मध्यप्रदेश के इस कैबिनेट मंत्री के इलाके में भारी बारिश में भी नदी पार कर स्कूल पहुंचने को मजबूर बच्चे

न पुल, न पर्याप्त स्कूलें: शिक्षा लेने जान
पर खेल रहे मासूम
संभाग में आज भी ऐसी स्थिति है कि जब बच्चों को नदी में उतर कर स्कूल जाने की मजबूरी है, बच्चे जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं। इक्कीसवीं शताब्दी में भी संभाग के विकास की यह कैसी तस्वीर है? जबकि सरकार प्रतिवर्ष अपने बजट में सडक़ और शिक्षा पर अरबों का व्यय दर्शाती है। उतने विशाल आंकड़ों की कतार में अंतिम छोर के लोगों का यह संभाग कहां खड़ा है मशक्कत के साथ ढूंढऩा पड़ेगा।
उमरिया। बच्चों की माध्यमिक व उच्च स्तरीय शिक्षा सुलभ कराने शासन प्रति वर्ष नए स्कूल खोल रही है और दर्जनों स्कूलों का उन्नयन भी कर रही है, स्कूलों की दूरियां घटा रही है लेकिन ऐसे ग्रामीण अंचलों की आज आज भी कमी नहीं जो स्कूलों के मोहताज हैं। जहां सौ वर्ष पुरानी जिन्दगी आज भी दिखाई दे रही है। आवाजाही के लिए नदियों में न तो पुल है और न बच्चों के लिए पर्याप्त स्कूल। उमरिया मुख्यालय से मात्र 17 किमी दूर मानपुर क्षेत्र के सरसवाही गांव में ही बच्चे शिक्षा के लिए जान जोखिम में डालकर नदी पार करके पढऩे आते हैं। अफसोस तो इस बात का है कि यह क्षेत्र जनजातीय प्रदेश मंत्री मीना सिंह का है। इसके बावजूद इसकी दुर्दशा है। नदी पार करने की यही स्थिति अनूपपुर जिले के जैतहरी जनपद अंतर्गत चचाई की है। जहां बच्चे इसी कठिनाई से जूझ रहे हैं और सोन नदी पार कर 20 गांवों के बच्चे चचाई पढऩे आते।
वन्य जीवों के हमले का भय
उमारिया मुख्यालय से महज 17 किमी दूर ग्राम सरसवाही में स्थित शा.उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ही आसपास ग्रामीण बच्चों के लिए उपलब्ध है। इसलिए यहां कई गांवों के बच्चे पढऩे आते हैं और काफी भीड़ रहती है। बताते हैं कि मझगंवा, बरतराई, ददरौड़ी, कोडार, बरदोहा, बरबसपुर, खेरवा आदि सहित करीब एक दर्जन गांवों के बच्चे यहां आते हैं। इन गांवों के बच्चे कोसों का सफर तय करके स्कूल आते हैं और कुछ गांवों के रास्तों में तो जंगल भी पड़ता है। बच्चों के लिए वन्यजीवों के हमले का सदा भय बना रहता है।
नदी पार करने को मजबूर बच्चे
तीन गांव बरतराई ,ददरौडी, कोडार ऐसे हैं जहां से सरसवाही आने के लिए बरुहा नदी पार करने के अलावा कोई वैकल्पिक मार्ग नहीं है। इसी बरुहा नदी के गहरे पानी से होकर बच्चे स्कूल पहुंच रहे हैं। जो बेहद खरनाक है। ग्राम सरसवाही और ददरोडी को जोडऩे वाली बरुहा नदी पर बना पुल पिछले क़ई सालों पहले क्षतिग्रस्त हो गया था। जिसके बाद से ही ग्रामीण खासा परेशान है। ग्रामीणों के साथ बच्चे भी हर रोज़ जान जोखिम में डालकर घुटने तक पानी से होते हुए स्कूल पहुंच रहे है। यही नहीं विद्यालय की छुट्टी होने के बाद शाम को घर भी वे नदी पार करके ही पहुंचते हैं।
मंत्री के क्षेत्र में यह दुर्दशा
जिस जगह की चर्चा चल रही है वह जनजातीय प्रदेश मंत्री मीना सिंह का क्षेत्र है और ऐसा भी नहीं है कि पहुंच से बहुत दूर है। इसके बावजूद बच्चों को न तो पर्याप्त स्कूल उपलब्ध हो रहे और न आवागमन का साधन ही है। उनके इलाके में विकास का आलम यह है कि बच्चे जान हथेली पर लेकर नदी मेें घुसते हैं और स्कूल विद्या प्राप्त करने जाते है। मंत्री ने आज तक पलट कर यह नहीं पूछा कि ग्रामीण बच्चे स्कूल कैसे पहुंच रहे हैं और पुल क्यों नहीं बन रहा है। मंत्री जी को भी शायद किसी बड़े हादसे का इंतजार है। धनवाही मे जिस तरह एक मासूम डूबा और उसकी लाश का पता नहीं उसी तरह जब यहां बरुहा नदीं में बच्चे लापता होगें तब शायद मंत्री और उनका प्रशासन जागेगा।
स्कूलों का अभाव क्यों?
शासन ने बच्चों की सुविधा के लिए स्कूलों की दूरियां घटाने और नजदीक स्कूल उपलब्ध कराने हेतु नए स्कूल खोलने और शालाओं का उन्नयन करने का निर्णय लिया था। इससे परीक्षा केन्द्र बनाने में भी सहूलियत होती है। लेकिन इस क्षेत्र में आज तक हायरसेकण्डरी स्कूलों का अभाव क्यों है, स्कूलों का उन्नयन क्यों नहीं हो रहा इस बारे में कहा जाता है कि जनप्रतिनिधि मांग नहीं कर रहे हैं। चूंकि प्रशासन पर कोई दबाव नहीं है इसलिए हालात बिगड़े हुए हैं।