भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी सरकारी संपत्ति, सचिव के बदलते बयान ने खोली पोल

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पहले एफआईआर की बात, फिर मिलीभगत का खेल – ग्रामीण बोले, जांच हो निष्पक्ष

सुधीर यादव (9407070722)

शहडोल। जिले के सिंहपुर ग्राम पंचायत में बनी सरकारी पानी की टंकी इन दिनों भ्रष्टाचार और मिलीभगत के आरोपों को लेकर सुर्खियों में है। 5 सितंबर को इस सरकारी संपत्ति को निजी कंपनी जेके सुपर सीमेंट के विज्ञापन से रंग दिया गया। प्रारंभिक तौर पर पंचायत सचिव ने मामले से पल्ला झाड़ते हुए कहा था कि उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं है, और इस कृत्य के लिए वे दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराएंगे। साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया कि जिस दिन यह कार्य हुआ, उस दिन पंचायत कार्यालय बंद था। सचिव ने खुलेआम आरोप लगाया कि यह पूरा खेल सरपंच और उपसरपंच की मिलीभगत से हुआ है।

लेकिन अब हालात कुछ और ही कहानी बयान कर रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सचिव महोदय को इस पूरे प्रकरण में अपना हिस्सा मिल चुका था। हिस्सेदारी तय होने के बाद उन्होंने पहले तो सख्त बयानबाज़ी कर पल्ला झाड़ा, लेकिन बाद में वही सचिव महोदय इस अवैध कार्य को वैध ठहराने में जुट गए। सूत्र बताते हैं कि उन्होंने बाकायदा पर्ची काटकर इस विज्ञापन को कागजों में सही ठहरा दिया।

यानी जो काम पंचायत की अनुमति और जनप्रतिनिधियों की सहमति के बिना किया गया था, उसे बाद में सरकारी दस्तावेजों के सहारे कानूनी जामा पहना दिया गया। इससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या पंचायत सचिव का असली चेहरा जनता से छुपा रह पाएगा?

ग्रामवासियों का कहना है कि यह कोई पहली बार नहीं हुआ है। सचिव पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं कि वे अपने स्वार्थ और लाभ के लिए सरकारी दस्तावेजों के साथ खिलवाड़ करते हैं। लोगों का कहना है कि “कागजों में सब कुछ सही दिखा दिया जाता है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है।”

इस पूरे मामले ने पंचायत प्रशासन की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं। आखिरकार सरकारी संपत्ति पर निजी कंपनी का विज्ञापन बिना अनुमति कैसे पेंट हो गया? पंचायत सचिव पहले खुद को अंजान और ईमानदार दिखाते रहे, लेकिन बाद में मिलीभगत का खेल सामने आने लगा।

जनता की नाराज़गी इस बात पर भी है कि जब पंचायत की छुट्टी थी, तब यह काम किसके इशारे पर हुआ? यदि सचिव को इसकी भनक तक नहीं लगी थी तो फिर बाद में पर्ची कैसे काट दी गई? जाहिर है कि सच कहीं न कहीं दबा दिया गया और दिखावे के लिए सरपंच–उपसरपंच पर ठीकरा फोड़ा गया।

अब सवाल यह है कि क्या इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच होगी या फिर यह मामला भी कुछ दिनों में ठंडे बस्ते में चला जाएगा? ग्रामीणों का साफ कहना है कि सरकारी संपत्ति पर निजी कंपनी का कब्जा या विज्ञापन किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं है। सचिव, सरपंच और उपसरपंच—तीनों की मिलीभगत की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।

निष्कर्ष में, सिंहपुर की सरकारी पानी की टंकी केवल पेयजल आपूर्ति का साधन नहीं रह गई, बल्कि भ्रष्टाचार और सत्ता के खेल का प्रतीक बन गई है। सचिव के बदलते रुख और दस्तावेज़ों की बाज़ीगरी ने पूरे पंचायत प्रशासन की पोल खोल दी है। अब देखना यह है कि जिला प्रशासन इस पर कड़ा कदम उठाता है या फिर यह मामला भी “कागजों” में दबकर रह जाएगा।

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