बांधवगढ़ की शान एवं धार्मिकता की प्रतीक चरण गंगा नदी हुई प्रदूषित 

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रिसोर्ट सहित अनेक जगहों से निकले दूषित जल से नदी हुई मलिन

उमरिया /मानपुर।  एक तरफ जल प्रदूषण तेजी के साथ बढ़ रहा है और आम नागरिक प्रदूषित जल के कारण ही तरह-तरह की बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं जिससे यह लाजमी है कि इस नदी की सफाई सरकारी अमले द्वारा तो किया ही जाए बल्कि आम लोग भी इस दिशा में आगे कदम बढ़ाए जिस तरह से अन्य स्थानों में नदियों को साफ सुथरा बनाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं यदि इस नदी के प्रदूषण को खत्म करने के लिए भी ऐसे ही उपाय किए जाए तो निश्चित तौर पर यह एक सार्थक पहल होगी।
बांधवगढ़ से निकलकर सोन नदी में होती है समाहित
चरण गंगा बांधवगढ़ से निकलकर सोन नदी एवं ज्वालामुखी आश्रम को भी स्पर्श करते हुए निकलती है यह नदी इतनी पावन नदी है कि विश्व प्रसिद्ध बांधवगढ़ ताला के कबीरपंथी का एक भव्य मेला भी लगता है, जैसे हम प्रयागराज से गंगाजल को लाकर अपने घरों में सहेज कर रखते हैं, वैसे ही कबीरपंथी अनुयाई यह बताते हैं कि चरण गंगा के जल को हम ले जाकर संजो कर रखते हैं, यह नदी एमपी टूरिज्म के पीछे से ताला गेट के सामने ताला से होकर मानपुर से गुजरते हुए सोन नदी में जाकर समा जाती है
रिसोर्ट बहा रहे नदी में गन्दा पानी   
सूत्रों की माने तो ताला बांधवगढ़ नेशनल पार्क में रिसोर्ट मालिकों द्वारा गंदा पानी भरकर कचरा निकासी कर प्रदूषित करके इसे अमृत रूपी जल को प्रदूषित किया जाता है। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की पवित्र नर्मदा नदी के संरक्षण को लेकर १४४ दिन की यात्रा चलाते हुए पूरे विश्व में धार्मिक एवं ऐतिहासिक कार्य किया है, साथ ही पूरे प्रदेश में नदियों के संरक्षण हेतु कार्य योजना बनाने की बात कही है, यदि इस नदी के प्रदूषण को समाप्त करने की दिशा में भी कोई कदम उठाया जाए तो यहां से प्रदूषण समाप्त हो सकता है।
खतरे में नदी का अस्तित्व
इसी तरह उमरिया जिले के बांधवगढ़ टाइगर प्रोजेक्ट क्षेत्र की इकलौती जीवनदायिनी चरण गंगा नदी को ताला एवं आसपास के रिसोर्ट के द्वारा गंदा पानी नदी पर गिरने पर रोक लगाई जानी चाहिए, इसके साथ ही साथ अवैध उत्खनन रेत माफियाओं के कारण नदी का अस्तित्व खतरे में है, इसके संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में जो प्रयास किए जा रहे हैं, वह नाकाम है ताला एवं बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के समीप लक्ष्मण जी के चरणों से निकली गंगा कई ग्रामीण अंचलों में रहने वाले आदिवासियों के पीने के पानी के साथ सिंचाई सुविधा का मुख्य स्त्रोत है जंगली जानवरों की जीवनदायिनी चर गंगा पिछले कुछ वर्षों से बेहाल हो रही है।
करोड़ों खर्च के बाद भी सुधार नहीं
पर्यावरण प्रेमियों का कहना है की नदी के संरक्षण की आवश्यकता है जल स्रोतों के संरक्षण को लेकर लाखों करोड़ों खर्च करने के बाद भी चरण गंगा के संरक्षण को लेकर प्रशासन व जनप्रतिनिधियों द्वारा कोई प्रयास नहीं किए जा रहे है जिससे नदी का पानी दिन प्रतिदिन प्रदूषित होता चला जा रहा है और इस में गंदगी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।
तटों पर हो रहा अतिक्रमण
किस नदी के तट पर अवैध रूप से कब्जा करने वालों ने नदियों के क्षेत्रफल को संकुचित करने का जो प्रयास किया है यदि यही स्थिति बनी रही तो नदी नाम का कोई चीज ही नहीं रह जाएगी और नदी नाले या नहर का रूप धारण कर लेगी, इतना ही नहीं बल्कि इस नदी पर अंधाधुंध रेत उत्खनन किया जा रहा है, जिससे नदी की शक्ल बिगड़ती चली जा रही है। स्थानीय लोगों व पर्यावरण प्रेमियों ने जिला प्रशासन और मुख्यमंत्री से मांग की है कि इस नदी को बचाने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाए।

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