सूर्यउपासना का महापर्व छठ आज ढलते सूर्य को अर्ध देकर की जाएगी पूजा

गिरीश राठौर
भालूमाड़ा—- संतान प्राप्ति और पति की दीर्घायु के लिए उत्तर पूर्वी क्षेत्र में मनाए जाने वाले महापर्व छठ का त्यौहार बड़ी ही श्रद्धा और भक्ति के साथ नगर में भी मनाया जाता है जहां महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखकर सूर्य उपासना करती हैं।
क्षेत्र में छठ पर्व मनाए जाने के लिए भालूमाडा के केवई नदी घाट में व्यापक रूप से साफ-सफाई साज-सज्जा नगर पालिका द्वारा किया गया है वहीं जमुना नगर में छठ तालाब में भी पूजन के लिए साफ सफाई एवं साज सज्जा नगर पालिका के द्वारा किया गया है।
छठ पूजन में विभिन्न प्रकार के फलों का उपयोग किया जाता है जिसके लिए बाजार में अनेक प्रकार के फल बांस की टोकरी बांस के बने सूपा का उपयोग होता है इन्ही बांस की टोकरी और सूपा में सभी प्रकार के पूजन सामग्री फलों घर में बनाए जाने वाले व्यंजनों को रखकर पुरुष अपने घर से घाट तक आते हैं जो बाजार में बहुतायत उपलब्ध है अनेक फल ऐसे होते हैं जो नहीं मिलते हैं लेकिन छठ पर्व के लिए दुकानदारों के द्वारा सभी प्रकार के फलों को लाया जाता है।
छठ का पर्व मुख्य रूप से सूर्य उपासना का पर्व माना जाता है जिसमें महिलाएं अपने संतान एवं पति की दीर्घायु परिवार में सुख शांति के लिए यह कठिन व्रत करती हैं।
वैसे तो छठ का पर्व की शुरुआत शुक्रवार को कद्दू भात दिवस से प्रारंभ हो चुकी है शुक्रवार को महिलाओं ने घर पर ही स्नान कर विधि विधान से पूजा अर्चना की साथ ही कद्दू की सब्जी चावल व चने की दाल पका कर उसका प्रसाद ग्रहण कर छठ पूजा की शुरुआत की शनिवार को छुटकी छठ जिससे खरना भी कहा जाता है इस दिन महिलाएं घर पर गुड़ की खीर बनाकर उसका प्रसाद ग्रहण करती हैं और अपने परिजनों को भी वह प्रसाद खिलाया जाता है इसी के साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ हो जाता है रविवार 30 अक्टूबर को सायं काल ढलते सूर्य को अर्ध देकर सभी व्रती महिलाएं पुरुष सूर्य भगवान की आराधना करते हैं और अपने परिवार के लिए संतान के लिए सुख शांति संपन्नता की कामना करते हैं इसके अगले दिन ही प्रातः भोर में उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजन किया जाता है और इसी के साथ ही छठ व्रत का समापन भी होता है। पसान नगर पालिका क्षेत्र में भी अब छठ पर्व को मनाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या पहले की अपेक्षा बढ़ चुकी है और यही कारण है कि अब छठ का पर्व भी बड़ी ही श्रद्धा भक्ति व धूमधाम उत्साह से मनाया जाता है सायं के समय जब ढलते सूर्य को अर्थ दिया जाता है उसके बाद घाट पर ही उपस्थित छोटे बड़े बच्चे सभी उत्साह पूर्वक आतिशबाजी कर दिवाली जैसा माहौल बना देते हैं घाटों में पहले की अपेक्षा अब आधुनिक साज सज्जा का चलन भी बढ़ता जा रहा है हर कोई अपने घर से जब घाट के लिए निकलते हैं तो कोई ढोल नगाड़ों के साथ तो कोई गाजे-बाजे के साथ पूजा स्थल तक आते हैं उनके साथ साथ अन्य लोग भी इस पूजा में शामिल होते हैं ।
पर इतना जरूर है कि छठ का महापर्व बड़े ही पवित्रता भक्ति के साथ मनाया जाता है