शहडोल शिक्षा विभाग में एक और घोटाला उजागर: जनशिक्षक पर शाला राशि गबन का आरोप, कार्यालय प्रमुख ने खुद भेजा नोटिस

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शहडोल जिले में शिक्षा विभाग के भीतर भ्रष्टाचार के मामलों की कड़ी में एक और मामला सामने आया है। हाल ही में जिला शिक्षा कार्यालय शहडोल के बहुचर्चित पेंट घोटाले के बाद अब जिला शिक्षा केंद्र, सर्व शिक्षा अभियान शहडोल के अधीन भी एक गंभीर अनियमितता उजागर हुई है। इस बार आरोप एक जनशिक्षक पर है, जिसने सरकारी धन का दुरुपयोग कर उसे अपने निजी खाते में स्थानांतरित किया। चौंकाने वाली बात यह है कि इस पूरे मामले में संबंधित अधिकारी को खुद जिला शिक्षा केंद्र के कार्यालय प्रमुख ने पत्र भेजकर जवाबदेही के दायरे में लिया है।

प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, मोहनलाल नापित, जनशिक्षक, शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बुद्धया (विकासखण्ड ब्यौहारी), ने प्राथमिक विद्यालय नवीन बसाहट पटपरी टोला, ग्राम पंचायत कुम्हियों में अतिरिक्त कक्षा निर्माण के लिए स्वीकृत ₹2,49,000 की राशि को शाला प्रबंधन समिति के खाते से निकालकर दिनांक 25 जून 2021 को अपने व्यक्तिगत बैंक खाते में जमा कर दिया। इस राशि को 5 जुलाई 2021 को पुनः समिति के खाते में लौटाया गया, परंतु इस दौरान हुए ब्याज की राशि की कोई जानकारी न दी गई और न ही वह राशि वापस की गई।

दस्तावेजों में स्पष्ट उल्लेख है कि यह राशि शासन के आदेश क्रमांक 1829 दिनांक 15.11.2017 के तहत जारी की गई थी। इस राशि की वापसी भले ही कुछ दिनों बाद हो गई हो, लेकिन इसे व्यक्तिगत खाते में रखना न केवल नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह भ्रष्टाचार और गबन की श्रेणी में आता है। इस कार्य को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) के अंतर्गत भी देखा जा सकता है।

इस संबंध में जिला परियोजना समन्वयक, जिला शिक्षा केंद्र शहडोल ने श्री नापित को एक सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है और स्पष्ट किया है कि यदि समय सीमा के भीतर संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया, तो उनके खिलाफ एकपक्षीय कार्रवाई की जाएगी। साथ ही यह भी निर्देशित किया गया है कि जिस अवधि में सरकारी राशि निजी खाते में रही, उस पर उत्पन्न हुआ ब्याज भी तत्काल शाला प्रबंधन समिति के खाते में जमा कराया जाए।

यह मामला तब और भी गंभीर हो जाता है जब इसे हाल ही में सामने आए जिला शिक्षा कार्यालय शहडोल के पेंट घोटाले की पृष्ठभूमि में देखा जाता है, जहां 4 लीटर पेंट पोतने के लिए 168 मजदूरों के नाम दर्शा कर लाखों के बिल लगाए गए थे। ऐसे में यह नया प्रकरण शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े करता है।

जनता और शिक्षा से जुड़े संगठनों की मांग है कि इस तरह के मामलों में कठोर जांच हो और दोषियों को निलंबन व दंड की कार्रवाई से गुजरना पड़े, ताकि शिक्षा व्यवस्था की गरिमा और जनता का विश्वास दोनों बहाल रह सके।

अब देखना यह है कि जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग इस गंभीर मामले को किस प्राथमिकता से लेते हैं और क्या यह उदाहरण भविष्य में विभागीय ईमानदारी का मार्ग प्रशस्त करेगा।

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