सेंट एलोशियस स्कूल के बाहर अव्यवस्था, नाबालिगों के हाथों में वाहन,दुर्घटनाओं को न्योता स्कूल प्रबंधन, यातायात विभाग और अभिभावक जिम्मेदार

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शहडोल। शहर के नामी शिक्षण संस्थान सेंट एलोशियस स्कूल के बाहर इन दिनों भयावह स्थिति बन गई है। हर सुबह और दोपहर जब स्कूल में प्रवेश और छुट्टी का समय होता है, तो मुख्य द्वार के आसपास बाइक और स्कूटी का अंबार लग जाता है। हैरान करने वाली बात यह है कि इन वाहनों को चलाने वाले अधिकांश छात्र नाबालिग होते हैं, जिनकी उम्र 13 से 16 वर्ष के बीच है। यह न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि एक बड़े खतरे को भी न्योता देता है।
नाबालिगों के हाथ में दोपहिया, दुर्घटनाएं आम
स्कूल आने-जाने के लिए कई छात्र-छात्राएं बाइक, स्कूटी या अन्य दुपहिया वाहनों का उपयोग कर रहे हैं। यह दृश्य रोजमर्रा का हो गया है, जहां कक्षा 8वीं से 11वीं तक के बच्चे बिना ड्राइविंग लाइसेंस, बिना हेलमेट और बिना ट्रैफिक नियमों की जानकारी के वाहन दौड़ाते हैं। इससे न केवल उनकी अपनी जान खतरे में पड़ती है, बल्कि सड़क पर चलने वाले अन्य राहगीरों और छोटे बच्चों की भी सुरक्षा खतरे में आ जाती है।
हाल के दिनों में स्कूल के पास कई बार मामूली दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें छात्र खुद गिर गए या दूसरों को टक्कर मार बैठे। इन घटनाओं में कई बच्चे चोटिल हो चुके हैं, लेकिन न स्कूल प्रशासन ने ठोस कदम उठाए और न ही ट्रैफिक पुलिस ने कोई स्थायी समाधान निकाला।
अभिभावकों की भी गंभीर लापरवाही
यह स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब अभिभावक खुद अपने बच्चों को वाहन चलाने की छूट देते हैं। नाबालिग बच्चों को बाइक, स्कूटी देना न केवल ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन है, बल्कि उनके जीवन से सीधा खिलवाड़ भी है। कई बार देखा गया है कि माता-पिता खुद बच्चों को स्कूल के पास स्कूटी चलाना सिखा रहे होते हैं या उनसे गाड़ी मंगवाते हैं। बच्चों में स्पीड और स्टंट का शौक होता है, और यह लापरवाही किसी भी दिन एक बड़ी त्रासदी का कारण बन सकती है।
स्कूल प्रबंधन की अनदेखी
सेंट एलोशियस जैसे बड़े स्कूल से अपेक्षा की जाती है कि वह छात्रों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखेगा। लेकिन यहां स्कूल प्रबंधन ने भी आंखें मूंद रखी हैं। स्कूल गेट के पास कोई गार्ड व्यवस्था नहीं, पार्किंग के लिए कोई निर्धारित स्थान नहीं और ना ही वाहन लेकर आने वाले छात्रों के खिलाफ कोई आंतरिक कार्रवाई होती है।
स्कूल यदि चाहे तो एक सर्कुलर जारी कर अभिभावकों को सख्त हिदायत दे सकता है कि कोई भी छात्र बिना लाइसेंस के वाहन न चलाए, लेकिन ऐसा कोई प्रयास सामने नहीं आया।
ट्रैफिक पुलिस सिर्फ हाईवे तक सीमित
शहर की यातायात व्यवस्था भी इस समस्या के लिए कम दोषी नहीं है। ट्रैफिक पुलिस की उपस्थिति केवल नेशनल हाईवे या प्रमुख चौराहों तक सीमित है। स्कूलों, कॉलेजों और रिहायशी इलाकों में उनकी कोई सक्रियता नहीं दिखती। यदि स्कूल के बाहर नियमित रूप से चेकिंग की जाए, चालानी कार्रवाई हो और नियमों का पालन सख्ती से कराया जाए, तो ऐसी समस्याओं पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
मांगें और संभावित समाधान
स्थानीय नागरिकों और जागरूक अभिभावकों की मांग है कि:
1. स्कूल के बाहर “नो पार्किंग ज़ोन” घोषित किया जाए।
2. नाबालिग छात्रों के वाहन चलाने पर अभिभावकों के खिलाफ जुर्माना लगे।
3. यातायात विभाग नियमित रूप से स्कूलों के बाहर चेकिंग अभियान चलाए।
4. स्कूल प्रबंधन द्वारा प्रत्येक छात्र और अभिभावक को ट्रैफिक नियमों की जानकारी दी जाए।
5. सीसीटीवी निगरानी और गार्ड की नियुक्ति हो।
यदि प्रशासन, स्कूल और अभिभावक समय रहते इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेंगे, तो भविष्य में कोई बड़ी दुर्घटना होना तय है। बच्चों की सुरक्षा केवल सरकार या स्कूल की नहीं, समाज और हर माता-पिता की साझा जिम्मेदारी है।

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