“भक्ति प्रदर्शन नहीं, यह अंतर की निर्मलता है”- इंद्रेश महाराज दद्दा धाम में प्रवचन सुनकर भावविभोर हुए हजारों श्रद्धालु, भक्ति और गुरु कृपा का अनोखा संगम

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“भक्ति प्रदर्शन नहीं, यह अंतर की निर्मलता है”- इंद्रेश महाराज
दद्दा धाम में प्रवचन सुनकर भावविभोर हुए हजारों श्रद्धालु, भक्ति और गुरु कृपा का अनोखा संगम
कटनी। झिंझरी स्थित श्रीकृष्ण वृद्ध आश्रम प्रांगण, दद्दा धाम में चल रहे प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के तीसरे दिवस श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिला। जैसे-जैसे कथा आगे बढ़ी, वातावरण में भक्ति की मधुर तरंगें गूंजने लगीं हर भक्त का मन मानो ठाकुर कृपा में डूब गया। इस पावन अवसर पर वृंदावन से पधारे सुप्रसिद्ध कथा वाचक पूज्य पं. इंद्रेश उपाध्याय जी महाराज ने अपनी अमृतमयी वाणी से उपस्थित जनसमूह को भक्ति और गुरु महिमा का संदेश दिया। महाराज जी ने कहा
“भक्ति कोई प्रदर्शन नहीं, यह तो अंतर का भाव है। जब मन निर्मल होता है, तभी भगवान कृपा करते हैं। संसार का सुख क्षणिक है, किंतु सेवा और प्रेम का आनंद शाश्वत है।” महाराज जी के प्रवचनों में जैसे ही “गुरु कृपा से अवगुण भी सद्गुण बन जाता है” की वाणी गूंजी, पूरा परिसर “जय गुरुदेव दद्दा जी महाराज की जय” के उद्घोष से गूंज उठा।
कार्यक्रम का शुभारंभ पूज्य पं. इंद्रेश उपाध्याय जी के तिलक-अभिनंदन से हुआ। इस अवसर पर पूर्व मंत्री एवं विधायक संजय सत्येंद्र पाठक और फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा ने कथा व्यास का पूजन कर गुरु परंपरा को नमन किया। राणा जी ने कहा “ऐसे पावन क्षण में उपस्थित रहना, जीवन का सौभाग्य है; क्योंकि यहाँ की भक्ति हवा में नहीं, हर हृदय में धड़क रही है।”
गृहस्थ संत परम पूज्य पं. देव प्रभाकर शास्त्री ‘दद्दा जी’ की असीम कृपा से चल रहे इस महोत्सव में हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। पूरे परिसर में असंख्य पार्थिव शिवलिंग निर्माण, महारुद्राभिषेक और हरिनाम संकीर्तन के साथ भक्ति का अखंड प्रवाह बह रहा है।


इंद्रेश महाराज ने कहा “गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है। जब शिष्य गुरु की शरण में जाता है, तभी जीवन का अंधकार मिटता है। माता-पिता ही प्रथम गुरु हैं, उनकी प्रसन्नता सबसे बड़ी तपस्या है।” उन्होंने यह भी कहा कि कटनी की पावन भूमि विंध्य, महाकौशल और बुंदेलखंड के संगम पर स्थित होने से स्वतः ही आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत है और आज यह भूमि लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र बन चुकी है।
शाम ढलते-ढलते करीब पचास हजार भक्तों की उपस्थिति ने पूरे दद्दा धाम को भक्ति के महासागर में परिवर्तित कर दिया। कथा, भजन, संकीर्तन और गुरु महिमा के संदेश के साथ हर कोई यही कह उठा “दद्दा धाम नहीं, यह तो स्वयं भक्ति और कृपा का साक्षात धाम है।”

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