वर्षों से संचालन की बाट जोह रहे करोड़ों के सार्वजनिक शौचालय

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                 पंचायतों के पास नहीं संचालन की रूपरेखा, जर्जर हो रहे नए भवन

आशीष कचेर शहडोल। जिला प्रशासन की ढिलाई और ग्रामपंचायतों की उदासीनता के कारण सार्वजनिक शौचालय सुविधा का
संचालन आज भी दिखाई नहीं पड़ रहा है। बंद पड़े भवन अब रखरखाव बिना जर्जर भी होने लगेे हैं। लेकिन इस राशि
का खर्च अनुपयोगी साबित हो रहा है। इन शौचालयों का उपयोग ग्रामपंचायतों के अधीन है लेकिन ग्रामपंचायतों के
पदाधिकारी केवल भवन निर्माण तक गंभीर थे अब वे इन बंद पड़े शौचालयों की ओर देखना भी पसंद नहीं करते हैं।
कुछ सचिवों ने बताया कि इसके संचालन की रूपरेखा अभी तय नहीं हो सकी है। इसका शुल्क भी बैठक मेंं तय किया
जाना शेष है।
कौन चलाएगा शौचालय ?
शौचालय तो वर्षों पहले बन गए लेकिन इनके संचालन के लिए एजेंसी तय नहीं हो सकी। कई पंचों का मानना है कि
इसे महिला स्व सहायता समूहों को सुपुर्द कर दिया जाए। जिससे उनकी भी आय बढेंगी, लेकिन महिला स्वसहायता
समूह इस कार्य को शायद पूरी क्षमता से नहीं कर सकेंगी। इस मामले में मत विभिन्नता है, इसलिए उन्हे भी यह कार्य
अभी तक नहीं सौंपा गया है। गांव के अंदर युवाओं का भी ऐसा कोई संगठन नहीं जिसे यह कार्य सौंपा जाए।
ग्रामपंचायत के पास अपना कोई अमला नहीं जिसे लगाया जा सके। इसके अभाव में अभी तक शौचालयों का संचालन
ठप पड़ा हुआ है।

रूपरेखा तय नहीं
बताते हैं कि शौचालय संचालन के लिए एक रूपरेखा तय की जानी है। सबसे पहले इसमें शुल्क निर्धारण किया जाना
है। इसमें शौचालयों की सफाई, रखरखाव आदि जैसी बाते निर्धारित की जाएंगी। इसके लिए बैठक बुलाई जानी है
उसमें निर्णय लिया जाना है। लेकिन अभी तक इसके लिए बैठक नहीं हो पाई। राशि तो आनन-फानन में निकाल कर
शौचालय भवन तेा बनवा दिया गया शेष व्यवस्थाएं आज तक नहीं हो पा रही हैं। बंद पड़ा भवन धीरे धीरे जर्जर होता
जा रहा है। सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण जिस उद्देश्य से किया गया था उसकी पूर्ति नहीं हो पा रही है।
कैसे होगी सफाई व्यवस्था ?
शौचालयों के संचालन में एक बड़ी बाधा यह है कि शौचालयों की साफ सफाई अति आवश्यक होगी। लेकिन सफाई
कर्मचारी कहां से लाया जाएगा? पंचायत स्तर पर तो स्वीपर मिलते नहीं और गांव खेड़ों के लोग शौचालय धोने जैसा
कार्य करने को तैयार नहीं होते हैं। शौचालयों में स्वीपर रखना अनिवार्य होगा। इस स्वीपर का वेतन कहां से आएगा?
यह भी एक विचारणीय प्रश्न है। यही नहीं कुछ पंचायतें तो ऐसी भी हैं जहां शौचालयों में अभी तक बोरिंग की सुविधा
नहीं है। इस कारण यहां पानी की उपलब्धता भी नहीं है। जबकि शौचालय संचालन के लिए पानी अति आवश्यक है।
मुख्य मार्गों में नहीं शौचालय
छतवई सहित कई ग्राम पंचायतें ऐसी हैं जहां सार्वजनिक शौचालय प्रमुख मार्गों से दूर हट कर अंदर निर्जन स्थानों
पर है जहां से कोई आवाजाही नहीं है। इसलिए यहां राहगीर आकर निस्तार करेंगे यह कल्पना थोथी ही प्रतीत होती है।
यहां कोई ऐसे हाइवे व ग्रामीण यातायात बहुतायत ेमें नहीं है जहां काफी संख्या में लोगों का आनाजाना बना रहता हो
और लोगों को निस्तारी आवश्यकता पड़ेगी। स्वसहायता समूह स्वयं इस कार्य में रुचि लेतेे नजर नहीं आ रहे हैं। यह
भी एक समस्या दिखाई पड़ रही है।

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