स्टेशन मेंं आज भी नहीं बालिका संरक्षण की व्यवस्था

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रूपरेखा वर्षों से अधर में लटकी, जीआरपी की समस्या बरकरार

शहडोल। स्टेशन के अंदर ट्रेनों से छूटी बालिकाओं के संरक्षण की समस्या आज भी जीआरपी के सामने मुुंंह बाए खड़ी है। बालिकाओं की सुरक्षा यहां अहम मसला है। विगत दो दशकों के अंतराल में शहडोल रेलवे स्टेशन से गुजरने वाली ट्रेनों की संख्या में जिस तेजी से इजाफा हुआ उसी तेजी से यात्रियों की संख्या में भी बढ़ोत्तरी हुई है। आज औसतन रोजाना 30 ट्रेनों की आवाजाही मानी जाती है। इतनी ट्रेनों की आवाजाही ने जीआरपी की समस्या बढ़ा दी है। यद्यपि इस संबंध में वर्षों से निराकरण के प्रयास चल रहे हैं लेकिन सफलता अभी तक नहीं मिली है। इस संबंध में सर्वप्रमुख समस्या है ट्रेनों से छूटी बालिकाओं को अभिरक्षा में रखना। बालिकाओं को थाने में रखा नहीं जा सकता है और उनकी सुरक्षा की दृष्टि से अन्य कोई व्यवस्था नहीं है। बताया जाता है कि साल में दो चार केस ऐसे मिल ही जाते हैं जब बालिकाएं ट्रेनो से छूट जातीं हैं।

सरकार के ऐसे आदेश हैं

बच्चों की कोमल भावनाओं पर विपरीत असर नहीं पड़े इसलिए शासन ने निर्देश दिया था कि बच्चों को थाने के वातावरण से बच्चों को दूर रखा जाए और उन्हे सुरक्षित तथा भयरहित वातावरण उपलब्ध कराया जाए। इस निर्देश के बाद बच्चों को खासतौर पर बालिकाओं को थाने की अभिरक्षा से दूर रखने का प्रयास किया जाता है। बालिकाओं के लिए तब समस्या और बढ़ जाती है जब उन्हे रात में संरक्षण प्रदान करना पड़ता है। संरक्षण की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की जा सकी है। सर्वप्रमुख यही समस्या है कि ट्रेनों से छूटी बालिकाओं को अभिरक्षा में किस तरह और कहां रखा जाए? बालिकाओं को थाने में रखा नहीं जा सकता है और उनकी सुरक्षा की दृष्टि से अन्य कोई व्यवस्था नहीं है। बताया जाता है कि साल में दो चार केस ऐसे मिल ही जाते हैं जब बालिकाएं ट्रेनो से छूट जातीं हैं।

वर्षों से चल रहे प्रयास

वर्षों पहले इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए एसपी रेल, स्टेशन अधिकारियों और बिलासपुर रेल मण्डल ने मिलकर एक प्रयास शुरू किया था। जिसमें यह निर्णय लिया गया था कि बालिकाओं को संरक्षण प्रदान करने स्टेशन के अंदर एक कक्ष का निर्माण किया जाएगा। साथ ही तीन महिलाओं की एक समिति इनका देखरेख करेगी। समिति में जीआरपी की एक महिला स्टाफ, स्टेशन की एक महिला स्टाफ व एक महिला किसी समाज सेवी संगठन से रखी जाएगी। स्टेेशन में पार्सल कार्यालय के समीप कक्ष के लिए जगह भी चयनित की गई। यह रूपरेेखा तो बनी लेकिन आगे क्रियान्वयन पर शिथिलता आ गई।

संप्रेक्षण गृह का सहारा

जब ट्रेेनो से छूटी हुई बालिका के परिजनों का तत्काल संपर्क हेाना संभव नहीं रहता है तब बालिका को संप्रेक्षण गृह भेजना पड़ता है। लेकिन जब बालिका के परिजन तत्काल उपलब्ध हो जाते हैं तो समस्या थोड़ी कम रहती है। परिजनों के आते ही बालिका को उनके सुपुर्द कर दिया जाता है। लेकिन प्राय: होता यही है कि परिजनों को आने में कम से कम एक दिन का समय लग जाता है और एक रात बालिका को संप्रेक्षण गृह निगरानी के साथ भेजना पड़ता है।

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