अवैध शराब की आई बाढ़, सड़कों पर सरेआम सेवन

आबकारी विभाग मौन, सामाजिक विकृति बढ़ रही
(Amit Dubey+8818814739)
शहडोल। शराब के कारोबार पर आबकारी विभाग का कितना नियंत्रण है और शराब के सामाजिक दुष्परिणामों को लेकर वह कितना गंभीर है यह इसी बात से पता चलता है कि अब अवैध शराब गली गली उपलब्ध हो रही है और लोग सड़कों के किनारे खुली जगह पर जमकर उसका सेवन कर रहे हैं। शराब की धरपकड़ तो हो रही है लेकिन यह धरपकड़ पुलिस विभाग द्वारा की जा रही है। आबकारी विभाग मौन साधे बैठा है। उसके लिए तो केवल ठेकेदार और उसके गुर्गे ही मायने रखते हैं जो विभाग और उसके अफसरों की मोटी कमाई का जरिया बने हुए हैं। यही नही देशी विदेशी मदिरा अब गांव खेड़ों में भी पहुंच रही है। आसपास के जिलों से चोरी छिपे लायी भी जा रही है लेकिन विभाग को मानों इन सब करतूतों से कोई मतलब नहीं है। बताया गया कि विभाग के पास अपना मजबूत मुखबिर तंत्र भी नहीं है जो कि उसको समय समय पर जानकारियां दे सके। विभाग शासन को तो हर साल लम्बा मुनाफा दे रहा है लेकिन सामाजिक स्तर पर नशे का फैलाव कराकर वह समाज का बड़ा नुकसान कर रहा है। इसका असर बच्चों में भी पड़ता है।
फूटी बोतलें किसकी हैं
बस्तियों की सड़कों के किनारे फेकी पड़ी शराब की बोतलें आते जाते लोगों का ध्यान आकृष्ट करतीं हैं। कई बार तो बच्चे उन्हे उठाने का प्रयास करते हैं और पूछते हैं कि यह बोतल किसकी है, इससे जाने अनजाने ही सही पर शराब के नशे का प्रचार होता है। मुख्यालय का शायद ही ऐसा कोई मुहल्ला या बस्ती होगी जहां अवैध शराब न पहुंच रही हो। कौन पहुंचा रहा है और कौन स्टोर करा रहा है क्या इन बातों की जानकारी विभाग को नहीं होगी। लेकिन विभाग ऐसी समाजविरोधी कारस्तानियों को अंजाम देनेे वालों का बगलगीर बना हुआ है। सामाजिक प्रतिबद्धता को उसने खो दिया है।
क्यों नही होती धरपकड़
एसपी की कड़ाई से जब अवैध शराब की धरपकड़ के खिलाफ अभियान चलाया जाने लगा तो नगरीय व ग्रामीण दोनो ही जगहों में चल रहा अवैध कारोबार उघड़ कर सामने आने लगा। पता चलने लगा कि शराब की विक्री मकान दूकान, ढाबा, ठेला आदि सभी जगहों से हो रही है। किराने की दूकानों और भोजनालयों को भी शराब का अड्डा बना दिया गया है। बस्तियों की कौन सी जगह बची है जहां शराब नहीं बिक रही है। कहते हैं कि कारोबारियों को लाभ पहुंचाने और उसने जो करोड़ों की राशि शराब के लिए जमा की है उसकी वसूली कराने के लिए विभाग ने उन्हे चुपचाप छूट दे रखी है, कि मदिरा की दूकानों से जो विक्री होती है सो ठीक है बाकी दो नंबर करके कमा लें।
नशामुक्ति अभियान ठप्प पड़ा
समाज को नशामुक्त बनाने और नशे की बुराइयों से बचाने के लिए शासन का संकल्प तो है लेकिन वह संकल्प शायद खोखला ही है। पहली बात तो यह है कि अभियान के लिए सामाजिक न्याय विभाग को कोई खास बजट नहीं दिया जाता है। कला पथक दल भी अब काम नहीं कर पा रहा है। नशामुक्ति के लिए गांव गांव जाकर यह नाटकों और संगीत आदि के माध्यम से लोगों को नशे के प्रति जागरुक करता था। अब यह कार्यक्रम भी ठप्प पड़ा है। कलापथक के कलाकार अब दफ्तर में बैठे फाइलों का काम देखते रहते हैं।
समाजसेवी संस्थाएं शिथिल
अधिकांश समाज सेवी संस्थाएं केवल पौध रोपणी तक सीमित है, जबकि उनके द्वारा नशामुक्ति के लिए समय समय पर अभियान चलाकर जागरुकता पैदा की जानी चाहिए। समाज में नशे का फैलाव शायद इसीलिए तेजी से हो रहा है क्योंकि नशामुक्ति अभियान शिथिल पड़े हुए हैं। किसी को इस बात से रुचि नहीं है कि लोग शराब छोड़ दें और अपना जीवन सुधारें। कहीं भी नशामुक्ति के लिए स्लोगन लिखे दिखाई नहीं पड़ते। वाल पेंटिेंग कराई जाती है, होर्डिंग लगवाए जाते हैं लेकिन नशामुक्ति के लिए नहीं। नशा नाश की जड़ है, यह सूत्रवाक्य अब कहीं दिखाई नहीं पड़ता।