इंजीनियर और सचिव ने ढूंढा भ्रष्टाचार छिपाने का नायाब तरीका

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चेक डेम टूटा तो मिट्टी से ढक दिया
सीईओ और एसडीओ की नजर में मिट्टी का भराव हो रहा है
निर्माण की रूपरेखा, स्वीकृति, भुगतान के अतिरिक्त प्रक्रिया में जिले से लेकर पंचायत तक जिम्मेदार शामिल होते है, प्रत्येक कार्य में प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कमीशन सभी का तय होता है, इसलिए भ्रष्टाचार में कार्यवाही की जगह सभी अपने हिसाब से छिपाने का प्रयास करते है और शिकायतों को ठंडे बस्ते में डालकर पैसो का बंदरबांट कर लिया जाता है।
Ajay Namdev-6269263787
अनूपपुर। जनपद पंचायत अनूपपुर अंतर्गत ग्राम पंचायत बेलियाबडी के घेचुरी नाला में लगभग 15 लाख की लागत से निर्मित चेक डैम पहली ही बारिश में नीचे से टूट कर बह गया, जिम्मेदारों ने अपने कर्मो को छिपाने के लिए उस पर जेसीबी लगाया और मिट्टा से ढक दिया गया, तांकि किसी को भ्रष्टाचार की परत दिखाई न दे। जब भ्रष्टाचार की हकीकत सामने आई तो अधिकारियों के नियम व बातें भी बदल गये, सच्चाई का जानने के लिए पत्रकार चेक डेम स्थल पर पहुंचे तो वास्तविकता में चेक डेम की नीव टूट चुकी थी और चेक डेम के नीचे से पानी का बहाव हो रहा था, जिसके बाद जेसीबी मशीन का उपयोग कर इंजीनियर और सचिव ने चेक डेम में मिट्टी डालकर लोगों की नजरो से छिपाने का प्रयास किया।
कमीशन के आगे नतमस्तक जिम्मेदार
पंचायतों में होने वाले निर्माण कार्य में हर अधिकारियों का कमीशन तय कर दिया जाता है, जिसके कारण गुणवत्ता को ध्यान में न रखते हुए प्रत्येक निर्माण कार्य को अंजाम दिया जाता है। इतना ही नही अनावश्यक रूप से चेक डेम का निर्माण इसलिए किया जाता है क्योकि निर्माण के लिए स्वीकृत राशि से लगभग आधे राशि में चेक डेम निर्मित हो जाता है, इसलिए ज्यादातर पंचायतों में इंजीनियर व सचिव चेक डेम बनाने का प्रयास करते है।
यहां से भी होता है खेल
नियम के अनुसार ग्राम पंचायत ग्राम की निर्माण एजेन्सी होती है, लेकिन राजनीतिक पकड वाले व्यक्ति अपने स्तर पर चेक डेम को स्वीकृति करा लेते है और ठेके पर कार्य को लेकर भ्रष्टाचार को अंजाम दिया जाता है, सचिव को भी कार्य से मुक्ति मिल जाती है और अपना कमीशन लेकर अन्य व्यवस्थाओं को देखता रहता है, वही कुछ इंजीनियर स्वयं ठेकेदार बन जाते है तो कुछ अपना कमीशन तय करते है और आल इज वेल की श्रेणी में निर्माण को हरी झंडी दे देते है यही हाल एसडीओ का है।
शिकायत पर नही करते अमल
जनपद में बैठे अधिकारी और जिले में बैठे मुख्य कार्यपालन अधिकारी को लिखित शिकायत दिया जाता है, लेकिन सालों बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नही की जाती है, किसी मामले में अगर जांच कमेटी बनाकर जांच भी किया जाये तो वह जांच कहां और किस दस्तावेज में हुआ यह न तो शिकायतकर्ता को पता होता है और न ही लोगों को इसकी जानकारी होती है, कुलमिलाकर न तो शिकायत पर अधिकारी अमल करते है और न ही कभी कार्यवाही किया जाता है।
कमाई का अच्छा जरिया बना चेकडेम
जिलेभर की पंचायतों में चेक डेम की गिनती की जाये और उसके गुणवत्ता व सुनिश्चित स्थलों की जांच की जाये तो 80 प्रतिशत चेक डेम फेल हो जायेंगे, अन्य निर्माण कार्यो की अपेक्षा सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला निर्माण कार्य अब चेक डेम ही है। स्वीकृति लागत अगर 15 लाख है तो ठेकेदार इसे 7 लाख में निर्मित कर देगा और एसडीओ, इंजीनियर व सीईओ इसे गुणवत्तायुक्त बताकर वाहवाही लूट लेंगे, लेकिन कहीकत यही है कि ज्यादा कमीशन के फेर में चेक डेम का निर्माण ज्यादा से ज्यादा कराया जाता है।
नियम विरुद्ध कराया निर्माण
चेक डेम का कार्य जेसीबी मशीन (बैकोलोडर) से कराया गया, जबकि नियम यह कहता है कि मनरेगा मजदूर के तहत काम करना चाहिए, लेकिन कार्य जेसीबी से कराया गया हैं, अनाधिकृत ठेकेदार शीलू जोशी के द्वारा निर्माण कार्य किया गया और इंजीनियर अरविंद उइके की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभा इस निर्माण कार्य में है। गुणवत्ताहीन कार्य की शिकायतें उच्चाधिकारियों को लगातार की जा रही है, चेक डैम कार्य में कमीशनबाजी और निर्माण कार्य मे नियम विरुद्ध तरीके से प्राइवेट ठेकेदार कार्य कर रहे है। इस निर्माण की यदि जांच की जाए तो तय मानक से सभी कम पाए जाएंगे। पूर्व में भी शिकायत हो चुकी है एवं जांच में गुणवत्ताहीन कार्य पाया गया यह स्थिति अभी भी बनी हुई है। चेक डैम के इस पूरे खेल में जनपद पंचायत इंजीनियर एसडीओ की जिम्मेदारी संदिग्ध है जो निर्माण कार्यों की बिना जांच किये पूर्ण राशि का भुगतान करा रहे हैं।

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