चंदा को लगा ग्रहण: पंगू हुई तमाम शासकीय योजनाएं

शासन की समस्त सुविधाओं, योजनाओं से कोसों दूर चंदा का
परिवार
पीएम आवास, उज्जवला से लेकर तमाम योजनाएं हुई ढेर
शहडोल। केन्द्र एवं प्रदेश सरकार की लगभग महत्वकांक्षी योजनाओं का धरातल स्तर पर क्या हश्र हो रहा है, जमीनी स्तर पर योजनाएं कैसे दमतोड़ रही हैं, यह गोहपारू जनपद की ग्राम पंचायत करूआ में दलित, आदिवासी चंदा बसोर की दयनीय स्थिति को देखकर समझा जा सकता है, जिसे कई वर्ष बीत जाने के बाद भी किसी भी सुविधा का लाभ नहीं मिल पा रहा है। लिहाजा चंदा बसोर की पत्नी सहित बच्चे दूसरे प्रदेश में रोजगार और पेट पालने के लिए जाने को मजबूर हो रहे हैं।
बीपीएल के लिए दर-दर भटक रहा गरीब
ऐशों आराम, बिल्ंिडग, वाहन, मकान वालों का नाम बीपीएल में बड़ी आसानी से जुगाड़ व पैसों के दम पर जुडऩा तहसीलदार, पटवारी की कृपा से आसान हो जाता है, किन्तु पात्र परिवार को दर-दर अपना नाम गरीबी रेखा में जुडवाने के लिए भटकना पड़ रहा है, चंदा की माने तो कई बार वह तहसीलदार के पास अपने कागजात लेकर गिड़गिड़ा चुका है, बावजूद इसके सोर्स, सिफारिश, रिश्वत का जुगाड़ न होने की वजह से अभी तक चंदा के परिवार का नाम गरीबी रेखा में नहीं जुड़ पा रहा है।
पेट पालने कर रहे पलायन
केन्द्र सरकार द्वारा एक दशक से भी अधिक समय से लागू मनरेगा जैसी महत्वकांक्षी योजना भी चंदा बसोर व उसके परिवार को रोजगार उपलब्ध नहीं कर सकी। हर हाथ को काम देने का दावा करने वाले जनप्रतिनिधि और नौकरशाहों के लिए चंदा बसोर का परिवार भले ही चुनावों के दौरान वोट देने व विकास के दावे पेश करते समय आंकड़ों के खेल में काम आता हो, लेकिन हकीकत यह है कि इस परिवार को गांव में किसी भी तरीके से सुविधा, रोजगार, आवास न मिलने के कारण कभी चंदा पेट पालने के लिए दूसरे स्थानों में पलायन करता आ रहा है, कभी उसकी पत्नी दर-दर भटकर बच्चों का पेट भर रही है। यही नहीं बांस, घांस से बनी झोपड़ी भी बरसात के पानी से चंदा और उसके बच्चों की जिंदगानी को नहीं बचा पा रहा है, जिसे देखकर भी ग्राम पंचायत से लेकर जनपद व जिले में बैठे अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ता। बिना समाधान दबाव देकर बंद करा दी 181
परिवार के पास न तो छत है और न ही पेट भरने के लिए आय का कोई जरिया ही है, केन्द्र व राज्य में बैठे प्रशासनिक जिम्मेदारों के द्वारा शायद ऐसे ही परिवारों के लिए गरीबी रेखा से लेकर अन्य हितग्राही मूलक योजनाएं प्रारंभ की गई थी, लेकिन जब चंदा बसोर ने अन्य ग्रामीण की मदद लेकर गरीबी की सूची में अपना नाम जुड़वाने के लिए तहसील व पटवारी कार्यालय के चक्कर लगाकर थक गया तो, उसने 181 में मुख्यमंत्री हेल्प लाईन से न्याय मांगा, लेकिन गोहपारू तहसीलदार व स्थानीय हलका पटवारी ने शिकायत के बाद उस पर दबाव बनाकर हेल्प लाईन बंद करा दी। शर्म तो इस बात की है कि उन्हें चंदा बसोर की स्थिति पर भी तरस नहीं आया, शिकायत बंद कराने के बाद भी उसको गरीबी रेखा में शामिल नहीं किया गया।
लॉक डाउन में पड़े निवाले के लाले
लॉक डाउन-1 और लॉक डाउन-2 के दौरान जब पूरा देश कोरोना की मार झेल रहा था और आर्थिक मंदी ने बड़े-बड़े कारोबारियों की कमर तोड़ दी, इस दौरान जिस परिवार के पास रोजगार का पूर्व से कोई साधन न हो, सर पर छत न हो, उस परिवार ने इस लॉक डाउन को कैसे झेला होगा, यह सहज ही समझा जा सकता है। सामान्य दिनों में ही जिस परिवार को पेट भरने के लाले पड़े हो, संक्रमण काल में उनका क्या हाल होगा, यह शायद नौकरशाह और इनके वोटों से विधानसभा और लोकसभा तक पहुंचने वाले जनप्रतिनिधि शायद ही महसूस कर सकें।
इनका कहना है…
चंदा बसोर ने सीएम हेल्प लाईन में शिकायत तो की थी, किसी कारण वश अभी उसका नाम गरीबी रेखा में नहीं आ पाया है। हमनें सीएम हेल्प लाईन की शिकायत उससे बंद करवा दी है।
श्रद्धा गुप्ता
पटवारी, हलका करूआ
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मैं अभी पटवारी से बात करके रिपोर्ट पेश करने को बोलती हूं।
मीनाक्षी बंजारे
तहसीलदार, गोहपारू
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मैं तहसीलदार से तत्काल बात करता हूं, आखिर क्यों पात्र व्यक्ति का नाम अभी तक गरीबी रेखा में नहीं जुड़ पाया।
के.के. पाण्डेय
एसडीएम, जयसिंहनगर/गोहपारू
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ग्राम पंचायत के सचिव-सरपंच से बात कर तत्काल इसकी जांच कराई जायेगी, ऐसे गरीब परिवार को पहली प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जल्द ही जो दूसरा लक्ष्य आवास का आ रहा है, उसमें चंदा का आवास अवश्य बनेगा।
निर्देशक शर्मा
अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी
जनपद पंचायत, गोहपारू