इलाज के लिए नागपुर तो दूर….. शहडोल पहुंचना किसी सपने से कम नहीं

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पक्ष-विपक्ष भूला जनता का दर्द
पब्लिक ट्रांसपोर्ट बनी समस्या, संपत्ति बेचने को मजबूर सुदूर आदिवासी ग्रामीणजन

शहडोल। संभाग के जन प्रतिनिधियों का क्या कहना, वे तो वाहवाही लूटने में ही ज्यादा ध्यान दे रहे। उन्हें जनता की समस्याओं से जरा भी सरोकार नहीं। सत्ता परिवर्तन के बाद संभाग को प्रदेश में नेतृत्व के लिए दो मंत्री भी इसी क्षेत्र से मिले, 8 विधानसभा सीट होने के साथ ही आदिवासियों के नेतृत्व करने के लिए एक सांसद भी सत्ताधारी दल का मिला हुआ है, लेकिन संभाग के पास इतने कर्तव्य निष्ठ जनप्रतिनिधि होने के बावजूद आमजन इलाज के लिए परेशान है, कारण सिर्फ इतना ही कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट पूरी तरह से ठप्प पड़ा हुआ है और जनप्रतिनिधि सत्ता परिवर्तन के बाद उपचुनाव की तैयारियों में संभाग से लेकर भोपाल तक की दौड़ लगा रहे हैं, लेकिन गरीब जिनके पास खुद के साधन नहीं है, वह इस कोरोना जैसी महामारी के दौर मेंं ग्रामीण क्षेत्रों से बाहर इलाज के लिए जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए बेबस है।

नेतागिरी से फुरसत नहीं
संभागीय मुख्यालय से लगे दोनों जिलों में कई मरीज होगें, जिनका वर्तमान में इलाज संभागीय मुख्यालय सहित प्रदेश के बाहर चल रहा है। वही इनके इलाज व रूटीन चेकप के लिए आना-जाना लगा ही रहता है, लेकिन कोरोना काल ने सारी व्यवस्था को बिगाड़ रखी है, ऐसी विषम परिस्थितियों में भी किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। ऐसे में जनता की तकलीफों से रूबरू होने के बजाय जनप्रतिनिधि व नेताजी वाट्सअप व फेसबुक का सफर तय कर रहे हैं।

इलाज के पहले भाड़े की व्यवस्था

लॉक डाउन को 4 माह होने जा रहा है ऐसे में कई दिन गुजर चुके हैं, शहर से इलाज के लिए नागपुर जाने वाले मरीज और उनका परिवार काफी परेशान हैं। शहडोल से नागपुर जाने का साधन नहीं मिल रहा है, लेकिन इलाज के लिए जाना जरूरी हो गया है। लॉक डाउन में सरकार अर्थव्यवस्था पर रो रही है, लेकिन जनता की नुमाईंदे और चुनावों के समय वोट मांगने वाले नेता व उनके कार्यकर्ताओं को अब गरीबों की समस्याओं से कोई सरोकार नहीं रह गया, पब्लिक ट्रांसपोर्ट चाहे बस सेवा हो या रेलवे सेवा पूरी तरह बंद है, प्रतिदिन ट्रेनों और बसों से आने वाली भीड़ को प्रशासन ने पूरी तरह बंद कर रखा है, लोगों का कहना है कि कोरोना से मरेंगे ही, लेकिन अन्य बीमारियों का समय पर इलाज नहीं किया गया तो, मरना तो तय ही है, इसलिए आमजन की सुविधा के हिसाब से अब पब्लिक ट्रांसपोर्ट शुरू कराना चाहिए, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में फंसे लोगों को इलाज मिल सके।

बेचनी पड़ रही संपत्ति

ग्रामीण क्षेत्रों में बसे लोगों के लिए अब सबसे बड़ा सरदर्द इलाज की व्यवस्था के साथ गाड़ी भाड़े की भी व्यवस्था करना हो गया है, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा न होने से संभागीय मुख्यालय तक नहीं पहुंच पा रहे हैं, मजबूरी में और पैसों के आभाव में उन्हें घर में रखी संपत्ति बेचनी पड़ रही है, लोगों का आरोप है कि सत्ता पक्ष हो विपक्ष इन्हें आमजनता की परेशानियों से कोई सरोकार नहीं है।

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