शहडोल में बड़ा खुलासा: डीपीसी के आदेश पर अर्बन बेसिक स्कूल के प्राचार्य ने जलाए रिकॉर्ड और किताबें, उठे सवाल

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सुधीर यादव (9407070722)
शहडोल – जिले के शासकीय अर्बन बेसिक प्राथमिक विद्यालय में प्रशासनिक लापरवाही और नियमों की अनदेखी का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। विद्यालय के प्राचार्य द्वारा जिला परियोजना समन्वयक (DPC) के मौखिक आदेश का हवाला देते हुए विद्यालय के महत्वपूर्ण रिकॉर्ड, दस्तावेजों और शैक्षणिक किताबों को आग के हवाले कर दिया गया। यह कदम न सिर्फ शिक्षा विभाग के नियमों के विपरीत है बल्कि इसमें आपराधिक लापरवाही की भी आशंका जताई जा रही है।
क्या है मामला?
प्राप्त जानकारी के अनुसार, शासकीय अर्बन बेसिक प्राथमिक विद्यालय, जो कि नगर के शिक्षा केंद्रों में से एक है, वहां के प्राचार्य ने हाल ही में स्कूल परिसर में बड़ी संख्या में पुराने रिकॉर्ड, दस्तावेज और किताबों को जलाकर नष्ट कर दिया। जब स्कूल स्टाफ और कुछ शिक्षकों ने इसका कारण पूछा, तो प्राचार्य ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह कार्य DPC के मौखिक आदेश पर किया गया है।
हालांकि, न तो इसके लिए कोई लिखित आदेश प्राप्त हुआ था और न ही नियमानुसार किसी दस्तावेज को नष्ट करने की वैधानिक प्रक्रिया अपनाई गई थी।
किन दस्तावेजों को जलाया गया?
सूत्रों के अनुसार, जिन दस्तावेजों को जलाया गया, उनमें शामिल थे:
विद्यार्थियों के पुराने नामांकन रिकॉर्ड
वार्षिक परीक्षा की अंकसूचियाँ
शैक्षणिक कैलेंडर और निरीक्षण रिपोर्ट
पुरानी किताबें जो शायद उपयोग में लाई जा सकती थीं
लेखा विभाग के कुछ पुराने बिल और वाउचर
इन दस्तावेजों की वैधानिक अवधि समाप्त हुई थी या नहीं, इसकी भी कोई पुष्टि नहीं की गई है।
क्या है नियम?
शासकीय कार्यालयों में किसी भी प्रकार का दस्तावेज नष्ट करने के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया होती है। इसके अंतर्गत संबंधित दस्तावेजों की एक सूची बनाई जाती है, फिर विभाग प्रमुख से अनुमति ली जाती है और एक नष्टीकरण समिति गठित कर उस सूची के दस्तावेजों को नियमानुसार नष्ट किया जाता है। इसकी एक विधिवत रिपोर्ट भी तैयार की जाती है।
मौखिक आदेश पर या बिना नष्टीकरण समिति के गठन के कोई भी दस्तावेज जलाना न सिर्फ सेवा नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह प्रशासनिक अपराध की श्रेणी में भी आता है।
इस पूरे मामले में संभावित कार्यवाही
इस गंभीर मामले को लेकर शिक्षा विभाग में हड़कंप की स्थिति है। जानकारों का मानना है कि इस घटना की निष्पक्ष जांच कराई जानी चाहिए। संभावित प्रक्रिया इस प्रकार हो सकती है:
1. फोरेंसिक जांच: जलाए गए दस्तावेजों की सामग्री का फोरेंसिक जांच के लिए सैंपल लिया जा सकता है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कौन-कौन से रिकॉर्ड नष्ट किए गए।
2. विभागीय जांच समिति का गठन: जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की जा सकती है जो पूरे प्रकरण की रिपोर्ट तैयार करे।
3. प्राचार्य पर अनुशासनात्मक कार्रवाई: अगर यह पाया गया कि उन्होंने बिना लिखित आदेश के दस्तावेज जलाए, तो उन पर सस्पेंशन, वेतनवृद्धि रोकना या बर्खास्तगी जैसी कार्रवाई की जा सकती है।
4. DPC की भूमिका की जांच: मौखिक आदेश देने वाले DPC की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। अगर उन्होंने मौखिक आदेश दिया था तो वह भी नियम विरुद्ध है। उन्हें भी जांच के दायरे में लाया जाना चाहिए।
5. एफआईआर की संभावना: अगर दस्तावेजों में सरकारी राशि के लेन-देन से जुड़े कोई रिकॉर्ड थे, तो यह भ्रष्टाचार और साक्ष्य मिटाने की धाराओं के अंतर्गत आपराधिक प्रकरण बन सकता है। इस स्थिति में एफआईआर भी दर्ज हो सकती है।
जनप्रतिनिधियों और अभिभावकों में नाराज़गी
इस घटना को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधि और अभिभावक बेहद नाराज़ हैं। उनका कहना है कि बच्चों की शिक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण रिकॉर्ड इस प्रकार जलाना एक अपराध है। वे मांग कर रहे हैं कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए और शिक्षा संस्थानों में पारदर्शिता लाई जाए।
निष्कर्ष
यह घटना न केवल एक स्कूल का प्रशासनिक मामला है, बल्कि यह सरकारी व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है। जब जिम्मेदार अधिकारी खुद नियमों को ताक पर रखकर काम करेंगे, तो व्यवस्था में आमजन का विश्वास कैसे बना रहेगा?
अब देखना यह है कि प्रशासन इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है और दोषियों पर कब और कैसी कार्रवाई करता है। शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इस प्रकार की लापरवाही भविष्य की पीढ़ियों को नुकसान पहुंचा सकती है। ऐसे में सख्त कार्यवाही और व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है।