जाती है, साथ ही किसी के विरोध करने पर वसूली करने वालों के द्वारा वाहन मालिकों को देख लेने की धमकी तक दी जाती है। किंतु रेल प्रशासन मौन रहकर तमाशा देखता रहता है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि स्थानीय रेल प्रशासन के सह मे ही यह कार्य हो रहा है। रेल के वरिष्ठ अधिकारियों को इस ओर ध्यान आकृष्ट कर इस पर लगाम लगाना होगा, अन्यथा रेलवे की साख पर स्थानीय रेल प्रशासन द्वारा ही बट्टा लगा दिया जायेगा।