पुलिस की बड़ी चूक से कोर्ट परिसर में मचा बवाल, अधिवक्ताओं और पुलिस में तीखी झड़प गलत पहचान ने बढ़ाया तनाव,विरोध से घंटों गूंजता रहा कोर्ट परिसर
पुलिस की बड़ी चूक से कोर्ट परिसर में मचा बवाल, अधिवक्ताओं और पुलिस में तीखी झड़प गलत पहचान ने बढ़ाया तनाव,विरोध से घंटों गूंजता रहा कोर्ट परिसर
झिंझरी जेल मोड़ के पास पुलिस की लापरवाही ने कानून व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया। जिला बदर आरोपी अरमान द्विवेदी की तलाश में पहुंची सायबर सेल और पुलिस टीम ने बिना सही जांच-पड़ताल के रीवा निवासी निर्दोष युवक सागर सिंह को आरोपी समझकर पकड़ लिया। पुलिस ने युवक की “बॉडी लैंग्वेज” देखकर उसे अपराधी मान लिया और यही गलती भारी पड़ गई। मौके पर मौजूद अधिवक्ताओं ने जब पुलिस की इस मनमानी देखी तो जमकर विरोध किया। कुछ ही देर में बड़ी संख्या में अधिवक्ता कोर्ट परिसर में एकत्र हो गए और पुलिस कार्रवाई के खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी। दोनों पक्षों के बीच तीखी नोकझोंक हुई और कोर्ट परिसर में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। कई घंटे तक चले हंगामे के बाद आखिरकार पुलिस और अधिवक्ताओं ने माननीय न्यायाधीश के समक्ष पूरी घटना रखी। पुलिस ने गलती स्वीकार की और स्थिति शांत हुई। इस घटना ने पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगा दिए हैं। बिना ठोस सबूत और पहचान सत्यापन के किसी निर्दोष को गिरफ्तार कर लेना न केवल न्याय की गरिमा के साथ खिलवाड़ है, बल्कि पुलिस की कार्यप्रणाली पर अविश्वास भी बढ़ाता है।
कटनी।। झिंझरी जेल मोड़ के पास बुधवार को पुलिस की एक बड़ी लापरवाही ने पूरे कोर्ट परिसर में हंगामा खड़ा कर दिया। जानकारी के अनुसार, पुलिस को जिला बदर आरोपी अरमान द्विवेदी की लोकेशन मिलने पर सायबर सेल और थाना पुलिस की टीम कोर्ट पहुंची, लेकिन जल्दबाजी और गलत पहचान के चलते पुलिस ने निर्दोष व्यक्ति को पकड़ लिया। पुलिस ने कार्रवाई के दौरान रीवा निवासी सागर सिंह को आरोपी समझकर हिरासत में ले लिया, जिससे मौके पर मौजूद अधिवक्ताओं में आक्रोश फैल गया। देखते ही देखते बड़ी संख्या में वकील कोर्ट परिसर में जमा हो गए और पुलिस कार्रवाई का विरोध करने लगे। दोनों पक्षों में तीखी नोकझोंक और बहस का दौर चला, जिससे माहौल तनावपूर्ण बन गया। घटना की सूचना मिलते ही सीएसपी नेहा पच्चीसिया सहित चारों थाना प्रभारियों और पुलिस बल को मौके पर तैनात किया गया। काफी मशक्कत और माननीय न्यायाधीश के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हो सका। इस घटना ने एक बार फिर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। बिना ठोस पुष्टि और जांच के जल्दबाजी में की गई कार्रवाई न केवल आम नागरिकों के लिए परेशानी का सबब बनी, बल्कि अधिवक्ता वर्ग और पुलिस के बीच अविश्वास का माहौल भी पैदा कर गई।