उमरिया में ईओडब्ल्यू की फाइल दबाने का मामला: सवालों के घेरे में कलेक्ट्रेट और नापतौल विभाग

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उमरिया। जिले में केके वेयरहाउस से जुड़े आर्थिक घोटाले की जांच के लिए भेजी गई आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) की महत्वपूर्ण फाइल दो महीनों तक कलेक्टर कार्यालय में ही दबाकर रखी गई। यह फाइल उस समय बाहर निकली जब मामला मीडिया में सुर्खियां बनने लगा। यह घटनाक्रम प्रशासनिक प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है कि आखिरकार क्यों और कैसे इतना संवेदनशील दस्तावेज कलेक्टर तक नहीं पहुंच पाया।

भोपाल से भेजा गया था पत्र, लेकिन नहीं पहुंचा कलेक्टर तक

भोपाल स्थित ईओडब्ल्यू कार्यालय द्वारा कलेक्टर उमरिया को दिनांक 26 मई 2025 को एक पत्र भेजा गया था, जिसमें जिले के एक वेयरहाउस संचालक के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी गई थी। यह पत्र सहायक महानिरीक्षक (अपराध) सुनील कुमार पाटीदार के हस्ताक्षर से जारी किया गया था। लेकिन दो महीने बीत जाने के बाद भी यह पत्र कलेक्टर तक नहीं पहुंच पाया। सूत्रों के अनुसार, यह फाइल कलेक्ट्रेट के ही किसी विभागीय कर्मचारी द्वारा अलमारी में बंद कर रख दी गई थी।

क्या किसी ‘नामी’ को बचाने का प्रयास?

यह पूरा मामला तब चर्चा में आया जब एक आरटीआई कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा शिकायत दर्ज कराई गई थी कि जिले के नापतौल विभाग के निरीक्षक और एक वेयरहाउस संचालक के बीच मिलीभगत से बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की गई है। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि गोडाउन संचालक कृष्ण कुमार गुप्ता और नापतौल निरीक्षक कमार गुप्ता ने नियमों का उल्लंघन करते हुए आर्थिक अनियमितताएं की हैं।

ईओडब्ल्यू को भेजी गई शिकायत की एंट्री ID 956825 है और आवेदन क्रमांक 1331825 है। ईओडब्ल्यू ने इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए कलेक्टर से जांच की अनुमति मांगी थी, लेकिन फाइल को कलेक्टर कार्यालय में जानबूझकर अटका दिया गया। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या किसी प्रभावशाली व्यक्ति को बचाने की कोशिश की जा रही है?

ईओडब्ल्यू का क्या है कार्य और महत्व?

आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (EOW) राज्य की विशेष जांच एजेंसी है जो आर्थिक और वित्तीय घोटालों की जांच करती है। इसमें जालसाजी, फर्जीवाड़ा, धन शोधन जैसे गंभीर मामलों की पड़ताल की जाती है। यह इकाई भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस मामले में भी, ईओडब्ल्यू ने अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए जांच की पहल की थी, लेकिन कलेक्टर कार्यालय के भीतर ही प्रशासनिक लापरवाही या किसी साजिश के कारण जांच प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई।

विभागीय नियम और शासन का उल्लेख

शासन के सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश क्रमांक एफ-2252589281-10 दिनांक 2 नवंबर 1993 के अनुसार, यदि कोई शिकायत ईओडब्ल्यू जांच के योग्य मानी जाती है तो संबंधित विभाग की अनुशंसा के साथ शासन की अनुमति लेकर ही प्रकोष्ठ को जांच सौंपनी होती है। इसी प्रक्रिया के तहत ईओडब्ल्यू ने कलेक्टर से अनुमति मांगी थी, लेकिन दो महीने बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।

कलेक्टर की भूमिका पर उठ रहे सवाल

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कलेक्टर इस मामले से पूरी तरह अनजान हैं या फिर जानबूझकर इस पत्र को नजरअंदाज किया गया? यह भी आशंका जताई जा रही है कि नापतौल विभाग ने कलेक्टर को गुमराह किया और इस पत्र को जानबूझकर दबाया ताकि संबंधित ‘नामी’ व्यक्ति के खिलाफ जांच आगे न बढ़ सके। यदि ऐसा हुआ है तो यह प्रशासनिक कदाचार की गंभीर श्रेणी में आता है।

क्या जिम्मेदार अधिकारियों पर होगी कार्रवाई?

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जो अधिकारी या कर्मचारी इस पत्र को दबाने के लिए जिम्मेदार हैं, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई होती है। इस तरह के मामले प्रशासन की पारदर्शिता और जवाबदेही पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं। जनता का भरोसा तभी बहाल हो सकता है जब इस मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए।

घोटाले का संक्षिप्त विवरण

सूत्रों की मानें तो शिकायत में वेयरहाउस से जुड़ी घटिया स्टोरेज व्यवस्था, सरकारी मापदंडों की अनदेखी और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। नापतौल निरीक्षक पर भी मिलीभगत का आरोप है, जो प्रशासन की निष्क्रियता के कारण अब तक कार्रवाई से बचता नजर आ रहा है।

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