कलेक्टर की अपील “नो बुके ,जस्ट ए बुक” कलेक्टर श्री प्रसाद ने समारोहों और कार्यक्रमों मे उन्हें गुलदस्ता नहीं किताबें देने का किया आग्रह

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कलेक्टर की अपील “नो बुके ,जस्ट ए बुक”

कलेक्टर श्री प्रसाद ने समारोहों और कार्यक्रमों मे उन्हें गुलदस्ता नहीं किताबें देने का किया आग्रह

कटनी ॥ जिले के स्कूलों और छात्रावासों में समृद्ध पुस्तकालय की परिकल्पना को मूर्त रूप देने और छात्रों में पढ़ने की संस्कृति विकसित करने के लिए संकल्पित कलेक्टर अवि प्रसाद ने लोगों से आग्रह किया है कि वे कार्यक्रम, समारोहों और अन्य अवसरों पर मुझसे मिलते समय मुझे गुलदस्ता नहीं , पुस्तकें दें। ताकि इन पुस्तकों को जिले के स्कूलों व छात्रावासों के छात्र-छात्राओं तक पहुंचाया जा सके। जिले के छात्र-छात्राओं के बीच खासे लोकप्रिय कलेक्टर श्री प्रसाद अपने भ्रमण के दौरान स्कूलों और छात्रावासों में पहुंचने पर उन्हें ज्ञानवर्धक और शिक्षाप्रद कहानियों की पुस्तकों का उपहार देते हैं। श्री प्रसाद के वाहन में बड़ी संख्या में पुस्तकें और पैन उपलब्ध रहते हैं। जिसे वे छात्रों को उपहार स्वरूप प्रदान करते हैं। श्री प्रसाद का मानना है, कि ज्यों-ज्यों पुस्तकों का समृद्ध भंडार बढ़ेगा ,त्यों -त्यों पुस्तकों से अर्जित ज्ञान की खुशबू से जिले के छात्र प्रफुल्लित और लाभान्वित होंगे।
कलेक्टर श्री प्रसाद ने आमजन से विनम्रता पूर्वक आग्रह किया है, कि उनसे मिलने आने वाले आगंतुक भी उन्हें गुलदस्ता नहीं पुस्तकें दें। कलेक्टर श्री प्रसाद स्वागत के दौरान फूलमाला और गुलदस्ता की जगह पुस्तक देने का आग्रह करने वाले प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के पहले कलेक्टर हैं। जो पुस्तकों के माध्यम से जिले के नौनिहालों का भविष्य संवारने और शिक्षाप्रद, ज्ञानवर्धक पुस्तकें भेंट कर छात्रों में पढ़ने की प्रवृत्ति और संस्कृति को फैलाने में कर्म योगी की भांति लगे हैं। छात्रों के बीच पहुंचकर वे स्वयं पुस्तक पढ़कर छात्रों को कहानियां सुनाते हैं और उनसे संवाद करते हैं। पूछे गए सवालों का सही जवाब देने वाले छात्रों को तरह-तरह की टाफियां एवं उपहार देकर प्रोत्साहित भी करते हैं। छात्र भी बेझिझक होकर श्री प्रसाद से मनपसंद पुस्तक, टेलीविजन, खेल किट आदि की मांग करते हैं, और यह मांगे श्री प्रसाद द्वारा पूरी भी की जाती हैं। किसी भी स्कूल -कालेज में पहुंचते ही उन्हें छात्र-छात्राएं चारों ओर से घेर लेते हैं। सेल्फी फोटो लेते हैं, फिर पढ़ाई -लिखाई के बारे में चर्चाओं का दौर शुरू होता है। इस दौरान भी कलेक्टर छात्रों को पुस्तकें पढ़ने की सीख देते और प्रेरित करते नजर आते हैं।
कलेक्टर कहते हैं, कि बचपन कच्ची मिट्टी की तरह होता है। जैसा ढ़ालेंगे वैसा ढ़ल जाएगा, स्कूली पुस्तकों के अलावा रोचक बाल कहानियों की किताबों की दुनिया में ले जाने के पहले कदम के तौर पर बच्चों को उनकी रूचि के अनुसार समय-समय पर किताबें देने से उनमें पढ़ने की प्रवृत्ति विकसित होगी।

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