स्वास्थ्य सेवा की प्राथमिकता के लिए ग्रहण है प्रशासन और जनप्रतिनिधि

मनमानी के सामने झुकने से अच्छा, हो एक्शन
शहडोल। अस्पताल मरीजों और उनके परिवारवालों से पैसों की किसी भी तरीके से जबरन वसूली की राह पर चल पड़े हैं। जानकारों के मुताबिक, अस्पतालों की ऐसी मनमानी के आगे सिर झुकाने से बेहतर है कि सही वक्त पर एक्शन
लिया जाए। अस्पताल की पहली ड्यूटी संविधान के अनुच्छेद 21 पर आधारित है। जिसके अंतर्गत सबको एक हेल्थ केयर मिलनी चाहिए। यह जो प्राइवेट हॉस्पिटल स्ट्रक्चर आया है, वह इसलिए आया क्योंकि सरकारी संस्थान हर
नागरिक की सुविधाओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे थे। निजी चिकित्सालय में भर्ती मरीजों का इलाज का खर्चा दवाओं का बढ़ रहा है। दवाएं इलाज के पैकेज में शामिल नहीं हैं। अस्पताल में स्थित मेडिकल स्टोर से मरीजों को एमआरपी पर दवाएं दी जा रही हैं, ये दवाएं बाजार में सस्ती दर पर मिल रही हैं। मगर, तीमारदार बाजार से दवाएं नहीं खरीद सकते हैं। इन मेडिकल स्टोर से मरीजों को एमआरपी पर दवाएं दी जाती हैं। ड्रिप सेट का थोक रेट 20 से 25 रुपये है, इस पर एमआरपी 185 रुपये तक है। ये भी एमआरपी से दिए जा रहे हैं। इसी तरह 500 रुपये की कॉटन का थोक रेट 80 से 100 रुपये है, इसकी एमआरपी ढाई गुना अधिक 250 से 280 रुपये तक है। इसी तरह से सस्ते और महंगे इंजेक्शन भी एमआरपी पर दिए जा रहे हैं। इससे इलाज का खर्चा बढ़ रहा है। निजी चिकित्सालयों में मरीजों के स्वास्थ्य के साथ खुलेआम खिलवाड़ किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग मे कुंभकर्णी नींद खुलने का नाम नहीं ले रही है। दवाईयों और चिकित्सा के नाम पर किस प्रकार से अस्पताल लूट के अड्डे बन गए हैं और महंगे इलाज के नाम पर लोगों का शोषण कर रहे हैं। स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाल स्थिति को देखते हुए क्या आपको लगता है कि स्वास्थ्य सेवा सरकार की प्राथमिकता में है, बिल्कुल नहीं है। अस्पतालों केमनमाने रवैये से लगभग हर किसी को दो-चार होना पड़ता है। नाजुक मौके पर होने वाली लापरवाही से लोगों की जान भी चली जाती है। संविधान ने जीने का अधिकार तो प्रदान कर दिया है, लेकिन स्वास्थ्य का अधिकार मिलना अभी बाकी है। जिससे लोगों का समय पर समुचित इलाज हो सके। जिले के निजी चिकित्सालयों के सामने खड़े मरीजों के परिजन की बातों से दर्द छलकता है। उनके चेहरे पर झलकते दर्द को बाटने वाला कोई नहीं है। एक पढ़े लिखे पीड़ित के परिवार ने कहा कि वैसे महंगाई बहुत बढ़ गई है, इलाज के नाम पर लोगों की जेब ढीली करने का कोई मौका निजी चिकित्सालय प्रबंधन नहीं छोड़ता, अगर आपको दर्द है तो और आपको इंजेक्शन लगवाना है तो, आपको आकस्मिक चिकित्सा के नाम पर पहले शिकार होना पड़ता है, इसके अलावा निजी चिकित्सालय ने कई डॉक्टरों के पोस्टर लगा रखे हैं, लेकिन वह भी आपको मिल जायें यह आपकी किस्मत है, हॉस्पिटल के नंबर पर फोन लगाने पर आपको तुरंत चिकित्सा मिलने की झूठी जानकारी देकर बुला लिया जाता है और नौसिखिये आपसे पहले हजारो रूपये खर्च करवा लेते हैं, इसके बाद डॉक्टर साहब आपको मिल जाये, यह भी बड़ा सवाल है। एक ओर पूरे प्रदेश में विकास यात्रा निकाली जा रही है, वहीं दूसरी ओर चिकित्सा के क्षेत्र में निजी चिकित्सालय तीमारदारों से दर्द का सौदा कर रहे हैं, लेकिन स्थानीय प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को क्षेत्र की जनता के लुटने से कोई सरोकार नहीं है, संभवत: कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता है कि निजी चिकित्सालय में मिलने वाली सुविधा के एवज में वसूली जा रही फीस किस हद तक जायज है, इसके अलावा निजी चिकित्सालयों में संचालित मेडिकल स्टोर में तो मनमाने दाम पर दवाओं, आईवीसेट, डिस्पो वैन, कॉटन बेचा जा रहा है।